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One Nation One Election: क्या है ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का मास्टर प्लान? जानिए सरकार की पूरी रणनीति!

One Nation One Election 'एक राष्ट्र, एक चुनाव'
One nation One election: ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ एक ऐसा विचार है, जो देश की चुनाव प्रक्रिया को सरल और एकीकृत करने का प्रयास करता है। केंद्र सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम उठाते हुए, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिशों पर काम शुरू कर दिया है। इस प्रस्ताव को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए तीन बिलों को संसद में पेश किया जाएगा।

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का प्रस्ताव और कोविंद समिति की सिफारिशें

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (One nation One election) का उद्देश्य देशभर में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराना है। इस प्रक्रिया से न केवल प्रशासनिक लागत में कमी आएगी, बल्कि चुनाव प्रक्रिया भी अधिक व्यवस्थित और सरल हो जाएगी। कोविंद समिति ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण सिफारिशें दी हैं। समिति ने एक राष्ट्र चुनाव को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन का प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकेंगे।

समिति ने सुझाया है कि इस प्रक्रिया को दो चरणों में पूरा किया जाए। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं, और दूसरे चरण में 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनावों को भी इस योजना में शामिल किया जाए। इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए तीन बड़े विधेयक संसद में पेश किए जाएंगे।

तीन विधेयक: चुनावी प्रक्रिया में बदलाव

इस प्रस्ताव को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए तीन विधेयक तैयार किए गए हैं। पहले विधेयक में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनावों को एक साथ कराने के लिए संविधान संशोधन का प्रस्ताव है। इसके तहत अनुच्छेद 82ए और अनुच्छेद 83(2) में संशोधन करने की योजना है, ताकि एक राष्ट्र चुनाव को कानूनी रूप से लागू किया जा सके। इन विधेयकों में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव संविधान में तीन नए उप-खंडों का समावेश करना है, जिनसे चुनाव आयोग को यह अधिकार मिलेगा कि वह राज्य चुनाव आयोग के साथ मिलकर स्थानीय निकायों के चुनावों को एक साथ करा सके।

दूसरे विधेयक में चुनाव आयोग की भूमिका को और सशक्त किया जाएगा। इस विधेयक के तहत चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग मिलकर स्थानीय निकायों की चुनावी सूची तैयार करेंगे और चुनावों का आयोजन करेंगे। यह कदम चुनाव प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और संगठित बनाएगा।

तीसरा विधेयक केंद्र शासित प्रदेशों, जैसे पुदुचेरी, दिल्ली, और जम्मू-कश्मीर के चुनावों से संबंधित है। इस विधेयक का उद्देश्य इन क्षेत्रों की विधानसभाओं के चुनावों को लोकसभा और अन्य विधानसभाओं के साथ मिलाना है। इसके लिए दिल्ली अधिनियम-1991, केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम-1963 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 में संशोधन किया जाएगा।

चुनौतीपूर्ण बदलाव और सरकार के सामने मुद्दे

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’/One nation One election की प्रक्रिया को लागू करना सरकार के लिए आसान नहीं है। संविधान संशोधन के लिए संसद में दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। मौजूदा समय में, सरकार को 362 सदस्यों के समर्थन की जरूरत है, लेकिन एनडीए के पास केवल 292 सदस्य हैं। विपक्षी दलों और तटस्थ पार्टियों का विरोध इस प्रक्रिया में बड़ी चुनौती बन सकता है। इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेदों में संशोधन करना भी एक जटिल प्रक्रिया है।

एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया (Process of simultaneous elections) में कई चरणों से गुजरना पड़ेगा। कोविंद समिति की सिफारिशों के आधार पर, अनुच्छेद 82ए में ‘निर्धारित तिथि’ से संबंधित उप-खंड जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया है। इसके अलावा अनुच्छेद 83(2) और अनुच्छेद 327 में भी संशोधन किए जाएंगे, ताकि लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल और विघटन से संबंधित नियमों में बदलाव किया जा सके।

सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इन प्रस्तावित संशोधनों के लिए संसद के साथ-साथ राज्यों का भी समर्थन मिलना आवश्यक है। हालांकि, यह प्रक्रिया चुनावी व्यवस्था को एक नए ढांचे में ढालने का प्रयास करेगी, जिससे लोकतंत्र और भी मजबूत हो सकता है।

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