Sea Immersion of Ganesh Idols Ruling: मुंबई में गणेशोत्सव की रौनक हर साल की तरह इस बार भी देखने को मिलेगी, लेकिन इस बार एक बड़ा सवाल सबके मन में है। गणपति की बड़ी मूर्तियों का विसर्जन समुद्र में होगा या नहीं? इस सवाल का जवाब देने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक हलफनामा पेश किया है। इसमें कहा गया है कि बड़ी गणेश मूर्तियों का विसर्जन समुद्र में ही होगा, लेकिन पर्यावरण को ध्यान में रखकर कुछ जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
गणेशोत्सव मुंबई की शान है। सौ साल से भी ज्यादा पुरानी इस परंपरा में हर साल लाखों लोग शामिल होते हैं। खासकर मुंबई में, गणपति की विशाल मूर्तियों का समुद्र में विसर्जन एक बड़ा आयोजन होता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से पर्यावरण को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं। लोग कहते हैं कि प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी मूर्तियां और समुद्र में विसर्जन से समुद्री जीवों को नुकसान होता है। इस वजह से कई लोग कृत्रिम तालाबों में विसर्जन की मांग कर रहे हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में सावधानी बरती है। सांस्कृतिक मामलों के मंत्री आशीष शेलार ने राजीव गांधी विज्ञान और प्रौद्योगिकी आयोग से इस बारे में एक स्टडी करवाई। इस स्टडी के लिए मशहूर वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोडकर की अगुवाई में एक कमेटी बनाई गई। कमेटी ने पीओपी और पर्यावरण पर इसके असर का जायजा लिया और कुछ सुझाव दिए। इन सुझावों के आधार पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पीओपी मूर्तियों पर लगे बैन को हटा लिया।
बॉम्बे हाईकोर्ट में बुधवार को इस मामले की सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और जस्टिस संदीप मार्ने की बेंच के सामने सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल बीरेंद्र सराफ ने हलफनामा पेश किया। इसमें सरकार ने साफ किया कि मुंबई की बड़ी और मशहूर गणेश मूर्तियों का विसर्जन परंपरा के मुताबिक समुद्र में ही होगा। लेकिन छोटी और घरेलू मूर्तियों के लिए कृत्रिम तालाबों की व्यवस्था पहले की तरह बनी रहेगी।
सरकार ने ये भी कहा कि पर्यावरण का ध्यान रखा जाएगा। समुद्र में विसर्जन के दौरान कुछ खास उपाय किए जाएंगे ताकि समुद्री जीवन को कम से कम नुकसान हो। लेकिन ये फैसला कई लोगों को पसंद नहीं आया। कुछ लोग चाहते हैं कि सभी मूर्तियों का विसर्जन कृत्रिम तालाबों में हो ताकि समुद्र को प्रदूषण से बचाया जा सके।
मंत्री आशीष शेलार का कहना है कि पीओपी पर बैन लगाने से मूर्तिकारों की रोजी-रोटी पर असर पड़ सकता है। लाखों लोग इस काम से जुड़े हैं, और ये एक बड़ा उद्योग है। सरकार का मानना है कि परंपरा और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। इसीलिए उन्होंने समुद्र में विसर्जन की अनुमति दी, लेकिन साथ ही पर्यावरण के लिए कदम उठाने का वादा भी किया।
इस मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी। कोर्ट में सरकार और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के बीच बहस चल रही है। हर कोई ये जानना चाहता है कि क्या गणेशोत्सव की सौ साल पुरानी परंपरा बरकरार रहेगी या फिर पर्यावरण की चिंता में इसमें बदलाव होगा।
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