Shinde Mission: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके गुट ने अब मुंबई महानगरपालिका (BMC) पर अपनी पकड़ मजबूत करने का लक्ष्य तय किया है। दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे की शिवसेना को लगातार झटके लग रहे हैं। मुंबई में पार्टी के कुछ विधायक और नेता ठाकरे का साथ छोड़ सकते हैं, ऐसा शिंदे गुट के सांसद नरेश म्हस्के ने इशारा दिया है।
ठाकरे गुट के लिए नया संकट
उद्धव ठाकरे की पार्टी पहले ही विभाजन का सामना कर चुकी है, जब एकनाथ शिंदे ने पार्टी के कई विधायकों के साथ अलग होकर नया गुट बनाया। अब विधानसभा चुनाव के बाद, पार्टी पर फिर से संकट के बादल मंडरा रहे हैं। माजी विधायक राजन साल्वी, जो अब तक शिवसेना के प्रति वफादार थे, बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।
यह खबर ऐसे समय में आई है जब ठाकरे की पार्टी मुंबई महानगरपालिका चुनावों की तैयारी में जुटी है। बीएमसी पर कई दशकों से शिवसेना का कब्जा रहा है, लेकिन शिंदे गुट और बीजेपी की रणनीतियों ने इस बार इसे चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
शिंदे गुट का दावा
शिंदे गुट के सांसद नरेश म्हस्के ने कहा कि ठाकरे गुट में आंतरिक टूट जारी है। उन्होंने यह भी दावा किया कि मुंबई के विधायक, जो अब तक ठाकरे के साथ थे, जल्द ही उनका साथ छोड़ सकते हैं। म्हस्के ने कहा, “उद्धव ठाकरे तब तक नेताओं को साथ रखते हैं, जब तक उनकी जरूरत होती है। उसके बाद उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। यही वजह है कि उनकी पार्टी कमजोर हो रही है।”
बीएमसी चुनाव और शिंदे का मिशन
मुंबई महानगरपालिका का चुनाव न केवल मुंबई, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी अहम भूमिका निभाता है। शिंदे गुट और बीजेपी इस बार मिलकर बीएमसी पर कब्जा जमाने की कोशिश में हैं। म्हस्के का कहना है कि अगर महागठबंधन (महायुति) का साथ बना रहता है तो वे आसानी से बीएमसी जीत सकते हैं।
राजन साल्वी का भाजपा में प्रवेश?
पूर्व विधायक राजन साल्वी के भाजपा में शामिल होने की खबरें भी ठाकरे गुट के लिए चिंता का कारण बन रही हैं। साल्वी जैसे नेता के जाने से न केवल पार्टी कमजोर होगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर बीजेपी की पकड़ और मजबूत हो जाएगी।
महायुति का प्रभाव
महायुति ने विधानसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी को हराकर सत्ता हासिल की थी। अब उनका अगला लक्ष्य बीएमसी है। म्हस्के ने कहा, “महायुति सिर्फ सत्ता के लिए नहीं बनी है। यह महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस और विपक्ष को चुनौती देने के लिए बनाई गई है।”
उद्धव ठाकरे के सामने चुनौतियां
उद्धव ठाकरे के लिए अगले कुछ महीने बेहद महत्वपूर्ण होंगे। पार्टी में जारी टूट और बीएमसी चुनाव में संभावित हार उनके राजनीतिक भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं। उन्हें न केवल अपने विधायकों को एकजुट रखना होगा, बल्कि जनता के बीच अपना विश्वास भी बहाल करना होगा।
महाराष्ट्र की राजनीति में शिंदे गुट और बीजेपी की आक्रामक रणनीतियों ने उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। बीएमसी चुनाव में हार न केवल पार्टी की साख को चोट पहुंचाएगी, बल्कि ठाकरे गुट के नेतृत्व पर भी सवाल उठेंगे। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ठाकरे इस संकट से कैसे निपटते हैं।
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