रिटायर्ड टीचर्स: भारत में सरकारी स्कूलों की स्थिति अक्सर चिंताजनक होती है. ग्रामीण इलाकों में तो और भी बुरा हाल है – कई बार एक ही अध्यापक को कई कक्षाओं को पढ़ाना पड़ता है, तो कई बार पढ़ाने के लिए शिक्षक ही नहीं मिलते. बच्चों की संख्या कम होने से कई स्कूल बंद होने के कगार पर पहुंच जाते हैं. महाराष्ट्र में भी ऐसे लगभग 15,000 स्कूल हैं जहां मुश्किल से 20 बच्चे पढ़ते हैं. सरकार की कोशिश है कि इन स्कूलों को बंद करने की बजाये, किसी तरह चलाया जाए. इसीलिए, महाराष्ट्र सरकार ने एक नया और विवादित कदम उठाने का फैसला किया है.
सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या 10 से कम है, वहां एक रिटायर्ड शिक्षक और एक नियमित शिक्षक को पढ़ाने के लिए रखा जाएगा. इस फैसले से शिक्षा के क्षेत्र में हलचल मच गई है. जहां कुछ विशेषज्ञ सरकार के इस कदम की सराहना कर रहे हैं, वहीं कई शिक्षक संगठन और शिक्षाविद इसकी आलोचना कर रहे हैं.
आलोचकों का तर्क है कि रिटायर्ड शिक्षक कई बार नई शिक्षण विधियों और तकनीक से वाकिफ नहीं होते, जिसका असर सीधे बच्चों की पढ़ाई पर पड़ेगा. इसके अलावा, उनका कहना है कि जब हज़ारों युवा प्रशिक्षित शिक्षक बेरोज़गार घूम रहे हैं, तो रिटायर्ड लोगों को काम पर वापस लाना एक गलत कदम है.
हालांकि, सरकार और कुछ अन्य शिक्षा विशेषज्ञ इस फैसले के पक्ष में हैं. उनका कहना है कि रिटायर्ड शिक्षकों के पास अनुभव का खज़ाना होता है. छोटे-छोटे गांवों में कई बार शिक्षक मिलते ही नहीं हैं – ऐसे में बंद होने की कगार पर पहुंचे स्कूलों को बचाने के लिए ये एक अस्थायी समाधान हो सकता है.
सरकार का यह भी मानना है कि रिटायर्ड शिक्षकों को नियुक्त करने से स्कूलों में बच्चों का ड्रॉप आउट रेट (पढ़ाई बीच में छोड़ने की दर) भी कम होगा, और शिक्षा का स्तर भी धीरे-धीरे बेहतर होगा.
शिक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि यह फैसला महज़ एक अस्थायी समाधान है. लंबे समय तक शिक्षा व्यवस्था को सही करने के लिए युवा शिक्षकों की भर्ती, नए स्कूलों का निर्माण, और शिक्षा में तकनीक का सही इस्तेमाल ज़रूरी है.