अमृतसर का स्वर्ण मंदिर शांति और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन हाल ही में इसके परिसर में गूंजी एक ऐसी आवाज, जिसने पंजाब के इतिहास की उन कालीं गलियों को याद दिला दिया जहां विभाजन की चिंगारी भड़की थी।
दरअसल ऑपरेशन ब्लू स्टार की 40वीं बरसी पर गोलिबारी और बलिदान की यादों को ताजा करने के बजाय, कुछ लोगों ने नफरत के बीज बोने शुरू कर दिए। जरनैल सिंह भिंडरांवाले के पोस्टरों के साथ विभाजन और खालिस्तान के नारे गूंजे। एक पल के लिए लगा, मानो इतिहास एक बार फिर अपनी घातक पुनरावृत्ति दोहराने जा रहा है।
लेकिन ये केवल एक पल था। गुरुद्वारे के श्रद्धालु, इस घटना से स्तब्ध और आहत हुए, लेकिन अपनी शांति और धैर्य नहीं खोया। उन्होंने आपसी प्रेम और सद्भाव के संदेश को दोहराया और विभाजन के विषैले बीज को गिरने से पहले ही कुचल दिया।
ये घटना एक सावधानी का संकेत है – हमें अपने इतिहास से सीख लेनी चाहिए और सतर्क रहना चाहिए ताकि नफरत और विभाजन की आग एक बार फिर न भड़के। गुरुद्वारों और मंदिरों जैसी पवित्र धरातलों को राजनीतिक रणभूमि नहीं बनना चाहिए।
इस घटना के बाद हम सब को एक बार फिर अपनी एकता, भाईचारे और सहिष्णुता पर गर्व करना चाहिए। हमें अपने इतिहास की भयावह यादों को स्मृति में संजोकर रखना चाहिए ताकि उन्हें दोहराने की गलती न की जा सके। क्योंकि अगर हम अपने इतिहास से नहीं सीखेंगे, तो इतिहास हमें एक बार फिर याद दिलाएगा कि विभाजन कितना दर्दनाक हो सकता है।
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