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Constitution Bill: लोकसभा में संविधान संशोधन बिल पर बवाल; विपक्ष ने ठुकराया, सरकार क्यों बेफिक्र?

Constitution Bill: लोकसभा में संविधान संशोधन बिल पर बवाल; विपक्ष ने ठुकराया, सरकार क्यों बेफिक्र?

Constitution Bill: लोकसभा में उस समय हंगामे का माहौल बन गया जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तीन अहम विधेयक पेश किए। इनमें संविधान का 130वां संशोधन विधेयक, केंद्र शासित प्रदेश सरकार संशोधन विधेयक और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक शामिल हैं। इन बिलों में प्रावधान है कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर अपराध में 30 दिन तक जेल में रहता है, तो उसे 31वें दिन अपने पद से हटना होगा। इस नियम को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में बदलाव किया जाएगा। लेकिन इन बिलों को पेश करते ही विपक्ष ने तीखा विरोध शुरू कर दिया। कुछ सांसदों ने बिल की कॉपियां फाड़ दीं और कागज के टुकड़े अमित शाह की ओर फेंके।

विपक्ष का कहना है कि ये बिल केंद्र सरकार को गैर-बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों को अस्थिर करने का हथियार देगा। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसे अलोकतांत्रिक बताया और कहा कि बिना दोष सिद्ध हुए किसी मुख्यमंत्री को हटाना गलत है। समाजवादी पार्टी और AIMIM ने भी इसे संविधान के खिलाफ करार दिया। विपक्षी सांसदों का आरोप है कि केंद्र सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए कर सकता है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ये बिल विपक्ष को कमजोर करने की साजिश है।

दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि ये बिल राजनीति में नैतिकता लाने के लिए जरूरी हैं। अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि जब वे गुजरात में एक मामले में गिरफ्तार हुए थे, तब उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने विपक्ष से सवाल किया कि अगर वे भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, तो इस बिल का विरोध क्यों कर रहे हैं। सरकार ने ये भी साफ किया कि ये बिल संयुक्त संसदीय समिति यानी JPC को भेजे जाएंगे, जहां इस पर खुली चर्चा होगी।

ये बिल उस समय चर्चा में आए जब दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों ने जेल में रहते हुए भी अपने पद नहीं छोड़े थे। आम आदमी पार्टी ने तब कहा था कि संविधान में ऐसा कोई नियम नहीं है जो गिरफ्तारी पर इस्तीफा मांगता हो। तमिलनाडु में भी डीएमके के मंत्री सेंथिल बालाजी ने गिरफ्तारी के बावजूद पद नहीं छोड़ा था। सरकार का तर्क है कि ऐसे मामलों को रोकने के लिए साफ कानून होना चाहिए।

विपक्ष का डर ये है कि अगर ये बिल पास हो गए, तो केंद्र किसी भी विपक्षी मुख्यमंत्री या मंत्री को 30 दिन तक हिरासत में रखकर उनकी कुर्सी छीन सकता है। शिवसेना (UBT) के सांसद संजय राउत ने तो यहां तक कहा कि एनडीए के सहयोगी नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू भी इस बिल से चिंतित हैं। हालांकि, सरकार का कहना है कि गिरफ्तारी से पहले नोटिस और पूछताछ होती है, और कोई भी अदालत से जमानत या स्टे ले सकता है।

बिल को पास करने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत चाहिए, जो सरकार के पास नहीं है। इसलिए इसे JPC में भेजा गया है। लेकिन विपक्ष इस समिति का बहिष्कार भी कर सकता है। ऐसे में सवाल ये है कि क्या सरकार इस बिल के जरिए विपक्ष को नैतिकता के सवाल पर घेरना चाहती है, या फिर इसका मकसद वाकई राजनीति में साफ-सफाई लाना है।

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