SC Questions Govt Control of Banke Bihari: मथुरा का मशहूर बांके बिहारी मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है। उत्तर प्रदेश सरकार ने मंदिर के प्रशासन को अपने नियंत्रण में लेने का फैसला किया, जिसके खिलाफ मंदिर की प्रबंधन समिति सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार से सवाल किया कि देशभर में कितने मंदिरों का नियंत्रण सरकार ने अपने हाथ में लिया है। कोर्ट ने मंदिर समिति से कहा कि वे इसकी पूरी जानकारी जुटाएं।
यह विवाद तब शुरू हुआ, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश-2025 लागू किया। इस अध्यादेश के तहत मंदिर का पूरा प्रबंधन राज्य सरकार के पास चला गया। मंदिर की प्रबंधन समिति ने वकील तन्वी दुबे के जरिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और इस फैसले को चुनौती दी। समिति का कहना है कि सरकार का यह कदम गलत है और मंदिर जैसे निजी धार्मिक संस्थान का प्रबंधन सरकार के पास नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मंदिर समिति की ओर से पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि सरकार मंदिर की 300 करोड़ रुपये की निधि का इस्तेमाल कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए करना चाहती है, जो गलत है। सिब्बल ने यह भी बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 8 नवंबर 2023 को सरकार को मंदिर की निधि से जमीन खरीदने की इजाजत देने से मना कर दिया था। फिर भी, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मंदिर की निधि से 5 एकड़ जमीन खरीदने की अनुमति ले ली।
सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2025 को सरकार की याचिका स्वीकार कर ली थी और बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन खरीदने की इजाजत दी थी। कोर्ट ने यह भी कहा था कि जमीन मंदिर या ट्रस्ट के नाम पर होनी चाहिए। लेकिन मंदिर समिति और श्रद्धालु देवेंद्र गोस्वामी ने इस फैसले का विरोध किया। उनका कहना है कि यह आदेश बिना मंदिर समिति की बात सुने दिया गया, जो गलत है। समिति का यह भी आरोप है कि सरकार का मकसद मंदिर की संपत्ति और प्रशासन पर कब्जा करना है।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी पूछा कि याचिकाकर्ता सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आए, इलाहाबाद हाईकोर्ट क्यों नहीं गए। जवाब में कपिल सिब्बल ने कहा कि मामला गंभीर है, क्योंकि सरकार निजी धार्मिक संस्थान को अपने नियंत्रण में ले रही है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि मंदिर से जुड़ा एक और मामला दूसरी बेंच के पास लंबित है। इसलिए दोनों मामलों को एक साथ सुनने के लिए मुख्य न्यायाधीश की मंजूरी चाहिए।
मंदिर की प्रबंधन समिति और 350 सेवायतों का कहना है कि सरकार का रवैया ठीक नहीं है। उनका आरोप है कि सरकार ने पहले हाईकोर्ट के फैसले को नजरअंदाज किया और अब सुप्रीम कोर्ट के जरिए मंदिर की संपत्ति पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है। यह मामला अब देशभर के मंदिरों के सरकारी नियंत्रण पर सवाल उठा रहा है।