महाराष्ट्र

Pawar Family’s Electoral War in Baramati: दादा के विकास और साहेब के भरोसे के बीच क्या सोचती है बारामती की जनता, जानिए जमीनी हकीकत

Pawar Family's Electoral War in Baramati: दादा के विकास और साहेब के भरोसे के बीच क्या सोचती है बारामती की जनता, जानिए जमीनी हकीकत
Pawar Family’s Electoral War in Baramati: बारामती की राजनीति में इस बार कुछ अलग ही रंग देखने को मिल रहा है। महाराष्ट्र का सियासी संग्राम (Maharashtra Political Battle) एक नए मोड़ पर पहुंच गया है, जहां पवार परिवार के दो दिग्गज नेता एक-दूसरे के सामने खड़े हैं। यह कहानी सिर्फ एक चुनाव की नहीं, बल्कि एक परिवार के बदलते राजनीतिक समीकरणों की है।

बारामती का बदलता परिदृश्य

बारामती की गलियों में चलते हुए आप महसूस कर सकते हैं कि यहां कुछ बदल रहा है। महाराष्ट्र का सियासी संग्राम (Maharashtra Political Battle) अब नए चेहरे और नई कहानियां लेकर आया है। चमचमाती दुकानें, साफ-सुथरी सड़कें, और आधुनिक शैक्षणिक संस्थान – ये सब अजित पवार के विकास मॉडल की गवाही देते हैं। स्थानीय व्यापारी राजेश पाटिल बताते हैं कि पिछले दस सालों में बारामती में जो बदलाव आया है, वो किसी से छिपा नहीं है।

दादा की नई पहचान

अजित पवार, जिन्हें लोग प्यार से दादा कहते हैं, की छवि में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। पहले जो नेता मतदाताओं से दूरी बनाकर रखते थे, अब वही नेता घर-घर जाकर लोगों से मिल रहे हैं। स्थानीय किसान विजय माने कहते हैं, “दादा अब हर छोटी-बड़ी बैठक में शामिल हो रहे हैं। वे लोगों की समस्याएं सुन रहे हैं, उनके साथ चाय पी रहे हैं, और यहां तक कि सेल्फी भी खिंचवा रहे हैं।”

साहेब का भावनात्मक कनेक्शन

शरद पवार, जिन्हें साहेब के नाम से जाना जाता है, का बारामती से गहरा भावनात्मक जुड़ाव है। बारामती में पवार परिवार की चुनावी जंग (Pawar Family’s Electoral War in Baramati) में यह भावनात्मक कनेक्शन बड़ी भूमिका निभा रहा है। 60 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता सुनीता जाधव कहती हैं, “साहेब ने बारामती को एक छोटे से गांव से एक मॉडल शहर बनाया है। लोग उनके योगदान को कभी नहीं भूल सकते।”

परिवार का युवा चेहरा

इस चुनावी समर में एक नया मोड़ तब आया जब शरद पवार के पोते युगेंद्र पवार ने चुनावी मैदान में कदम रखा। युवा मतदाताओं के बीच युगेंद्र की लोकप्रियता बढ़ रही है। कॉलेज छात्र आदित्य शिंदे बताते हैं, “युगेंद्र हमारी पीढ़ी की भाषा बोलते हैं। वे सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं और युवाओं की समस्याओं को समझते हैं।”

महिला मतदाताओं की भूमिका

इस बार का चुनाव महिला मतदाताओं के लिए भी खास है। शरद पवार की पत्नी प्रतिभा पवार पहली बार इतनी सक्रियता से चुनाव प्रचार में उतरी हैं। महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष मीना देशमुख कहती हैं, “प्रतिभा ताई से महिलाओं को एक नई उम्मीद जगी है। वे घर-घर जाकर महिलाओं से बात कर रही हैं और उनकी समस्याएं सुन रही हैं।”

विकास बनाम विरासत

बारामती के मतदाताओं के सामने एक बड़ा सवाल है। वीपी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र पाटिल कहते हैं, “एक तरफ अजित पवार का विकास मॉडल है, जिसने शहर को आधुनिक बनाया है। दूसरी तरफ शरद पवार की विरासत है, जिन्होंने बारामती की नींव रखी। मतदाताओं को इन दोनों में से चुनना होगा।”

चुनावी माहौल में रोचक मोड़

18 नवंबर को होने वाली शरद पवार की जनसभा इस चुनावी समीकरण को और दिलचस्प बना सकती है। स्थानीय पत्रकार प्रशांत जोशी बताते हैं, “दोनों नेताओं के समर्थक पूरी ताकत से प्रचार में जुटे हैं। सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक, हर जगह इस चुनाव की चर्चा है।”

जनता की राय

बारामती के लोगों की राय बंटी हुई है। कुछ लोग विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं, तो कुछ परंपरा और विरासत को। दुकानदार रमेश वाघमारे कहते हैं, “यह चुनाव बारामती के भविष्य का फैसला करेगा। हर वोट मायने रखता है।”

20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में बारामती की जनता अपना फैसला सुनाएगी। तब तक यह देखना दिलचस्प होगा कि पवार परिवार का यह राजनीतिक संघर्ष किस करवट बैठता है।

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