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पुरुलिया हथियार कांड: 29 साल बाद भी फरार है मास्टरमाइंड, क्या कभी मिलेगा न्याय?

पुरुलिया हथियार कांड: 29 साल बाद भी फरार है मास्टरमाइंड, क्या कभी मिलेगा न्याय?
पुरुलिया हथियार कांड: पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में 29 साल पहले हुई एक घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। ये घटना थी पुरुलिया हथियार कांड, जिसमें खेतों के ऊपर से सैकड़ों खतरनाक हथियार गिराए गए थे। आज भी इस मामले की गूंज सुनाई देती है, क्योंकि इसके मास्टरमाइंड को अभी तक सजा नहीं मिल पाई है।

पुरुलिया हथियार कांड: क्या हुआ था उस दिन?

17 दिसंबर 1995 की वो रात पुरुलिया के लोग कभी नहीं भूल पाएंगे। उस रात, एक विमान ने पुरुलिया के जौपुर गांव के ऊपर उड़ान भरी और फिर अचानक कुछ अजीब सा होने लगा। आसमान से हथियारों की बारिश होने लगी। ये कोई मामूली हथियार नहीं थे। इनमें शामिल थे सैकड़ों AK-47 राइफल, एंटी-टैंक ग्रेनेड, रॉकेट लॉन्चर और 25 हजार से ज्यादा गोलियां।

सोचिए, अगर आप अपने खेत में काम कर रहे हों और अचानक आसमान से ऐसे खतरनाक हथियार गिरने लगें, तो कैसा लगेगा? पुरुलिया के लोगों ने वो डर झेला था। ये घटना इतनी बड़ी थी कि पूरे देश में हड़कंप मच गया।

मास्टरमाइंड की कहानी: नील्स होल्क कौन है?

इस पूरे कांड का मास्टरमाइंड था नील्स होल्क नाम का एक शख्स। वो डेनमार्क का रहने वाला है। नील्स ने खुद माना है कि उसने ये सारे हथियार गिरवाए थे। लेकिन जब भारत की पुलिस ने दूसरे आरोपियों को पकड़ा, तब तक नील्स भाग चुका था।

नील्स के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन ये पता है कि वो हथियारों की तस्करी में शामिल था। उसने ऐसा क्यों किया, इसका जवाब शायद वही दे सकता है।

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न्याय की लंबी दौड़: क्यों नहीं पकड़ा जा सका नील्स?

अब सवाल ये है कि अगर नील्स ने ये सब किया, तो उसे अब तक सजा क्यों नहीं मिली? इसकी वजह है कानून की पेचीदगियां। भारत सरकार 2002 से कोशिश कर रही है कि नील्स को यहां लाया जाए और उस पर मुकदमा चलाया जाए। लेकिन ये इतना आसान नहीं है।

नील्स अभी डेनमार्क में है। भारत चाहता है कि डेनमार्क उसे भारत भेज दे, जिसे कानूनी भाषा में ‘प्रत्यर्पण’ कहते हैं। लेकिन डेनमार्क की अदालतें इसके लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि अगर नील्स को भारत भेजा गया, तो उसके साथ बुरा बर्ताव हो सकता है।

हाल ही में, डेनमार्क की एक अदालत ने फिर से भारत की अपील को खारिज कर दिया है। इसका मतलब है कि नील्स अभी भी डेनमार्क में ही रहेगा।

क्या होगा आगे?

इस मामले में अब क्या होगा, ये कहना मुश्किल है। भारत सरकार शायद फिर से कोशिश करेगी कि नील्स को यहां लाया जाए। लेकिन ये आसान नहीं होगा। दूसरी तरफ, पुरुलिया के लोग अब भी उस रात को नहीं भूले हैं जब आसमान से हथियार बरसे थे।

ये केस हमें बताता है कि कभी-कभी न्याय मिलने में बहुत वक्त लग जाता है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हम कोशिश करना छोड़ दें। पुरुलिया हथियार कांड की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। शायद एक दिन इस मामले का सही अंत हो और सभी सवालों के जवाब मिल जाएं।

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