महाराष्ट्र

उद्धव व राज ठाकरे की रैली में सुप्रिया सुले भी होंगी शामिल!

सुप्रिया सुले
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महाराष्ट्र की राजनीति में आज एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। करीब दो दशक बाद ठाकरे बंधु – उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे – एक साथ एक सियासी मंच पर नजर आएंगे। यहीं नहीं, खबर ये भ ये मौका है मराठी एकजुटता की जीत का जश्न मनाने का, जो महाराष्ट्र के स्कूलों में त्रिभाषा सूत्र लागू करने के फैसले को स्थगित करने के बाद मिली है। आइए, जानते हैं इस ऐतिहासिक घटना के बारे में विस्तार से।

मराठी विजय रैली: एकता का प्रतीक
आज सुबह 10 बजे मुंबई के वरली स्थित एनएससीआई डोम में एक भव्य मराठी विजय सभा का आयोजन हुआ। इस सभा में मराठी प्रेमी, साहित्यकार, लेखक, कवि, शिक्षक, संपादक, कलाकार और समाज के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग शामिल हुए। खास बात ये है कि इस रैली में किसी भी राजनीतिक दल का झंडा नहीं दिखाई दिया।

त्रिभाषा सूत्र पर विवाद और सरकार का यू-टर्न
महायुति सरकार, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कर रहे हैं, ने स्कूलों में त्रिभाषा सूत्र लागू करने का फैसला किया था। इस नीति के तहत हिंदी भाषा को अनिवार्य करने की बात कही गई थी, जिसका मराठी भाषी समुदाय ने कड़ा विरोध किया। मराठी जनता के दबाव के आगे सरकार को झुकना पड़ा और हिंदी की अनिवार्यता का आदेश स्थगित कर दिया गया। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने इसे मराठी अस्मिता की जीत करार दिया और इस मौके को एक रैली के जरिए उत्सव के रूप में मनाने का फैसला किया।

ठाकरे बंधुओं का गठबंधन: सियासी समीकरण बदलेगा?
पिछले 20 सालों में उद्धव और राज ठाकरे ने कई सियासी उतार-चढ़ाव देखे हैं। 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की स्थापना की थी। तब से दोनों नेताओं के बीच दूरी बनी रही। लेकिन अब, इस रैली के जरिए दोनों के एक साथ आने की खबरों ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर उद्धव और राज के बीच गठबंधन होता है, तो ये मराठी वोटों के ध्रुवीकरण का कारण बन सकता है। खासकर आगामी मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव में ये गठबंधन गेमचेंजर साबित हो सकता है। मराठी मतदाताओं का समर्थन दोनों नेताओं के लिए एक बड़ा लाभ हो सकता है, जिससे महाराष्ट्र की सियासत का समीकरण पूरी तरह बदल सकता है।

बीजेपी का तंज: “ये सिर्फ चुनावी ड्रामा”
सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस एकजुटता पर तंज कसा है। बीजेपी विधायक रवि राणा ने कहा, “ये एकता मराठी के लिए नहीं, बल्कि BMC चुनाव के लिए है। चुनाव खत्म होते ही ठाकरे बंधु मराठी मुद्दे को भूल जाएंगे।” राणा ने ये भी आरोप लगाया कि उद्धव ठाकरे ने पहले बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ा और अब राज ठाकरे का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “उद्धव ने पहले भी राज का अपमान किया है। ये सिर्फ सियासी स्वार्थ के लिए एकजुटता है।”

इसके जवाब में राज ठाकरे ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “हिंदी को थोपने का फैसला मराठी जनता के विरोध के कारण वापस लिया गया। लेकिन सवाल ये है कि सरकार इतनी अड़ियल क्यों थी? इसके पीछे कौन दबाव डाल रहा था? ये रहस्य अब भी बरकरार है।”

राज ठाकरे और MNS का सफर
2005 में शिवसेना से अलग होने के बाद राज ठाकरे ने 2006 में MNS की स्थापना की थी। उनका उग्र मराठी-हिंदुत्व का रुख और उद्धव ठाकरे का संतुलित दृष्टिकोण दोनों के बीच टकराव का कारण बना। 2009 के विधानसभा चुनाव में MNS ने 13 सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई थी, लेकिन इसके बाद पार्टी को राज्य में सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिली। करीब 19 साल बाद भी MNS की पकड़ पूरे महाराष्ट्र में मजबूत नहीं हो पाई है। ऐसे में उद्धव के साथ गठबंधन MNS के लिए एक नया मौका हो सकता है।

क्या कहती है जनता?
मराठी जनता इस एकजुटता को मराठी अस्मिता की जीत के रूप में देख रही है। सोशल मीडिया पर #मराठी_विजय_रैली ट्रेंड कर रहा है, और लोग इसे एक ऐतिहासिक पल बता रहे हैं। लेकिन कुछ लोग इसे सियासी नाटक का हिस्सा भी मान रहे हैं।

ऐसे में अब ये देखना दिलचस्प होगा कि ठाकरे बंधुओं की ये एकता कितने समय तक बरकरार रहती है और क्या ये BMC चुनाव में कोई बड़ा बदलाव ला पाएगी। फिलहाल, मराठी भाषा और संस्कृति के लिए ये एकता एक नई उम्मीद लेकर आई है।

आप इस बारे में क्या सोचते हैं? क्या ये गठबंधन महाराष्ट्र की सियासत को नई दिशा देगा? अपनी राय कमेंट्स में जरूर शेयर करें।

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