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Rare Bombay and Golden Blood Group: क्यों है बॉम्बे और गोल्डन ब्लड ग्रुप इतना दुर्लभ और खास, दुनिया में सिर्फ 45 लोगों का अनमोल खून

Rare Bombay and Golden Blood Group: क्यों है बॉम्बे और गोल्डन ब्लड ग्रुप इतना दुर्लभ और खास, दुनिया में सिर्फ 45 लोगों का अनमोल खून

Rare Bombay and Golden Blood Group: खून हमारे शरीर का एक अनमोल हिस्सा है, जो हमें जीवित रखता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ लोगों का खून इतना दुर्लभ होता है कि उसे ढूंढना किसी खजाने की खोज जैसा है? ऐसा ही एक ब्लड ग्रुप है बॉम्बे ब्लड ग्रुप (Bombay Blood Group), जो 10,000 भारतीयों में से केवल एक में पाया जाता है। इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक है गोल्डन ब्लड ग्रुप (Golden Blood Group), जो पूरी दुनिया में सिर्फ 45 लोगों के पास है। ये दोनों ब्लड ग्रुप अपनी अनोखी विशेषताओं के कारण बेहद खास हैं। इस लेख में, हम इन दुर्लभ ब्लड ग्रुप्स की कहानी, उनकी खोज और उनके महत्व को नई पीढ़ी के लिए सरल और रोचक तरीके से समझेंगे।

साल 1952 में, मुंबई में डॉ. वाईएम भेंडे ने एक ऐसे ब्लड ग्रुप की खोज की, जो सामान्य ब्लड ग्रुप्स से बिल्कुल अलग था। इसे बॉम्बे ब्लड ग्रुप (Bombay Blood Group) का नाम दिया गया, क्योंकि इसकी खोज मुंबई में हुई थी। यह ब्लड ग्रुप इतना दुर्लभ है कि भारत में हर 10,000 लोगों में से सिर्फ एक व्यक्ति में यह पाया जाता है। इसकी खासियत यह है कि इसमें एच एंटीजन की कमी होती है। एच एंटीजन वह बुनियादी तत्व है, जो ए, बी, या एबी ब्लड ग्रुप्स को बनाने में मदद करता है। जब यह एंटीजन मौजूद नहीं होता, तो यह ब्लड ग्रुप न तो ए, बी, एबी और न ही ओ ब्लड ग्रुप के साथ मेल खाता है। इस वजह से बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाले लोग केवल अपने ही ब्लड ग्रुप का खून ले सकते हैं।

हाल ही में, भारत में एक 30 वर्षीय महिला का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ। इस ऑपरेशन के दौरान रक्त की जरूरत पड़ी, लेकिन उनका ब्लड ग्रुप बॉम्बे ब्लड ग्रुप था। इस दुर्लभ ब्लड ग्रुप (Rare Blood Group) को ढूंढना एक बड़ी चुनौती थी। सौभाग्य से, डोनर मिल गया और ऑपरेशन सफल रहा। लेकिन यह घटना बताती है कि ऐसे दुर्लभ ब्लड ग्रुप्स के लिए डोनर ढूंढना कितना मुश्किल हो सकता है। सामान्य ब्लड ग्रुप्स जैसे ओ-नेगेटिव को यूनिवर्सल डोनर माना जाता है, लेकिन बॉम्बे ब्लड ग्रुप के लिए यह भी काम नहीं करता। इस ब्लड ग्रुप की खोज ने चिकित्सा जगत में एक नया अध्याय जोड़ा, क्योंकि इससे पहले डॉक्टरों को ऐसे मामलों का सामना नहीं करना पड़ा था।

बॉम्बे ब्लड ग्रुप की दुर्लभता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह दुनिया की कुल आबादी का सिर्फ 0.0004 प्रतिशत है। यूरोप में यह और भी दुर्लभ है, जहां 10 लाख लोगों में से केवल एक व्यक्ति में यह पाया जाता है। मुंबई में यह थोड़ा कम दुर्लभ है, लेकिन फिर भी डोनर ढूंढना आसान नहीं है। ब्लड ग्रुप टेस्टिंग के दौरान यह ओ ब्लड ग्रुप जैसा दिखता है, लेकिन क्रॉस-मैचिंग में यह किसी अन्य ब्लड ग्रुप के साथ मेल नहीं खाता। इस वजह से, अगर किसी मरीज को इस ब्लड ग्रुप की जरूरत हो, तो समय पर डोनर मिलना एक बड़ी चुनौती होती है।

अब बात करते हैं गोल्डन ब्लड ग्रुप (Golden Blood Group) की, जो दुनिया का सबसे दुर्लभ ब्लड ग्रुप है। इसे आरएच नल (Rh Null Blood Group) भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें आरएच फैक्टर पूरी तरह अनुपस्थित होता है। आमतौर पर, ब्लड ग्रुप में आरएच फैक्टर या तो पॉजिटिव होता है या नेगेटिव, लेकिन गोल्डन ब्लड ग्रुप में यह नल होता है। इसकी खोज 1960 में हुई थी, और इसे गोल्डन ब्लड इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह इतना दुर्लभ है कि इसकी कीमत सोने से भी ज्यादा मानी जाती है। पूरी दुनिया में सिर्फ 45 लोग इस ब्लड ग्रुप के हैं, और इनमें से केवल नौ लोग ही सक्रिय रूप से रक्तदान कर सकते हैं।

गोल्डन ब्लड ग्रुप की सबसे खास बात यह है कि इसे किसी भी ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति को दिया जा सकता है। इसके लाल रक्त कोशिकाओं में कोई भी एंटीजन नहीं होता, जिसके कारण यह यूनिवर्सल डोनर की तरह काम करता है। लेकिन अगर गोल्डन ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति को खून की जरूरत पड़ती है, तो उनके लिए केवल उसी ब्लड ग्रुप का खून काम करता है। यही वजह है कि इस ब्लड ग्रुप को इंटरनेशनल स्तर पर ट्रांसपोर्ट करना मुश्किल है। ऐसे में, सक्रिय डोनर्स से मिला खून जमा करके रखा जाता है, ताकि जरूरत पड़ने पर उसी व्यक्ति को वापस दिया जा सके।

गोल्डन ब्लड ग्रुप वाले लोगों को कुछ स्वास्थ्य समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, उन्हें अक्सर एनीमिया की शिकायत हो सकती है। इस वजह से उन्हें आयरन युक्त भोजन लेने की सलाह दी जाती है। यह ब्लड ग्रुप अमेरिका, कोलंबिया, ब्राजील और जापान जैसे देशों में पाया गया है। 2018 में एक रिसर्च में पता चला कि दुनिया भर में सिर्फ 45 लोग ही इस ब्लड ग्रुप के हैं। इसकी दुर्लभता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 8 अरब की आबादी में यह संख्या न के बराबर है।

बॉम्बे ब्लड ग्रुप और गोल्डन ब्लड ग्रुप (Rare Blood Group) की कहानी न केवल चिकित्सा विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह नई पीढ़ी को यह भी बताती है कि हमारा शरीर कितना अनोखा और जटिल है। इन ब्लड ग्रुप्स की खोज ने रक्तदान और ट्रांसफ्यूजन की प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है, लेकिन साथ ही यह भी दिखाया है कि विज्ञान और जागरूकता से हर चुनौती का सामना किया जा सकता है। रक्तदान एक नेक काम है, लेकिन जब बात इन दुर्लभ ब्लड ग्रुप्स की आती है, तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

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