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‘रजाकार’ शब्द के कारण बांग्लादेश में बिगड़े हालात, जानिए इस एक शब्द के मायने और इसके पीछे की कहानी

रजाकार, बांग्लादेश

बांग्लादेश में इन दिनों एक शब्द ने तूफान ला दिया है। यह शब्द है ‘रजाकार’। इस एक शब्द ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। आइए जानते हैं कि क्या है इस शब्द का इतिहास और कैसे इसने बांग्लादेश की राजनीति में भूचाल ला दिया।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हाल ही में एक ऐसी टिप्पणी की जिसने पूरे देश में हलचल मचा दी। उन्होंने कहा कि क्या सरकारी नौकरियों में रजाकारों के पोते-पोतियों को कोटा मिलना चाहिए? यह बात उन्होंने मजाक में कही थी, लेकिन इसने छात्रों के गुस्से को और भड़का दिया।

पहले से ही बांग्लादेश में छात्र सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। उनका कहना था कि मौजूदा व्यवस्था भेदभावपूर्ण है। वर्तमान में, सरकारी पदों का एक तिहाई हिस्सा उन लोगों के बच्चों के लिए आरक्षित है जिन्होंने 1971 में देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। छात्रों का मानना था कि नौकरियां योग्यता के आधार पर मिलनी चाहिए, न कि किसी के पूर्वजों के कारनामों के आधार पर।

लेकिन जब प्रधानमंत्री ने ‘रजाकार’ शब्द का इस्तेमाल किया, तो स्थिति और बिगड़ गई। रजाकार शब्द बांग्लादेश के इतिहास में एक काला अध्याय है। 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान, रजाकार पाकिस्तानी सेना के समर्थक थे। उन्होंने बांग्लादेशी लोगों पर अत्याचार किए और देशद्रोह किया। आज भी बांग्लादेश में ‘रजाकार’ एक गाली के समान है।

प्रधानमंत्री के बयान के बाद, छात्रों ने और जोर-शोर से विरोध शुरू कर दिया। उन्होंने नारे लगाए – “तुई के, अमी के, रजाकार, रजाकार”। यानी “तू कौन, मैं कौन, रजाकार, रजाकार”। इस तरह के नारों से स्थिति और तनावपूर्ण हो गई।

रजाकार, बांग्लादेश

धीरे-धीरे विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी टेलीविजन स्टेशन में आग लगा दी। रेल सेवाएं बंद कर दी गईं। कई जगहों पर मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं। स्कूल और कॉलेज अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिए गए। सरकार को कर्फ्यू लगाना पड़ा।

हिंसा में अब तक 100 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। शांति बनाए रखने के लिए सेना को भी तैनात किया गया है। पूरे देश में तनाव का माहौल है।

रजाकार, बांग्लादेश

इस पूरी घटना ने बांग्लादेश के इतिहास और वर्तमान के बीच की खाई को और गहरा कर दिया है। एक तरफ वे लोग हैं जो मुक्ति संग्राम के इतिहास को सम्मान देना चाहते हैं, दूसरी तरफ नई पीढ़ी है जो अपने भविष्य के लिए समान अवसर चाहती है।

भारत ने इस मामले को बांग्लादेश का आंतरिक मामला बताया है। लेकिन भारत सरकार बांग्लादेश में रह रहे भारतीय नागरिकों और छात्रों की सुरक्षा को लेकर सतर्क है। विदेश मंत्रालय ने बताया कि वहां रह रहे करीब 15,000 भारतीयों में से 8,000 छात्र हैं। उनकी सुरक्षा के लिए हेल्पलाइन नंबर 24 घंटे चालू रखा गया है।

यह घटना बताती है कि इतिहास कितना महत्वपूर्ण होता है। एक छोटा सा शब्द कैसे पूरे देश को हिला सकता है। बांग्लादेश के सामने अब यह चुनौती है कि वह अपने अतीत का सम्मान करते हुए भविष्य की ओर कैसे बढ़े। यह एक ऐसा संतुलन है जिसे बनाना आसान नहीं होगा, लेकिन जो देश के भविष्य के लिए बहुत जरूरी है।

बांग्लादेश एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। वहां की सरकार और जनता को मिलकर एक ऐसा रास्ता निकालना होगा जो सभी के हितों की रक्षा करे। तभी देश आगे बढ़ सकेगा और विकास कर सकेगा।

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