Shinde vs Ajit Pawar in Maharashtra: महाराष्ट्र में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में महायुति गठबंधन ने भले ही शानदार जीत दर्ज की हो, लेकिन सरकार बनने से पहले ही “भाजपा की सहयोगी पार्टियां” (BJP’s Ally Parties) आपस में भिड़ गई हैं। यह सत्ता संघर्ष जनता के बीच उत्सुकता और राजनीति के गलियारों में गर्म बहस का विषय बन गया है। आइए, इस लेख में हम इस विवाद के पीछे की कहानी और उसके असर को समझने की कोशिश करें।
चुनावी नतीजे और महायुति की बड़ी जीत
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम 23 नवंबर को घोषित हुए, जिसमें महायुति (BJP, शिवसेना, और अजित पवार की NCP) ने 288 में से 230 सीटों पर जीत हासिल की। इस जीत में सबसे बड़ा योगदान भाजपा का रहा, जिसने 132 सीटें जीतीं। शिवसेना को 57 और अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 41 सीटें मिलीं।
हालांकि चुनाव में मिली इस शानदार जीत के बाद भी गठबंधन के नेताओं के बीच मतभेद खुलकर सामने आने लगे। शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) के नेता एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाने लगे हैं। यह विवाद न केवल गठबंधन की स्थिरता को चुनौती देता है, बल्कि सरकार गठन में भी देरी का कारण बन सकता है।
शिवसेना बनाम अजित पवार गुट: क्यों बढ़ रही है तकरार?
“महाराष्ट्र में शिंदे बनाम अजित पवार” (Shinde vs Ajit Pawar in Maharashtra) की यह लड़ाई तब शुरू हुई जब शिवसेना के वरिष्ठ नेता गुलाबराव पाटिल ने बयान दिया कि अगर उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ती, तो 90-100 सीटें जीत सकती थी। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से एनसीपी पर आरोप लगाया कि उनके कारण शिवसेना की सीटों में कमी आई।
इसके जवाब में एनसीपी के प्रवक्ता अमोल मिटकरी ने पलटवार करते हुए कहा कि गुलाबराव पाटिल को अपने मंत्री पद को लेकर चिंतित रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इस बार पाटिल के मंत्री बनने की संभावना बेहद कम है। इस तरह की बयानबाजी ने गठबंधन में तनाव को और बढ़ा दिया।
भाजपा के केंद्रीय नेताओं पर आरोप
शिवसेना के विधायक संजय गायकवाड़ ने तो सीधे भाजपा के केंद्रीय नेताओं पर भी निशाना साधा। गायकवाड़ ने आरोप लगाया कि केंद्रीय मंत्री प्रतापराव जाधव और भाजपा नेता संजय कुटे ने उनके खिलाफ साजिश रचने का प्रयास किया। उन्होंने दावा किया कि जाधव और कुटे ने विपक्षी उम्मीदवार को समर्थन देकर उनके खिलाफ रणनीति बनाई।
उन्होंने सवाल उठाया कि भाजपा के नेता, जो महायुति का हिस्सा हैं, आखिर क्यों इस तरह की गतिविधियों में लिप्त हैं। गायकवाड़ ने इसे गठबंधन में पारस्परिक विश्वास के लिए खतरा बताया।
महायुति के भविष्य पर सवाल
भले ही महायुति ने चुनाव में जीत हासिल की हो, लेकिन गठबंधन के भीतर बढ़ते इस विवाद ने सरकार के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शिवसेना और एनसीपी के बीच बढ़ती कड़वाहट, और भाजपा नेताओं पर लगाए जा रहे आरोप, यह संकेत देते हैं कि महायुति में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह विवाद जल्द ही नहीं सुलझा, तो महाराष्ट्र में राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिल सकती है। इससे गठबंधन की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ सकता है।
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