महाराष्ट्र

Pimpri Food Poisoning: पिंपरी गांव में चावल से फूड प्वाइजनिंग, 206 लोग बीमार, स्वास्थ्य विभाग की त्वरित कार्रवाई

Pimpri Food Poisoning: पिंपरी गांव में चावल से फूड प्वाइजनिंग, 206 लोग बीमार, स्वास्थ्य विभाग की त्वरित कार्रवाई

Pimpri Food Poisoning: पश्चिमी महाराष्ट्र के बीड जिले में एक छोटा सा गांव है पिंपरी (घाट), जो अपनी सांस्कृतिक परंपराओं और सामुदायिक एकता के लिए जाना जाता है। हर साल, इस गांव में हनुमान देवस्थान के पास सामूहिक भोज (Community Feast) का आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों लोग एक साथ भोजन करते हैं। यह आयोजन न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि गांव वालों के बीच आपसी भाईचारे को भी मजबूत करता है। लेकिन 10 मई 2025 को यह उत्सव तब सुर्खियों में आ गया, जब फूड प्वाइजनिंग (Food Poisoning) ने 206 लोगों को बीमार कर दिया। यह घटना नई पीढ़ी के लिए एक सबक है कि परंपराओं के साथ-साथ स्वास्थ्य और सुरक्षा पर भी ध्यान देना कितना जरूरी है।

पिंपरी गांव में उस दिन सुबह से ही हलचल थी। हनुमान मंदिर के पास सामूहिक भोज की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थीं। लगभग 1000 लोगों के लिए भोजन तैयार किया गया था, जिसमें चावल, सब्जी, रोटी, छांछ, और बुंदी शामिल थी। गांव के लोग इस आयोजन को लेकर उत्साहित थे, क्योंकि यह उनके लिए एकता और खुशी का मौका था। लेकिन दोपहर का भोजन खत्म होने के कुछ घंटों बाद, तड़के से लोगों को उल्टी, पेट दर्द, और मिचली की शिकायतें शुरू हो गईं। गांव में अफरा-तफरी मच गई। कुछ लोग इतने गंभीर रूप से बीमार हो गए कि उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ा। यह खबर न केवल बीड, बल्कि पूरे महाराष्ट्र में फैल गई।

गांव के सरपंच काशिनाथ कातकडे ने तुरंत स्थिति को संभाला। उन्होंने गंभीर मरीजों को अंबाजोगाई के स्वामी रामानंद तीर्थ अस्पताल पहुंचाया। अस्पताल के आपातकालीन विभाग ने तेजी से काम शुरू किया। सीएमओ मारुति आंबाड, नर्सें, और कर्मचारी राहुल गित्ते ने दिन-रात मेहनत कर मरीजों का इलाज किया। कुल 35 मरीजों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, जबकि बाकी 171 लोगों का इलाज स्वास्थ्य विभाग की टीम ने गांव में ही किया। यह घटना दिखाती है कि आपात स्थिति में स्थानीय नेतृत्व और स्वास्थ्य सेवाएं कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। नई पीढ़ी, जो सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें देखती है, यह समझ सकती है कि सामुदायिक एकता और त्वरित कार्रवाई कितनी जरूरी है।

जैसे ही यह खबर फैली, बीड के विधायक और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता धनंजय मुंडे (Dhananjay Munde) हरकत में आए। उन्होंने अस्पताल प्रशासन से संपर्क कर मरीजों की स्थिति की जानकारी ली। धनंजय मुंडे ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि सभी प्रभावित लोगों को तुरंत उचित चिकित्सा सुविधाएं दी जाएं। उनकी सक्रियता ने न केवल मरीजों के परिवारों को राहत दी, बल्कि यह भी दिखाया कि जनप्रतिनिधि संकट के समय कितनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। तालुका स्वास्थ्य अधिकारी बालासाहेब लोमटे ने भी तुरंत कार्रवाई की। उन्होंने घाटनांदूर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और आसपास के स्वास्थ्य उपकेंद्रों से डॉक्टरों और कर्मचारियों को औषधि स्टॉक के साथ गांव भेजा। डॉ. लोमटे स्वयं मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों का इलाज किया। उनकी टीम ने बताया कि अब सभी मरीजों की हालत स्थिर है।

स्वास्थ्य विभाग ने इस घटना की जांच शुरू की। प्रारंभिक जांच में पता चला कि भोजन में शामिल चावल फूड प्वाइजनिंग (Food Poisoning) का कारण हो सकता है। भोजन को तेज धूप में पहले से पकाकर रखा गया था और देर से परोसा गया। गर्म मौसम और भोजन को ठीक से स्टोर न करने के कारण चावल खराब हो गए होंगे। यह जानकारी नई पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है। सामूहिक आयोजनों में भोजन की गुणवत्ता और स्टोरेज पर ध्यान देना कितना जरूरी है, यह इस घटना से समझा जा सकता है। स्वास्थ्य विभाग ने अब गांव में जागरूकता अभियान शुरू करने की योजना बनाई है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

पिंपरी गांव की यह घटना केवल एक हादसा नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को भी दर्शाती है। बीड जैसे क्षेत्रों में, जहां मेडिकल सुविधाएं सीमित हैं, ऐसी आपात स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया कितनी महत्वपूर्ण है, यह सभी ने देखा। धनंजय मुंडे की सक्रियता और स्वास्थ्य विभाग की मेहनत ने स्थिति को नियंत्रण में लाया। लेकिन यह भी सच है कि सामूहिक भोज जैसे आयोजनों में स्वच्छता और भोजन की गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। नई पीढ़ी, जो डिजिटल युग में तेजी से खबरें पढ़ती है, इस घटना से सीख सकती है कि स्वास्थ्य और सुरक्षा को कभी हल्के में नहीं लेना चाहिए।

यह घटना बीड के लोगों के लिए एक कठिन अनुभव थी। लेकिन जिस तरह गांव के सरपंच, स्वास्थ्य विभाग, और स्थानीय नेता एकजुट हुए, उसने दिखाया कि संकट के समय एकता कितनी ताकत देती है। पिंपरी गांव के लोग अब धीरे-धीरे सामान्य जीवन की ओर लौट रहे हैं। अस्पताल में भर्ती मरीजों की हालत में सुधार हो रहा है, और गांव में स्वास्थ्य विभाग की टीमें निगरानी कर रही हैं। यह कहानी न केवल एक हादसे की है, बल्कि उस जज्बे की भी है, जो संकट में भी उम्मीद जगाए रखता है।


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