उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक ऐसा तूफान उठ खड़ा हुआ है, जिसने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अंदर हलचल मचा दी है। यह तूफान कोई और नहीं, बल्कि प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के एक बयान से शुरू हुआ है। हालांकि ऊपरी तौर पर यह मामला शांत हो गया लगता है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में अभी भी इस बात की चर्चा है कि आखिर केशव प्रसाद मौर्य के इस बयान के पीछे क्या कारण हो सकता है।
14 जुलाई को उत्तर प्रदेश भाजपा की एक महत्वपूर्ण बैठक में केशव प्रसाद मौर्य ने कुछ ऐसा कह दिया, जिसने पार्टी के अंदर भूचाल ला दिया। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा, “जो दर्द आपका है वही दर्द हमारा भी है।” इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनके लिए सरकार से बड़ा संगठन है और संगठन से बड़ा कोई नहीं है। इस बयान ने राजनीतिक पंडितों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर केशव प्रसाद मौर्य किस दर्द की बात कर रहे हैं।
इस बयान के बाद जो हुआ, वह भी कम दिलचस्प नहीं था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तुरंत केशव प्रसाद मौर्य को दिल्ली बुलाया। दोनों नेताओं के बीच करीब एक घंटे की लंबी बातचीत हुई। इस बातचीत के बाद मामला शांत हो गया लगता है, लेकिन सवाल अभी भी बरकरार हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर केशव प्रसाद मौर्य के दर्द की असली वजह क्या है? क्या वे वाकई में मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहते हैं, जैसा कि कुछ लोग अनुमान लगा रहे हैं? या फिर इसके पीछे कोई और कारण है?
सूत्रों की मानें तो केशव प्रसाद मौर्य की नाराजगी का असली कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं, बल्कि लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) है। 2017 से 2022 तक, जब योगी आदित्यनाथ पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब केशव प्रसाद मौर्य के पास पीडब्ल्यूडी का महत्वपूर्ण विभाग था। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद यह विभाग उनसे छीनकर जितिन प्रसाद को दे दिया गया।
केशव प्रसाद मौर्य को उप मुख्यमंत्री के पद के साथ-साथ ग्राम विकास एवं समग्र विकास, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग का प्रभार दिया गया। लेकिन ऐसा लगता है कि यह विभाग उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहा है। वे शायद अब भी पीडब्ल्यूडी जैसे बड़े और महत्वपूर्ण विभाग की कमी महसूस कर रहे हैं।
मामले में एक नया मोड़ तब आया जब 2024 के लोकसभा चुनाव में जितिन प्रसाद सांसद बन गए और केंद्रीय मंत्रालय में शामिल हो गए। इससे पीडब्ल्यूडी विभाग एक बार फिर से खाली हो गया। अब ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि केशव प्रसाद मौर्य एक बार फिर से इस महत्वपूर्ण विभाग को अपने पास लाना चाहते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से इसके लिए हरी झंडी नहीं मिल रही है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केशव प्रसाद मौर्य के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी की मांग करना एक जोखिम भरा कदम हो सकता है। वे याद दिलाते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य अपनी सीट भी नहीं बचा पाए थे। इसके बावजूद पार्टी ने उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया और विधान परिषद भेजा। ऐसे में अगर वे मुख्यमंत्री की कुर्सी की मांग करते हैं, तो पार्टी उन्हें अति महत्वाकांक्षी करार देकर किनारे भी कर सकती है।
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में अभी भी कई अनसुलझे पहेली हैं। केशव प्रसाद मौर्य का यह बयान शायद इन्हीं पहेलियों में से एक का संकेत है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा इस मुद्दे को पूरी तरह से सुलझा पाती है, या फिर यह आगे चलकर और बड़ा रूप ले लेता है। एक बात तो तय है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में अभी और भी रोमांचक मोड़ आने वाले हैं।
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