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आखिर भगवान शिव ने राम-नगरी में बहने वाली सरयू नदी को क्यों दिया था श्राप? पूजन में नहीं होता इसके जल का इस्तेमाल

सरयू नदी
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भारत की हर नदी को पवित्रता और धार्मिक मान्यता का दर्जा प्राप्त है। कहा जाता है कि नदियों के जल में स्नान से न केवल शरीर शुद्ध होता है, बल्कि आत्मा के पाप भी धुल जाते हैं। लेकिन सरयू नदी (Sarayu River), जो कि भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में बहती है, के साथ एक अद्भुत और रहस्यमय कथा जुड़ी हुई है। यह एकमात्र ऐसी पवित्र नदी है जिसके जल का उपयोग पूजा-पाठ में नहीं किया जाता। इसकी वजह भगवान शिव का वह श्राप है जो सरयू को दिया गया था। आइए जानते हैं इस कथा के पीछे की पूरी कहानी।

सरयू नदी की उत्पत्ति: विष्णु जी के आंसुओं की कहानी
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सरयू नदी (Sarayu River) भगवान विष्णु की आंखों से प्रकट हुई थी। कथा कहती है कि शंखासुर नामक एक दैत्य ने वेदों को चुराकर समुद्र में छिपा दिया था। भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर वेदों को सुरक्षित निकाला। वेदों की रक्षा से प्रसन्न होकर उनकी आंखों से खुशी के आंसू निकले। इन आंसुओं को ब्रह्मा जी ने मानसरोवर में डाल दिया, जिससे सरयू नदी की उत्पत्ति हुई।

सरयू का नाम संस्कृत में “सार” से लिया गया है, जिसका अर्थ है वह जो हर चीज का सार है। यही कारण है कि यह नदी अयोध्या के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का केंद्र है।

शिवजी का गुस्सा: सरयू पर श्राप क्यों?
सरयू नदी का श्रीराम से गहरा नाता है। यह नदी उनकी प्रिय थी, और इसी में उन्होंने अपनी लीला का समापन किया। कथा कहती है कि जब श्रीराम ने सरयू नदी में समाधि ली, तो भगवान शिव इससे नाराज हो गए।

शिवजी को यह लगा कि यह नदी श्रीराम के पृथ्वी छोड़ने की साक्षी बनी और उनकी दिव्य उपस्थिति को रोक न सकी। अपने गुस्से और दुख को व्यक्त करते हुए भगवान शिव ने सरयू नदी को श्राप (Curse of Sarayu River) दिया कि उसका जल पूजा-पाठ और किसी भी शुभ कार्य में उपयोग नहीं किया जाएगा।

आज भी है श्राप का असर
श्राप के कारण, आज भी सरयू नदी के जल का उपयोग मंदिरों में नहीं किया जाता। जबकि यह नदी पवित्र मानी जाती है और इसके जल में स्नान से पापों का नाश होता है, लेकिन इससे पुण्य की प्राप्ति नहीं होती।

अयोध्या के निवासी और तीर्थयात्री आज भी सरयू नदी में स्नान करते हैं। उन्हें विश्वास है कि यह नदी उनकी आत्मा को शुद्ध करती है। लेकिन जब बात पूजा में उपयोग की आती है, तो सरयू जल को मंदिर में नहीं लाया जाता।

सरयू नदी का महत्व
श्राप के बावजूद, सरयू नदी (Sarayu River) धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। रामायण में इसे पवित्र नदियों में से एक माना गया है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु स्नान के लिए आते हैं, खासकर उन दिनों में जब कोई धार्मिक उत्सव हो।

सरयू के तट पर स्थित अयोध्या, प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि, हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह नदी जीवन, संस्कृति, और इतिहास का प्रतीक है।

सरयू नदी का श्राप (Curse of Sarayu River) और भगवान शिव की नाराजगी की यह कथा पौराणिक मान्यताओं का हिस्सा है। यह कथा हमें धार्मिक परंपराओं और विश्वासों के गहरे संबंधों को समझने का मौका देती है। भले ही सरयू नदी का जल पूजा में उपयोग नहीं होता, लेकिन इसकी पवित्रता और महिमा पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता।

सरयू आज भी अपने तट पर आने वाले हर भक्त को अपने दिव्य स्पर्श से शांति और शुद्धता प्रदान करती है। यह नदी न केवल श्रीराम की लीला का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति और आस्था का एक अमूल्य हिस्सा भी है।

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