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Parents Maintenance Rights: माता-पिता को गुजारा-भत्‍ता नहीं दिया तो अब खैर नहीं! कानून में होने जा रहा ऐसा बदलाव, बच्‍चों की बोलती होगी बंद

Parents Maintenance Rights: माता-पिता को गुजारा-भत्‍ता नहीं दिया तो अब खैर नहीं! कानून में होने जा रहा ऐसा बदलाव, बच्‍चों की बोलती होगी बंद

Parents Maintenance Rights: भारत में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण का मुद्दा एक लंबे समय से चिंता का विषय रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने बुजुर्ग माता-पिता के अधिकारों की सुरक्षा और उन्हें गुजारा-भत्ता दिलाने के लिए कानून में बड़ा बदलाव करने का प्रस्ताव रखा है। इस बदलाव का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक अपने बच्चों द्वारा उपेक्षा और दुर्व्यवहार के मामलों में अदालत में अपनी बात मजबूती से रख सकें।

भरण-पोषण कानून में बदलाव की आवश्यकता

वर्तमान में, माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) के तहत बुजुर्ग माता-पिता को अपने बच्चों से भरण-पोषण का अधिकार मिलता है। हालांकि, इस कानून के तहत मुकदमे की प्रक्रिया में वकीलों को शामिल होने की अनुमति नहीं है।

इस प्रावधान का उद्देश्य त्वरित न्याय प्रदान करना था, लेकिन व्यावहारिक अनुभव से पता चला कि बुजुर्गों को अपनी बात रखने में कठिनाई होती है। अदालतों में पेश होने और तर्क प्रस्तुत करने में होने वाली समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सरकार अब यह सुनिश्चित करना चाहती है कि वकीलों की मदद उपलब्ध हो।

मौजूदा नियमों में क्या हैं प्रावधान?

मौजूदा कानून के अनुसार, माता-पिता को अपने बच्चों के खिलाफ भरण-पोषण के लिए मामला दर्ज करने का अधिकार है। लेकिन अधिनियम की धारा 17 के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी पक्ष को कानूनी पेशेवर की मदद लेने की अनुमति नहीं है। यह प्रतिबंध सुलह प्रक्रिया को तेज और सरल बनाने के उद्देश्य से लगाया गया था।

Parents Maintenance Rights: नए प्रस्ताव की रूपरेखा

सरकार ने अब यह महसूस किया है कि वकीलों को शामिल करने से बुजुर्गों को उनके अधिकार प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। प्रस्तावित बदलावों के तहत, वरिष्ठ नागरिकों को कानूनी पेशेवर नियुक्त करने की अनुमति होगी। इससे उन्हें कोर्ट में अपनी दलीलें पेश करने में आसानी होगी और वे अपने अधिकारों की बेहतर ढंग से रक्षा कर पाएंगे।

बदलाव की प्रमुख वजह

पिछले 17 सालों से इस कानून में सुधार की मांग उठती रही है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट सहित कई अदालतों ने सरकार को सुझाव दिया कि वकीलों पर प्रतिबंध हटाया जाए। सामाजिक न्याय मंत्रालय ने भी माना कि वकीलों को अनुमति देने से बुजुर्गों को न्याय प्रणाली में बेहतर पहुंच मिल सकेगी।

तेजी से न्याय के लिए उठाए गए कदम

कानून के अनुसार, भरण-पोषण के लिए आवेदन का निपटारा 90 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए। लेकिन वकीलों के बिना यह प्रक्रिया बुजुर्गों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रही है। वकीलों को शामिल करने से न केवल न्याय प्रक्रिया आसान होगी, बल्कि यह सुनिश्चित होगा कि कोई कानूनी पैंतरेबाजी बुजुर्गों के अधिकारों को बाधित न करे।

नए बदलाव से उम्मीदें

यदि प्रस्तावित बदलाव लागू होते हैं, तो यह बुजुर्ग माता-पिता के लिए एक बड़ी राहत साबित होगा। यह कदम न केवल उन्हें वित्तीय सुरक्षा प्रदान करेगा, बल्कि उनके आत्मसम्मान को भी बनाए रखेगा। यह बदलाव उन बच्चों को भी संदेश देगा जो अपने माता-पिता की उपेक्षा करते हैं।

समाज पर प्रभाव

माता-पिता के भरण-पोषण का अधिकार (Parents Maintenance Rights) सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि एक सामाजिक मुद्दा है। यह बदलाव पारिवारिक मूल्यों को बनाए रखने और समाज में बुजुर्गों के प्रति सम्मान बढ़ाने का काम करेगा।


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