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Vilasrao Deshmukh Death Anniversary: महाराष्ट्र के दिग्गज नेता विलासराव देशमुख की पुण्यतिथि, सियासत में कैसे बनाई थी अपनी जगह

Vilasrao Deshmukh Death Anniversary: महाराष्ट्र के दिग्गज नेता विलासराव देशमुख की पुण्यतिथि, सियासत में कैसे बनाई थी अपनी जगह

Vilasrao Deshmukh Death Anniversary: 14 अगस्त का दिन महाराष्ट्र के लिए खास है। आज के दिन, साल 2012 में, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के बड़े नेता विलासराव देशमुख ने चेन्नई के एक अस्पताल में अपनी आखिरी सांस ली थी। उनकी मृत्यु लिवर और किडनी की बीमारी की वजह से हुई थी। विलासराव का जीवन आसान नहीं था। लातूर जिले के एक छोटे से गांव से निकलकर उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने तक का लंबा सफर तय किया।

विलासराव ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1974 में अपने गांव से की, जहां वे सरपंच बने। 1974 से 1979 तक सरपंच रहने के बाद उन्होंने 1980 में पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा में कदम रखा। इससे पहले वे लातूर तालुका पंचायत समिति के सभापति, उस्मानाबाद जिला परिषद के सदस्य, उस्मानाबाद युवक कांग्रेस अध्यक्ष और जिला कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। 1985 से 1990 तक वे राज्यमंत्री रहे, लेकिन 1995 के विधानसभा चुनाव में राममंदिर आंदोलन की लहर में उन्हें 35 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा।

हार के बाद विलासराव ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे से मदद मांगी और विधान परिषद का चुनाव लड़ा। लेकिन बालासाहेब के समर्थन के बावजूद वे यह चुनाव हार गए। फिर भी, 1999 में कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन ने उन्हें नया मौका दिया। इस बार वे रिकॉर्ड वोटों से जीते और 18 अक्टूबर 1999 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। 2004 में उन्होंने दूसरी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला, लेकिन 26 नवंबर 2008 के मुंबई आतंकी हमले के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

2009 में विलासराव लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन लातूर सीट के आरक्षित होने और उस्मानाबाद सीट एनसीपी के पास जाने के कारण यह संभव नहीं हुआ। फिर भी, कांग्रेस ने उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें राज्यसभा भेजा। 28 मई 2009 को वे केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री बने। जनवरी 2011 से जुलाई 2011 तक वे ग्रामीण विकास मंत्री रहे, और फिर जुलाई 2011 में उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय सौंपा गया।

विलासराव ने वकालत की पढ़ाई की थी और कभी हार नहीं मानी। उन्होंने 1973 में वैशाली से शादी की थी, और उनके तीन बेटे हैं—रितेश, धीरज और अमित देशमुख। उनकी पुण्यतिथि पर महाराष्ट्र के लोग उनके योगदान को याद करते हैं।

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