भारतीय विज्ञापन जगत के सबसे बड़े और प्रभावशाली नाम, पद्मश्री से विभूषित पीयूष पांडे का गुरुवार, 23 अक्टूबर, 2025 को 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन की खबर से न केवल विज्ञापन इंडस्ट्री, बल्कि देश का हर वह व्यक्ति शोक संतप्त है, जिसने उनके बनाए हुए विज्ञापनों में अपने जीवन की खुशियां और भावनाएं महसूस की हैं। पीयूष पांडे एक ऐसे रचनात्मक ‘गुरु’ थे, जिन्होंने विज्ञापनों को केवल उत्पाद बेचने का साधन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक आत्मा से जुड़ाव का माध्यम बना दिया।
भारतीयता का चेहरा: विज्ञापन की दुनिया का ‘देसी’ क्रिएटर
पीयूष पांडे का उदय उस दौर में हुआ जब भारतीय विज्ञापन अंग्रेजी प्रभुत्व और पश्चिमी विचारों से घिरा हुआ था। 1982 में ओगिल्वी (Ogilvy) से जुड़ने के बाद, उन्होंने जानबूझकर भारतीय भाषाओं और ठेठ देसीपन को अपनी रचनात्मकता का केंद्र बनाया। उनका मानना था कि अगर आपको भारत से बात करनी है, तो आपको उसकी भाषा और उसके दिल की धड़कन को समझना होगा।
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उन्होंने विज्ञापन को स्टूडियो की वातानुकूलित दीवारों से निकालकर भारत के गांवों, कस्बों और मध्यवर्गीय परिवारों की हकीकत से जोड़ा। उनके विज्ञापनों में दिखाई देने वाले साधारण लोग, उनकी खुशी, उनके झगड़े और उनकी मासूमियत ही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी।
- कैडबरी: चॉकलेट को उत्सव का हिस्सा बनाया
उनके सबसे यादगार कार्यों में से एक था कैडबरी डेयरी मिल्क का कैंपेन। “कुछ खास है ज़िंदगी में/हम सभी में”—इस स्लोगन ने चॉकलेट को केवल बच्चों के लिए मीठी चीज़ नहीं रहने दिया, बल्कि उसे हर खुशी के पल का हिस्सा बना दिया। 1993 का वह आइकॉनिक ‘डांसिंग गर्ल’ वाला विज्ञापन, जहाँ एक महिला क्रिकेट मैदान पर आकर नाचने लगती है, रूढ़िवादिता को तोड़कर सहज खुशी मनाने का प्रतीक बन गया। यह विज्ञापन भारतीय विज्ञापन इतिहास के ‘हॉल ऑफ फेम’ में दर्ज है। - एशियन पेंट्स: दीवारों से भावनाएं जोड़ीं
एशियन पेंट्स के लिए उन्होंने “हर ख़ुशी में रंग लाए” और “हर घर कुछ कहता है” जैसे स्लोगन दिए। इन स्लोगनों ने पेंट को एक भौतिक उत्पाद से बदलकर, घर की भावनाओं और परिवार के रिश्तों का कैनवास बना दिया। उन्होंने भारतीयों को सिखाया कि घर केवल ईंटों और सीमेंट से नहीं बनता, बल्कि वह अपने अंदर रहने वालों की कहानियों को कहता है। - फेविकोल: कलात्मक हास्य का मास्टरपीस
फेविकोल के लिए पीयूष पांडे के विज्ञापन कलात्मकता और देसी हास्य का बेजोड़ संगम थे। ‘पकड़े रहना’, ‘मूछों वाला विज्ञापन’ या बस में लटकते लोगों वाला विज्ञापन—इनमें किसी ने भी उत्पाद की खूबियां सीधे नहीं बताईं, लेकिन वे इतनी हास्यास्पद और रचनात्मक थीं कि उत्पाद की मज़बूती का संदेश हमेशा के लिए दर्शकों के मन में छप गया। - हच (वोडाफोन): वफादारी की मासूम कहानी
हच (Vodafone) के ‘पग’ कुत्ते वाले विज्ञापन ने देश को मंत्रमुग्ध कर दिया था। “जहाँ भी जाओगे, हमारा नेटवर्क आएगा” के साधारण संदेश को एक छोटे से कुत्ते की अपने मालिक के प्रति अटूट वफादारी की कहानी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया, जिसने ब्रांड को विश्वसनीयता और भावनात्मक जुड़ाव प्रदान किया।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
पीयूष पांडे ने केवल ब्रांडों तक ही अपनी प्रतिभा सीमित नहीं रखी।
- दो बूँद ज़िंदगी की: पल्स पोलियो अभियान को घर-घर तक पहुँचाने और उसे सफल बनाने में उनके द्वारा गढ़ा गया यह स्लोगन और भावना सबसे बड़ा कारक रही।
- अबकी बार, मोदी सरकार: 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए उनके द्वारा दिया गया यह स्लोगन देश के राजनीतिक विमर्श में इतना घुल गया कि उसने पूरे चुनाव अभियान को एक नई दिशा दे दी।
विरासत और सम्मान
पीयूष पांडे ने ओगिल्वी में करीब चार दशक बिताए और कंपनी के वर्ल्डवाइड चीफ क्रिएटिव ऑफिसर के पद तक पहुंचे। उनकी रचनात्मक नेतृत्व में ओगिल्वी लगातार कई वर्षों तक भारत की नंबर 1 ऐड एजेंसी बनी रही।
उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले, जिसमें शामिल है:
- पद्मश्री (2016): वह यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय विज्ञापन पेशेवर बने।
- CLIO लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2012)
- लंदन इंटरनेशनल अवार्ड्स (LIA) में ट्रिपल ग्रैंड प्राइज और लीजेंड अवार्ड (2024)
पीयूष पांडे अक्सर कहा करते थे कि “एक क्रिएटिव आदमी तब तक जिंदा रहता है, जब तक वह आम आदमी की तरह सोचता है।” वह केवल एक ऐड गुरु नहीं थे; वह भारत के लाखों लोगों के लिए एक कथाकार थे, जिन्होंने विज्ञापनों के माध्यम से देश के सामूहिक अवचेतन को आकार दिया। उनके निधन से एक युग का पटाक्षेप हो गया है, लेकिन उनके बनाए हुए विज्ञापन, स्लोगन और कहानियां आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी कि महान रचनात्मकता हमेशा सरलता और भावनात्मक गहराई में छिपी होती है।































