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तीसरी बार ध्वस्त हुआ सुल्तानगंज का पुल: क्या बिहार के निर्माण कार्यों की पोल खुल गई?

तीसरी बार ध्वस्त हुआ सुल्तानगंज का पुल: क्या बिहार के निर्माण कार्यों की पोल खुल गई?

बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज में निर्माणाधीन अगुवानी पुल का पिलर और स्लैब तीसरी बार गिर गया। इस घटना ने राज्य में निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह लेख इस घटना के पीछे की समस्याओं और बिहार में निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर चर्चा करता है।

पुल गिरने की घटनाएँ: सुल्तानगंज की कहानी

बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज में स्थित अगुवानी पुल का 9 नंबर पिलर और उसके ऊपर का स्लैब फिर से गंगा नदी में गिर गया। यह पहली बार नहीं है जब इस पुल ने धोखा दिया है, बल्कि यह तीसरी बार हुआ है। इससे पहले भी, 30 अप्रैल 2022 को इस पुल का पिलर संख्या पांच गिरा था। फिर, 4 जून 2023 को, इसी पुल के पिलर नंबर 10, 11, और 12 ढह गए थे। इन घटनाओं ने न केवल स्थानीय जनता में डर और गुस्सा पैदा किया है, बल्कि सरकार की कार्यप्रणाली पर भी उँगलियाँ उठाई हैं।

भ्रष्टाचार और गुणवत्ता: पुल निर्माण में लापरवाही

पुल के बार-बार गिरने की घटनाओं से यह साफ हो गया है कि निर्माण कार्यों में गंभीर गड़बड़ियाँ हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि पुल के निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया था, और भूमि की जाँच में भी अनदेखी की गई। गंगा नदी में पिलर और स्लैब गिरने से यह स्पष्ट हुआ कि निर्माण कार्य में लापरवाही बरती गई थी। इस तरह की घटनाएँ बिहार में व्याप्त भ्रष्टाचार और निर्माण कार्यों की गुणवत्ता में कमी को उजागर करती हैं।

राजनीतिक प्रतिक्रिया: आरोप और जवाबदेही की मांग

इस घटना पर राजद नेता तेजस्वी यादव ने नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि यह नीतीश कुमार के शासनकाल में पुलों के गिरने की लंबी श्रृंखला का हिस्सा है। उन्होंने निष्पक्ष जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। बिहार की जनता ने बार-बार सरकार से न्याय और पारदर्शिता की मांग की है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। यह घटना फिर से राज्य की सरकारी तंत्र और निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा करती है।

सुल्तानगंज में पुल का तीसरी बार गिरना राज्य के निर्माण कार्यों में गुणवत्ता की कमी और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उजागर करता है। जनता और राजनीतिक नेताओं की ओर से लगातार पारदर्शिता और जिम्मेदारी की मांग की जा रही है, लेकिन अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इन मुद्दों को कैसे संभालती है।


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