दिल्ली का लाल किला (Red Fort) भारत की शान और इतिहास का जीता-जागता उदाहरण है। हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये किला, जिसे आज लाल रंग के लिए जाना जाता है, कभी सफेद हुआ करता था? जी हां, लाल किला पहले सफेद था। इसकी दीवारें और इमारतें सफेद चूने और संगमरमर से बनी थीं। लेकिन वक्त के साथ इसका रंग लाल कैसे हुआ, ये जानना बेहद दिलचस्प है।
शाहजहां का ‘सफेद किला’
मुगल सम्राट शाहजहां ने 17वीं सदी में लाल किले का निर्माण करवाया था। उस समय इसे सफेद संगमरमर और चूने से बनाया गया था, जिससे इसकी दीवारें और इमारतें सफेद दिखती थीं। ये किला उस समय की अद्भुत मुगल वास्तुकला का प्रतीक था। शाहजहां ने इसे 1638 में बनवाना शुरू किया, और इसके सफेद पत्थर इसकी सुंदरता को और बढ़ाते थे। सफेद रंग के कारण इसे “सफेद किला” कहा जाता था। किले का ये स्वरूप अपनी चमक और शांति का संदेश देता था।
अंग्रेजों ने बदला रंग
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद, जब अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को हटा दिया, तब उन्होंने लाल किले (Red Fort) में कई बदलाव किए। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में, सफेद चूने से बनी दीवारें और इमारतें समय के साथ कमजोर और जर्जर होने लगीं।
इस समस्या को हल करने के लिए अंग्रेजों ने किले की मरम्मत करवाई और इसे लाल रंग से रंगवा दिया। इसका कारण ये था कि लाल बलुआ पत्थर उस समय की प्रचलित निर्माण सामग्री थी, और इसे किले की दीवारों पर लगाकर संरक्षण के लिए इस्तेमाल किया गया। लाल रंग न केवल किले की दीवारों को मजबूत बनाता था, बल्कि मौसम के प्रभाव से रंग भी खराब नहीं होता था।
सफेद से लाल किला बनने का कारण
जब लाल किले का रंग सफेद से लाल में बदला गया, तो इसके पीछे मुख्य कारण था दीवारों और इमारतों का संरक्षण। सफेद चूने की दीवारें समय के साथ खराब हो रही थीं, और उन्हें मजबूत बनाने के लिए लाल रंग का उपयोग किया गया। ये रंग लाल बलुआ पत्थर के समान दिखता था, जो उस समय निर्माण के लिए उपयुक्त माना जाता था।
लाल किले का ये रंग धीरे-धीरे इसकी पहचान बन गया। आज ये किला अपनी भव्यता और लाल रंग के कारण दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है।
लाल किले का ऐतिहासिक महत्व
लाल किला (Red Fort) न केवल भारत की ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह हमारी स्वतंत्रता और गौरव का प्रतीक भी है। 1947 में, जब भारत आजाद हुआ, तो देश का पहला तिरंगा लाल किले की प्राचीर पर फहराया गया था। तब से लेकर आज तक, यह परंपरा जारी है।
इस किले ने भारत के कई ऐतिहासिक पलों को देखा है। इसका रंग बदलने से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक, यह किला हर पल का गवाह है।
दिल्ली का लाल किला (Red Fort) सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि भारत की ऐतिहासिक धरोहर और गौरव का प्रतीक है। इसका सफेद से लाल रंग में बदलना केवल इसकी संरचना का बदलाव नहीं, बल्कि समय के साथ इसके महत्व और पहचान में हुआ परिवर्तन भी है।
लाल किले का इतिहास (History of Red Fort) यह सिखाता है कि हमारी विरासत समय के साथ बदल सकती है, लेकिन इसकी अहमियत हमेशा कायम रहती है। यह किला हमें अपनी संस्कृति, वास्तुकला और इतिहास पर गर्व करने का अवसर देता है।
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