महाराष्ट्र में नागपुर-गोवा शक्तिपीठ महामार्ग (शक्तिपीठ हाईवे/Shaktipeeth Expressway) की चर्चा जोरों पर है। यह महत्वाकांक्षी परियोजना न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की है, बल्कि यह राज्य के आर्थिक विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने का भी वादा करती है। लेकिन हाल ही में वित्त विभाग की एक रिपोर्ट ने इस परियोजना को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, इस हाईवे के लिए जरूरी धनराशि राज्य को कर्ज के भारी बोझ तले दबा सकती है।
मंगलवार, 22 जून को महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने शक्तिपीठ हाईवे (Shaktipeeth Expressway/शक्तिपीठ हाईवे) के लिए भूमि अधिग्रहण (लैंड एक्विजिशन/land acquisition) को मंजूरी दी। इस फैसले से 802 किलोमीटर लंबे इस हाईवे के निर्माण की प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद थी। यह हाईवे वर्धा जिले के पवनार से शुरू होकर सिंधुदुर्ग के पात्रादेवी तक जाएगा, जो महाराष्ट्र-गोवा सीमा के पास है। यह परियोजना 12 जिलों—वर्धा, यवतमाल, हिंगोली, नांदेड़, परभणी, बीड, लातूर, धाराशिव, सोलापुर, सांगली, कोल्हापुर और सिंधुदुर्ग—को जोड़ेगी। इसके साथ ही यह 18 प्रमुख तीर्थ स्थलों, जैसे महुर, तुलजापुर, कोल्हापुर और पंढरपुर, को भी जोड़ेगा। लेकिन इस परियोजना की राह इतनी आसान नहीं है, क्योंकि इसका आर्थिक और सामाजिक प्रभाव लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
वित्त विभाग की हालिया रिपोर्ट ने इस परियोजना को लेकर एक नया मोड़ ला दिया। इस रिपोर्ट में बताया गया कि शक्तिपीठ हाईवे के लिए भूमि अधिग्रहण (land acquisition/भूमि अधिग्रहण) और योजना के लिए 20,787 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। यह राशि मंत्रिमंडल ने मंजूर तो कर दी, लेकिन वित्त विभाग ने चेतावनी दी कि यह राशि राज्य के कर्ज के बोझ को और बढ़ा देगी। मार्च 2026 तक महाराष्ट्र सरकार पर पहले से ही 9.32 लाख करोड़ रुपये का कर्ज होने की संभावना है। इस नई परियोजना के लिए लिया जाने वाला कर्ज राज्य की आर्थिक स्थिति पर और दबाव डालेगा। वित्त विभाग ने यह भी कहा कि उच्च ब्याज दरों पर कर्ज लेना और बजट से बाहर की परियोजनाओं को प्राथमिकता देना राज्य की कर्ज लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
यह परियोजना न केवल आर्थिक चुनौतियां ला रही है, बल्कि सामाजिक विरोध भी इसका एक बड़ा हिस्सा है। खासकर धाराशिव जिले में, किसानों ने इस हाईवे के लिए अपनी जमीन देने से साफ इनकार कर दिया है। वानेवाडी गांव के किसानों ने लगातार दो दिन तक भूमि अधिग्रहण के लिए आए अधिकारियों को वापस भेज दिया। इस दौरान किसानों और पुलिस के बीच तनाव भी देखा गया। किसानों का कहना है कि उनकी पुश्तैनी जमीनें उनकी आजीविका का आधार हैं, और वे किसी भी कीमत पर इन्हें छोड़ने को तैयार नहीं हैं। कोल्हापुर और सांगली जैसे जिलों में भी इस परियोजना के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। पिछले साल, कोल्हापुर में किसानों ने भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना की प्रतियां जलाकर अपना गुस्सा जाहिर किया था।
यह हाईवे केवल एक सड़क नहीं है; यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक गलियारा भी है, जिसका उद्देश्य तीर्थयात्रियों के लिए यात्रा को आसान बनाना और पर्यटन को बढ़ावा देना है। इस परियोजना से नागपुर से गोवा तक की यात्रा का समय 18 घंटे से घटकर 8 घंटे हो जाएगा। यह 12 जिलों के उन क्षेत्रों को भी जोड़ेगा, जो अभी तक रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़े नहीं हैं। अधिकारियों का कहना है कि यह परियोजना स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी और रोजगार के नए अवसर पैदा करेगी। लेकिन इसके लिए जरूरी 9,300 हेक्टेयर जमीन में से 8,200 हेक्टेयर निजी कृषि भूमि है, जिसके अधिग्रहण ने किसानों के बीच असंतोष पैदा किया है।
वित्त विभाग ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया कि मेगा परियोजनाओं के लिए बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी) नीति की समीक्षा की जाए और उपलब्ध वित्तीय संसाधनों का सही उपयोग हो। इस परियोजना का कुल खर्च 80,000 करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान है, जिसमें से 20,787 करोड़ रुपये केवल भूमि अधिग्रहण और प्रारंभिक योजना के लिए हैं। इस विशाल राशि ने न केवल वित्त विभाग को चिंता में डाला है, बल्कि यह सवाल भी उठाया है कि क्या यह परियोजना वास्तव में राज्य की आर्थिक स्थिति के लिए टिकाऊ है।
किसानों का विरोध और वित्त विभाग की चेतावनी इस परियोजना को एक जटिल मोड़ पर लाकर खड़ा कर रही है। एक तरफ, यह हाईवे महाराष्ट्र के लिए एक नया विकास का रास्ता खोल सकता है, वहीं दूसरी तरफ, इसके लिए जरूरी कर्ज और जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया ने कई सवाल खड़े किए हैं। यह परियोजना न केवल तकनीकी और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक संवेदनशीलता और संतुलन का भी सवाल उठाती है।
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