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Panama Canal Dispute: ‘पनामा नहर हमारी है, हमारी रहेगी…’, ट्रंप ने शपथ लेते ही दी धमकी तो कफन बांधकर खड़ा हो गया ये देश

Panama Canal Dispute: 'पनामा नहर हमारी है, हमारी रहेगी...', ट्रंप ने शपथ लेते ही दी धमकी तो कफन बांधकर खड़ा हो गया ये देश

Panama Canal Dispute: डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद अपने पहले भाषण से ही पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने पनामा नहर (Panama Canal) पर अमेरिकी नियंत्रण की बात कहकर विवाद खड़ा कर दिया। ट्रंप का यह बयान न केवल पनामा बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार के लिए भी गंभीर मुद्दा बन गया है। पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मलीनो ने इस बयान का कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि “पनामा नहर हमारी है और हमारी ही रहेगी।” आइए जानते हैं इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी।


ट्रंप का दावा और पनामा का विरोध

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में कहा कि अमेरिका पनामा नहर को वापस लेना चाहता है क्योंकि यह रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि पनामा नहर का इस्तेमाल करने पर अमेरिकी जहाजों से अधिक शुल्क लिया जा रहा है। ट्रंप ने चीन पर भी निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वह नहर के संचालन में दखल दे रहा है।

पलटवार करते हुए पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मलीनो ने ट्रंप के दावे को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि पनामा नहर का पूरा नियंत्रण पनामा कैनाल अथॉरिटी (Panama Canal Authority) के पास है, और इसे किसी भी बाहरी ताकत को नहीं सौंपा जाएगा। मलीनो ने ट्रंप के आरोपों को आधारहीन बताया और स्पष्ट किया कि पनामा नहर पनामा के लोगों की संपत्ति है।


पनामा नहर का महत्व

पनामा नहर 82 किलोमीटर लंबी जलमार्ग है, जो अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ती है। यह नहर वैश्विक समुद्री व्यापार का अहम हिस्सा है और दुनिया के लगभग 6% समुद्री व्यापार को संभालती है।

अमेरिका के लिए यह नहर बेहद खास है क्योंकि इसका 14% व्यापार इसी मार्ग से होता है। यह नहर न केवल अमेरिका बल्कि अन्य देशों के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह समुद्री व्यापार का समय और खर्च दोनों बचाती है।


पनामा नहर का इतिहास

पनामा नहर का निर्माण 1881 में फ्रांस ने शुरू किया था, लेकिन बाद में यह परियोजना अमेरिका ने संभाली। 1914 में इसे पूरा किया गया और अमेरिका ने इस पर अधिकार जमा लिया। 1977 में एक समझौते के तहत अमेरिका ने पनामा को नहर सौंपने की प्रक्रिया शुरू की। यह प्रक्रिया 1999 में पूरी हुई, जब पनामा ने नहर का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।

आज नहर का संचालन पनामा कैनाल अथॉरिटी करती है, और यह नहर पनामा की अर्थव्यवस्था के लिए एक प्रमुख स्रोत है।


अमेरिका और चीन के बीच तनाव

पनामा नहर पर ट्रंप का बयान न केवल पनामा बल्कि चीन के लिए भी एक संदेश था। चीन ने नहर के आसपास भारी निवेश किया है और कई परियोजनाओं में शामिल है। अमेरिका इसे अपने लिए खतरा मानता है।

ट्रंप ने स्पष्ट रूप से कहा कि चीन को नहर के संचालन में किसी भी प्रकार का दखल नहीं करने दिया जाएगा। इस बयान से अमेरिका और चीन के बीच पहले से चल रहे तनाव को और बढ़ावा मिला है।


क्या नहर की वजह से जंग संभव है?

पनामा नहर के नियंत्रण को लेकर अमेरिका और पनामा के बीच विवाद ने एक भू-राजनीतिक संघर्ष की संभावना को जन्म दिया है। यह नहर वैश्विक व्यापार और रणनीतिक स्थिरता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

अगर अमेरिका नहर पर दोबारा नियंत्रण की कोशिश करता है, तो इससे पनामा और अन्य देशों के साथ उसके संबंधों में खटास आ सकती है। नहर के आसपास चीन की उपस्थिति पहले ही अमेरिका को असहज कर रही है, और यह विवाद तनाव को और बढ़ा सकता है।


पनामा का आत्मविश्वास भरा बयान

पनामा के राष्ट्रपति ने ट्रंप को स्पष्ट संदेश दिया कि नहर पर किसी अन्य देश का अधिकार स्वीकार्य नहीं होगा। उन्होंने कहा कि पनामा नहर पनामा के लोगों की संपत्ति है और इसे वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं उठता।


पनामा नहर पर ट्रंप के बयान ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और व्यापार को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। पनामा का यह स्पष्ट विरोध और चीन की बढ़ती भागीदारी इस मुद्दे को और जटिल बना सकती है। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह विवाद किस दिशा में जाता है और क्या अमेरिका वाकई इस नहर पर दोबारा नियंत्रण हासिल करने की कोशिश करता है।


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