महाराष्ट्रमुंबई

Shinde’s Dilemma: एकनाथ शिंदे की दुविधा, वे 3 कारण जिनकी वजह से उनका सत्ता में बने रहना हुआ ज़रूरी

Shinde's Dilemma: एकनाथ शिंदे की दुविधा, वे 3 कारण जिनकी वजह से उनका सत्ता में बने रहना हुआ ज़रूरी
महाराष्ट्र में नई सरकार बनने का समय आ चुका है। देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं, और उनके साथ शिंदे की दुविधा (Shinde’s Dilemma) का भी अंत हो गया है। लंबे समय तक चले राजनीतिक असमंजस और अटकलों के बाद एकनाथ शिंदे ने डिप्टी सीएम पद स्वीकार कर लिया। इस फैसले के पीछे कई कारण हैं, जो न केवल शिंदे के लिए बल्कि महायुति गठबंधन के लिए भी अहम थे। आइए, विस्तार से जानते हैं कि क्यों एकनाथ शिंदे का सत्ता में बने रहना ज़रूरी हो गया।

शिवसेना में अंदरूनी खींचतान: शिंदे के लिए खतरा

सत्ता में शिंदे की ज़रूरत (Shinde’s Importance in Power) का पहला कारण उनकी पार्टी के अंदरूनी हालात थे। शिवसेना में पहले ही विभाजन हो चुका है, और शिंदे के पास पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती है। अगर वे सत्ता से बाहर रहते, तो उनके गुट के नेताओं की महत्वाकांक्षाएं उभर सकती थीं।

उनके बेटे श्रीकांत शिंदे को डिप्टी सीएम पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा था। लेकिन अगर यह पद उन्हें मिलता, तो शिंदे पर परिवारवाद का आरोप लग सकता था। वहीं, किसी और नेता को यह पद देने से पार्टी में असंतोष बढ़ सकता था। ऐसे में सत्ता में रहना और खुद जिम्मेदारी लेना शिंदे के लिए सबसे सुरक्षित विकल्प बन गया।

सत्ता में नए शक्ति केंद्र का खतरा

जून 2022 में शिंदे ने बगावत कर शिवसेना का नया चेहरा बनाया। उनके नेतृत्व ने पार्टी को नई दिशा दी और उन्हें अडिग नेता के रूप में स्थापित किया। लेकिन सत्ता से बाहर रहने का मतलब था कि कोई और नेता उनके बराबर की स्थिति में उभर सकता था।

अगर डिप्टी सीएम पद पर कोई और बैठता, तो पार्टी में दो पावर सेंटर बन सकते थे। यह शिंदे के लिए नेतृत्व को कमजोर करने वाला कदम होता। इसी कारण उन्होंने अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए सत्ता में बने रहना जरूरी समझा।

महायुति गठबंधन में शिंदे की भूमिका

महायुति सरकार के गठन में शिंदे की भूमिका बेहद अहम रही है। उन्होंने बीजेपी और शिवसेना के बीच पुल का काम किया। उनके नेतृत्व में गठबंधन सरकार ने बिना किसी बड़े विवाद के काम किया।

हालांकि, जब बीजेपी ने अजीत पवार के एनसीपी गुट को शामिल किया, तब भी शिंदे ने कोई विरोध नहीं जताया। इससे उनकी सुलह-प्रिय छवि उभरी। शिंदे के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से भी अच्छे संबंध हैं। लेकिन अगर वे सरकार से बाहर रहते, तो गठबंधन में असहमति बढ़ सकती थी।

बीजेपी के लिए भी शिंदे को खुश रखना रणनीतिक रूप से जरूरी था। उनकी शिवसेना केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार का हिस्सा है। अगर उन्हें सरकार से बाहर रखा जाता, तो विपक्षी दल इसे बीजेपी द्वारा क्षेत्रीय सहयोगियों को दबाने की मिसाल बना सकते थे।


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