10 Laws Enforced Sans Nod: तमिलनाडु की धरती ने हमेशा से इतिहास के पन्नों को नई कहानियों से भरा है। इस बार फिर कुछ ऐसा हुआ, जिसने पूरे देश का ध्यान खींच लिया। तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने एक अनोखा कदम उठाया और 10 विधेयकों को बिना राज्यपाल (Governor Approval) या राष्ट्रपति की मंजूरी के कानून (State Legislation) बना दिया। यह पहली बार है जब किसी राज्य ने ऐसा किया। सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले ने इस कदम को मुमकिन बनाया, जिसने न केवल तमिलनाडु की स्वायत्तता को मजबूत किया, बल्कि देश के संघीय ढांचे को भी नई दिशा दी। आइए, इस कहानी को और करीब से जानते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जिसने बदला खेल
कानून बनाना कोई आसान काम नहीं होता। इसमें समय, मेहनत और कई स्तरों पर मंजूरी की जरूरत पड़ती है। तमिलनाडु में 10 ऐसे विधेयक थे, जो जनवरी 2020 से अगस्त 2023 के बीच विधानसभा में पारित हुए, लेकिन राज्यपाल आर.एन. रवि ने इन्हें मंजूरी देने के बजाय राष्ट्रपति के पास भेज दिया। यह कदम तमिलनाडु सरकार को नागवार गुजरा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, और फिर जो हुआ, वह इतिहास बन गया।
8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि राज्यपाल का इन विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना (Governor Approval) गलत था। कोर्ट ने साफ कहा कि अगर विधानसभा ने कोई विधेयक दोबारा पारित कर दिया, तो राज्यपाल को उसे तुरंत मंजूरी देनी होगी। तमिलनाडु की विधानसभा ने 18 नवंबर 2023 को इन विधेयकों को दोबारा पारित किया था। कोर्ट ने इसे उसी दिन से स्वीकृत मान लिया। इस फैसले ने न केवल विधेयकों को कानून (State Legislation) का दर्जा दिया, बल्कि यह भी साबित किया कि संविधान की ताकत हर स्थिति में बरकरार रहती है।
संविधान ने दिखाई राह
भारत का संविधान एक ऐसा दस्तावेज है, जो हर सवाल का जवाब देता है। इसके अनुच्छेद 200 में साफ लिखा है कि राज्यपाल किसी विधेयक को मंजूरी दे सकते हैं, उसे लौटा सकते हैं या संशोधन के लिए कह सकते हैं। लेकिन अगर विधानसभा उसे दोबारा पारित करती है, तो राज्यपाल के पास कोई विकल्प नहीं बचता—उन्हें मंजूरी देनी ही पड़ती है। तमिलनाडु में यही हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने इस नियम को दोहराते हुए कहा कि राज्यपाल का विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना (Governor Approval) संविधान का उल्लंघन था। कोर्ट ने अपनी खास शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए इन 10 विधेयकों को कानून का दर्जा दे दिया।
ये 10 कानून क्या हैं?
अब सवाल उठता है कि आखिर ये 10 कानून हैं क्या, जिनके लिए इतना बड़ा कदम उठाया गया? ये सभी कानून तमिलनाडु के विश्वविद्यालयों से जुड़े हैं। इनका मकसद है विश्वविद्यालयों के प्रशासन में राज्य सरकार को ज्यादा अधिकार देना और राज्यपाल की भूमिका को कम करना। मिसाल के तौर पर, तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) कानून, 2020 ने इस विश्वविद्यालय का नाम बदलकर तमिलनाडु डॉ. जे. जयललिता मत्स्य विश्वविद्यालय कर दिया और इसका नियंत्रण राज्य सरकार को सौंप दिया।
इसी तरह, तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) कानून, 2020 ने जांच और निरीक्षण की शक्तियां राज्यपाल से हटाकर राज्य सरकार को दीं। तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) कानून, 2022 ने कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार भी राज्य सरकार को सौंपा। ये सभी कानून (State Legislation) शिक्षा को और बेहतर बनाने और स्थानीय जरूरतों के हिसाब से विश्वविद्यालयों को चलाने के लिए बनाए गए हैं।
तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच तनाव
यह कहानी सिर्फ कानूनों की नहीं, बल्कि सत्ता और स्वायत्तता की भी है। तमिलनाडु की डीएमके सरकार और राज्यपाल आर.एन. रवि के बीच लंबे समय से तनाव चल रहा था। 2022 में जब सरकार ने कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार अपने पास लेने के लिए विधेयक पारित किया, तो राज्यपाल ने इस पर सवाल उठाए। उन्होंने इन विधेयकों को मंजूरी देने में देरी की और फिर इन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया। तमिलनाडु सरकार ने इसे अपने अधिकारों पर हमला माना और सुप्रीम कोर्ट में इसकी शिकायत की।
कोर्ट ने न केवल राज्यपाल की कार्रवाई को गलत ठहराया, बल्कि यह भी कहा कि राष्ट्रपति द्वारा इन विधेयकों पर की गई कोई भी कार्रवाई कानून की नजर में अमान्य है। इस फैसले ने तमिलनाडु सरकार को एक बड़ी जीत दिलाई और यह साबित किया कि विधानसभा की ताकत को कम नहीं किया जा सकता।
एक नई शुरुआत
तमिलनाडु का यह कदम सिर्फ एक राज्य की कहानी नहीं है। यह पूरे देश के लिए एक मिसाल है। कई राज्यों में राज्यपाल और सरकार के बीच ऐसे ही विवाद देखने को मिलते हैं। तमिलनाडु ने दिखा दिया कि अगर संविधान का सहारा हो, तो कोई भी रुकावट हटाई जा सकती है। इस फैसले ने विश्वविद्यालयों को नए ढंग से चलाने का रास्ता खोला है, जहां स्थानीय जरूरतों और सरकार की नीतियों को ज्यादा तरजीह मिलेगी।
लोगों की आवाज बनी कानून
इन 10 कानूनों के पीछे तमिलनाडु के लोगों की आवाज है। ये कानून (State Legislation) सिर्फ कागजों पर लिखे शब्द नहीं, बल्कि शिक्षा को बेहतर बनाने और राज्य को आत्मनिर्भर बनाने का सपना हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इस सपने को सच कर दिखाया। तमिलनाडु ने न सिर्फ अपने लिए, बल्कि देश के हर उस राज्य के लिए एक रास्ता बनाया, जो अपनी स्वायत्तता को और मजबूत करना चाहता है।
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