महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र से जुड़ी एक बड़ी और ऐतिहासिक खबर सामने आई है। लंबे संघर्ष, धरनों और भूख हड़तालों के बाद आखिरकार राज्य सरकार ने मराठा युवाओं को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया की आधिकारिक शुरुआत कर दी है। ये फैसला न केवल सामाजिक रूप से अहम है बल्कि आने वाले दिनों की राजनीति पर भी इसका गहरा असर पड़ सकता है।
मराठवाड़ा मुक्ति दिवस पर मिली बड़ी सौगात
बुधवार को आयोजित मराठवाड़ा मुक्ति दिवस के मौके पर राज्य सरकार ने बीड सहित पांच जिलों में युवाओं को प्रमाणपत्र सौंपे। बीड जिले में उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने स्वयं युवाओं को प्रमाणपत्रों का पहला बैच सौंपा। अन्य जिलों—हिंगोली, परभणी, धाराशिव और लातूर में पालक मंत्रियों ने ये जिम्मेदारी निभाई।
आंदोलन से समझौते तक का सफर
ये कदम आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे के नेतृत्व में चले लंबे आंदोलन के बाद संभव हो पाया। मराठा युवाओं का कहना है कि यह जीत जरांगे की दृढ़ इच्छाशक्ति और संघर्ष का नतीजा है। प्रमाणपत्र मिलने के बाद मराठा समुदाय को अब अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की श्रेणी में शामिल किया जा सकेगा, जिससे उन्हें शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलेगा।
क्या कानूनी रूप से टिक पाएंगे प्रमाणपत्र?
हिंगोली के पालक मंत्री नरहरि जिरवाल ने प्रमाणपत्र सौंपते हुए कहा कि ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि ये प्रमाणपत्र अदालत में कानूनी रूप से कितने मजबूत साबित होंगे। उन्होंने माना कि ये एक प्रतीकात्मक शुरुआत है और आने वाले दिनों में स्थानीय प्रशासनिक कार्यालयों से बड़े स्तर पर प्रमाणपत्र जारी किए जाएंगे।
कुछ जिलों में क्यों नहीं हुआ वितरण?
छत्रपति संभाजीनगर, जालना और नांदेड़ में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, मंत्री पंकजा मुंडे और अतुल सावे मौजूद तो रहे, लेकिन वहां प्रमाणपत्रों का वितरण नहीं किया गया। अधिकारियों का कहना है कि इन जिलों में प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी, लेकिन मुक्ति दिवस के कार्यक्रम केवल औपचारिक समारोह तक ही सीमित रहे।
राजनीतिक रूप से बड़ा संदेश
मराठा समाज की आरक्षण की लड़ाई ने महाराष्ट्र की राजनीति में हमेशा बड़ा स्थान लिया है। सरकार का ये कदम साफ तौर पर राजनीतिक दृष्टि से अहम माना जा रहा है। महीनों तक चले विरोध प्रदर्शनों और बातचीत के बाद ये फैसला लागू हुआ है, जो आने वाले चुनावों और सत्ता समीकरणों पर भी गहरा असर डाल सकता है।