EVM विवाद (EVM Controversy) भारतीय लोकतंत्र में एक ऐसा मुद्दा है जो हमेशा से बहस का केंद्र रहा है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) ने राजनीतिक परिदृश्य में एक नया आयाम जोड़ दिया है, जहां हर चुनाव में इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में EVM बहस (Supreme Court EVM Debate) ने एक बार फिर पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। याचिकाकर्ता केए पॉल ने एक दिलचस्प दावा पेश किया, जिसमें उन्होंने बैलेट पेपर वोटिंग सिस्टम को वापस लाने की मांग की। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध उद्यमी एलन मस्क के बयान का हवाला दिया, जिन्होंने EVM में संभावित छेड़छाड़ की बात कही थी।
न्यायिक समीक्षा में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने एक अद्भुत प्रतिक्रिया दी। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले ने याचिकाकर्ता को एक ऐसा जवाब दिया जो पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, “जब नेता चुनाव हार जाते हैं तो EVM खराब, और जीत जाते हैं तो सब कुछ बिल्कुल सही!”
चुनाव आयोग ने भी EVM की विश्वसनीयता पर पूरा भरोसा जताया। राजीव कुमार ने स्पष्ट किया कि पिछले 10-15 चुनावों में EVM ने पूरी तरह से निष्पक्ष और पारदर्शी प्रदर्शन किया है। उनका सवाल था कि क्या कोई ऐसी मतदान प्रक्रिया है जिसमें इतना खुला और पारदर्शी खुलासा हो?
कांग्रेस ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में EVM की बैटरी क्षमता पर गंभीर सवाल उठाए। उनका आरोप था कि कई EVM केवल 60-70 प्रतिशत बैटरी क्षमता पर काम कर रही थीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर भी तीखी प्रतिक्रिया दी और चेतावनी दी कि ऐसी याचिकाएं दाखिल करने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
याचिकाकर्ता केए पॉल ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि उन्होंने 150 से अधिक देशों का दौरा किया है और अधिकांश देश बैलेट पेपर वोटिंग का उपयोग करते हैं। परंतु अदालत ने उनसे सीधा सवाल पूछा कि वे भारत को अन्य देशों से अलग क्यों नहीं होने देना चाहते?































