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Nimisha Priya Faces Death Penalty: केरल की नर्स निमिषा प्रिया को यमन में क्यों मिली फांसी की सजा?

Nimisha Priya Faces Death Penalty: केरल की नर्स निमिषा प्रिया को यमन में क्यों मिली फांसी की सजा?

Nimisha Priya Faces Death Penalty: ज़िंदगी कभी-कभी ऐसे मोड़ पर ले आती है, जहाँ सही और गलत की रेखा धुंधली हो जाती है। केरल की एक 37 साल की नर्स, निमिषा प्रिया, आज यमन की जेल में अपनी आखिरी साँसों की गिनती कर रही है। खबर है कि उसे जल्द ही फांसी की सजा दी जा सकती है। उसकी माँ, प्रेमा कुमारी, दिन-रात उसकी जान बचाने की कोशिश में जुटी हैं। लेकिन सवाल ये है कि आखिर निमिषा ने ऐसा क्या किया, जिसके लिए उसे यमन जैसे देश में Death Penalty Yemen का सामना करना पड़ रहा है? और क्या अब भी कोई रास्ता बचा है, जिससे उसकी ज़िंदगी को बचाया जा सके? आइए, इस कहानी को शुरू से समझते हैं।

निमिषा की कहानी 2008 में शुरू हुई, जब वो 19 साल की उम्र में केरल से यमन चली गईं। सपना था एक बेहतर ज़िंदगी का, एक नर्स के तौर पर अपनी पहचान बनाने का। यमन में उन्होंने मेहनत से काम शुरू किया। 2011 में उनकी शादी हुई, एक बेटी हुई, लेकिन ज़िंदगी ने फिर करवट बदली। आर्थिक तंगी के चलते उनके पति और बेटी को 2014 में भारत लौटना पड़ा। निमिषा अकेली यमन में रह गईं। वहाँ उन्होंने अपना एक छोटा-सा क्लिनिक खोलने का सपना देखा। लेकिन यमन का कानून विदेशी महिलाओं को अकेले कारोबार करने की इजाज़त नहीं देता। यहीं से उनकी ज़िंदगी में तलाल अब्दो महदी नाम का एक शख्स आया, जिसने उनकी कहानी को दर्दनाक मोड़ दे दिया।

निमिषा ने तलाल के साथ साझेदारी में क्लिनिक शुरू करने की कोशिश की। लेकिन उसने कागज़ों पर खुद को निमिषा का पति बताकर उनके साथ धोखा किया। निमिषा का आरोप है कि तलाल ने उनका पासपोर्ट छीन लिया, उनकी कमाई पर कब्ज़ा कर लिया और उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। उसने नशे का इस्तेमाल करके निमिषा को अपने कंट्रोल में रखने की कोशिश की। इस उत्पीड़न से बचने के लिए निमिषा ने हिम्मत जुटाई। उन्होंने एक जेल अधिकारी की मदद से तलाल को नींद की दवा देकर बेहोश करने की योजना बनाई, ताकि वो अपने कागज़ात वापस ले सकें। लेकिन ये योजना उलटी पड़ गई। दवा की मात्रा ज़्यादा हो गई, और तलाल की मौत हो गई।

यमन की अदालत ने इस घटना को हत्या माना और निमिषा को फांसी की सजा सुना दी। 2023 में हूती विद्रोहियों की शीर्ष अदालत ने भी इस सजा को बरकरार रखा। निमिषा का कहना है कि उन्होंने आत्मरक्षा में ये कदम उठाया था, लेकिन अदालत ने उनकी दलील को नहीं माना। अब उनकी माँ, प्रेमा कुमारी, और उनका परिवार हर मुमकिन कोशिश कर रहा है। प्रेमा पिछले साल यमन गईं, लेकिन उनकी कोशिशें नाकाम रहीं। अब वो भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि किसी तरह निमिषा प्रिया की जान बचाई जाए।

यमन के कानून में एक रास्ता है – ‘ब्लड मनी’। इसका मतलब है कि मृतक के परिवार को आर्थिक मुआवज़ा देकर सजा को माफ करवाया जा सकता है। निमिषा के परिवार और कुछ मानवाधिकार संगठनों ने इसके लिए करीब 10 लाख डॉलर (लगभग 8.5 करोड़ रुपये) जुटाने की कोशिश की है। लेकिन तलाल के परिवार ने अभी तक ये साफ नहीं किया कि वो कितनी रकम चाहते हैं। समय तेज़ी से निकल रहा है, और जेल प्रशासन को फांसी की प्रक्रिया शुरू करने का पत्र मिल चुका है।

भारत सरकार इस मामले पर नज़र रखे हुए है। लेकिन मुश्किल ये है कि यमन में हूती विद्रोहियों का कब्ज़ा है, और भारत का उनसे कोई औपचारिक राजनयिक रिश्ता नहीं है। फिर भी, भारत सरकार पर्दे के पीछे बातचीत कर रही है। मानवाधिकार कार्यकर्ता सैमुएल जेरोम बास्करन जैसे लोग भी तलाल के परिवार और यमन के अधिकारियों से संपर्क में हैं, ताकि कोई रास्ता निकल सके।

निमिषा की कहानी सिर्फ़ एक अपराध की नहीं है। ये एक ऐसी महिला की कहानी है, जो अपनी आज़ादी और सम्मान के लिए लड़ रही थी। क्या वो हत्यारा थी, या एक सताई हुई औरत, जो अपनी ज़िंदगी बचाने की कोशिश कर रही थी? ये सवाल आज भी अनसुलझा है। लेकिन एक बात साफ है – Nimisha Priya की ज़िंदगी अब समय और कूटनीति के भरोसे है। ब्लड मनी का रास्ता अभी खुला है, लेकिन क्या ये रास्ता उनकी जान बचा पाएगा, ये वक्त ही बताएगा।

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