Nizam Love Story: हैदराबाद के आखिरी निज़ाम मीर उस्मान अली खान अपनी दौलत और शाही ठाठ-बाट के लिए पूरी दुनिया में मशहूर थे। लेकिन उनकी जिंदगी में एक ऐसी प्रेम कहानी भी थी, जिसने सबको हैरान कर दिया। ये कहानी थी निज़ाम और एक किन्नर, मुबारक बेगम, की। ये प्रेम कहानी इतनी अनोखी थी कि लोग आज भी इसे याद करते हैं।
मीर उस्मान अली खान हैदराबाद रियासत के सातवें और आखिरी निज़ाम थे। उनकी दौलत का कोई हिसाब नहीं था। हीरों से जड़ी घड़ी हो या पोते के लिए हीरों का खिलौना, उनकी अमीरी की कहानियां मशहूर थीं। टाइम मैगजीन ने 1937 में उन्हें दुनिया का सबसे अमीर इंसान बताया था। लेकिन इतनी दौलत होने के बावजूद निज़ाम को किसी पर भरोसा नहीं था। न परिवार, न दोस्त, न अपने बेटों पर। उन्हें लगता था कि सब उनकी दौलत के पीछे हैं।
इसी दौरान उनकी जिंदगी में आईं मुबारक बेगम। मुबारक बेगम एक किन्नर थीं, जो हैदराबाद के गोलकोंडा इलाके में रहती थीं। किन्नर समुदाय उस समय आशीर्वाद देने, नाचने-गाने और मांगने का काम करता था। एक दिन मुबारक बेगम अपने समुदाय के साथ निज़ाम के महल में किसी खुशी के मौके पर आशीर्वाद देने पहुंचीं। उनकी सादगी, बेबाक बातें और मीठी आवाज ने निज़ाम का दिल जीत लिया। निज़ाम ने उन्हें अपने महल में रहने का न्योता दे दिया।
धीरे-धीरे मुबारक बेगम निज़ाम की सबसे करीबी बन गईं। निज़ाम को लगता था कि मुबारक बेगम उनसे सच्चा प्यार करती हैं। वो उनकी दौलत के लिए नहीं, बल्कि उनके दिल से जुड़ी थीं। चूंकि मुबारक बेगम का कोई वारिस नहीं था, निज़ाम को यकीन था कि वो उनकी संपत्ति पर नजर नहीं रखेंगी। वो ये भी मानते थे कि मुबारक बेगम और उनका समुदाय उनकी हर कीमत पर रक्षा करेगा।
मुबारक बेगम अपनी हंसी-मजाक, नाच-गाने और देखभाल से निज़ाम की उदासी दूर करती थीं। उस समय लोग मानते थे कि किन्नरों का आशीर्वाद बहुत शुभ होता है। निज़ाम को भी लगता था कि मुबारक बेगम का साथ उनके और उनके राज्य के लिए अच्छा है। उन्होंने मुबारक बेगम को महल में रानी की तरह दर्जा दिया। उन्हें ‘बेगम साहिबा’ की उपाधि दी, जो उस समय शाही परिवार की महिलाओं को मिलती थी। मुबारक बेगम को महल में रहने, निजी स्टाफ और रानी जैसी जिंदगी जीने की सारी सुविधाएं दी गईं।
लेकिन क्या निज़ाम और मुबारक बेगम की शादी हुई थी? इतिहासकारों का मानना है कि ये रिश्ता भावनात्मक और प्रतीकात्मक था, न कि कोई औपचारिक शादी। निज़ाम एक धार्मिक मुसलमान थे और इस्लामिक नियमों में ऐसी शादी की कोई व्यवस्था नहीं थी। फिर भी, निज़ाम का मुबारक बेगम के लिए प्यार सच्चा था। हो सकता है कि उन्होंने अपने प्यार को दिखाने के लिए कोई निजी समारोह किया हो।
निज़ाम का मुबारक बेगम के लिए प्यार सिर्फ रोमांस नहीं था। वो उन्हें एक सच्ची साथी, मनोरंजन करने वाली और देखभाल करने वाली मानते थे। उनके साथ निज़ाम अपने शाही रूतबे को भूलकर एक साधारण इंसान बन जाते थे। 1948 में जब हैदराबाद का भारत में विलय हुआ, निज़ाम की दौलत और ताकत कम हो गई। उन्हें सरकार से भत्ता मिलता था, लेकिन वो पहले जैसी शान नहीं रही। फिर भी मुबारक बेगम उनके साथ रहीं और उनकी देखभाल करती रहीं।
1967 में निज़ाम की मृत्यु के बाद मुबारक बेगम की जिंदगी मुश्किल हो गई। निज़ाम के परिवार ने उन्हें महल छोड़ने को कहा। कहा जाता है कि मुबारक बेगम ने अपना आखिरी समय हैदराबाद में एक साधारण घर में गुमनामी में बिताया। उनकी मृत्यु की तारीख और हालात इतिहास में कहीं दर्ज नहीं हैं।
इस अनोखी प्रेम कहानी का जिक्र कई किताबों में मिलता है। विजय प्रसाद की किताब “द लास्ट निज़ाम” में बताया गया है कि निज़ाम मुबारक बेगम पर बहुत भरोसा करते थे। सर विलियम बार्टन की किताब “द निज़ाम” और लेओनार्ड मोस्ले की “हैदराबाद: ए बायोग्राफी” में भी इस रिश्ते का जिक्र है। पुराने अखबारों जैसे द टाइम्स ऑफ इंडिया और द हिंदू में मुबारक बेगम को निज़ाम की करीबी सहयोगी बताया गया। हैदराबाद स्टेट आर्काइव्स में उनके लिए दिए गए भत्ते और उपहारों का रिकॉर्ड भी मौजूद है।
ये कहानी निज़ाम हैदराबाद और किन्नर रानी मुबारक बेगम की है, जो प्यार, भरोसे और सादगी की एक अनोखी मिसाल है।