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दिल्ली चिड़ियाघर के अफ्रीकी हाथी शंकर के दर्दनाक मौत की कहानी झकझोड़ देगी

शंकर
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आज हम एक ऐसी कहानी लेकर आए हैं जो दिल को छू लेगी। दिल्ली का National Zoological Park, जिसे हम प्यार से दिल्ली चिड़ियाघर कहते हैं, अब थोड़ा सूना हो गया है। यहां का स्टार अट्रैक्शन, अफ्रीकी हाथी शंकर, अब हमारे बीच नहीं रहा। उसकी मौत ने न सिर्फ चिड़ियाघर के कर्मचारियों को सदमे में डाल दिया, बल्कि उन लाखों पर्यटकों को भी दुखी कर दिया जो सालों से उसे देखने आते थे। आइए, इस भावुक कहानी को करीब से समझते हैं। शंकर की जिंदगी, उसकी तन्हाई और आखिरी सांसों की दास्तान।

एक अचानक का झटका जो दिल दहला गया
17 सितंबर की शाम, जब सूरज ढल रहा था, शंकर अचानक अपने शेड में गिर पड़ा। चिड़ियाघर के डॉक्टरों ने फौरन इलाज शुरू किया, लेकिन रात करीब 8 बजे उसकी सांसें थम गईं। मौत का कारण? तीव्र हृदय विफलता। लेकिन असली वजह क्या थी? चिड़ियाघर के अधिकारी कहते हैं कि पूरी सच्चाई तो भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), बरेली से आने वाली लैब रिपोर्ट से ही पता चलेगी।

दरअसल पोस्टमॉर्टम की टीम में आईवीआरआई की विशेषज्ञ, स्वास्थ्य सलाहकार समिति और पर्यावरण मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल थे। आईवीआरआई के वन्यजीव विभाग के नोडल इंचार्ज अभिजीत पावड़े ने बताया कि शुरुआती जांच में दिल में खून का थक्का पाया गया। अब सवाल ये है, कि ये थक्का कैसे बना? सूत्रों के मुताबिक, ये किसी बैक्टिरियल संक्रमण या गहरे सदमे की वजह से हो सकता है। सोचिए, एक इतना मजबूत जानवर, जो जंगलों का राजा कहलाता है, कैसे इतनी चुपचाप टूट गया। बताया जा रहा है कि, दो दिन पहले ही शंकर ने खाना छोड़ दिया था। 17 सितंबर की दोपहर को उसने पत्ते और घास कम खाए, लेकिन फल-सब्जियां ठीक लीं। शाम को हल्की दस्त की शिकायत हुई, और फिर… सब खत्म। ये पल चिड़ियाघर के कर्मचारियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थे, जो सालों से शंकर को अपना परिवार मानते थे।

एक तोहफे की दर्दभरी कहानी
शंकर की जिंदगी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट जैसी थी। खुशी, प्यार, तन्हाई और ट्रेजडी से भरी। नवंबर 1998 में, जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा जिम्बाब्वे की राजकीय यात्रा पर गए, तो वहां की सरकार ने उन्हें दो प्यारे हाथी के बच्चे तोहफे में दिए, एक नर और एक मादा। दिल्ली चिड़ियाघर में लाए गए इन बच्चों का नाम रखा गया। नर का नाम राष्ट्रपति के नाम पर शंकर, और मादा का जिम्बाब्वे दूतावास के राजदूत की पत्नी के नाम पर बोमई रखा गया।

सात साल तक दोनों साथ रहे, खुशहाल। पर्यटक उन्हें देखकर मुस्कुराते, बच्चे उत्साह से चिल्लाते। लेकिन 2005 में बोमई की बीमारी से मौत हो गई। उसके बाद शंकर अकेला पड़ गया। तन्हाई ने उसे आक्रामक बना दिया। वो अपने बाड़े में कैद होकर रह गया। 13 साल की लंबी अकेली जिंदगी। सोचिए, एक सामाजिक प्राणी, जो झुंड में रहने का आदी होता है, कैसे सालों तक अकेलेपन की मार सहे। पार्टनर की जुदाई ने उसे थोड़ा आक्रामक बना दिया था, जिसकी वजह से चिड़ियाघर के एक बाड़े में उसे जंजीरों में कैद कर दिया गया। ऐसे में जब उसकी तस्वीरें बाहर आई, तो उसकी हालत देख चिंतित और परेशान हो गए। वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ जू एंड एक्वेरियम ने तो दिल्ली चिड़ियाघर की सदस्यता तक रद्द कर दी, क्योंकि शंकर को जंजीरों में बांधा गया था। दबाव बढ़ा, पर्यावरण मंत्रालय हरकत में आया, और आखिरकार शंकर को आजाद किया गया।

कई लोगों ने सुझाव दिया कि शंकर के लिए अफ्रीकी मूल की मादा साथी लाई जाए। भारत सरकार ने जिम्बाब्वे से बात भी की, लेकिन अफ्रीकी देशों ने मना कर दिया। शायद जंजीरों वाली घटना से उनका भरोसा टूट गया था। कुछ ने तो शंकर को वापस उसके देश भेजने की मांग भी की। मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। जुलाई 2022 में हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि शंकर के लिए साथी लाई जाए, लेकिन वो योजना कभी अमल में नहीं आई। 29 साल की उम्र में, 27 साल दिल्ली चिड़ियाघर में बिताने के बाद, शंकर चला गया। अकेला, उदास।

शंकर की मौत सिर्फ एक हाथी की मौत नहीं है। ये एक सबक है कि जानवर भी इंसानों की तरह महसूस करते हैं। तन्हाई उन्हें तोड़ देती है, हमें उनकी जरूरतों का ख्याल रखना चाहिए। दिल्ली चिड़ियाघर अब शंकर के बिना अधूरा लगेगा, लेकिन उसकी कहानी हमें वन्यजीव संरक्षण की अहमियत सिखाती रहेगी। अगर आपने कभी शंकर को देखा है, तो अपनी यादें शेयर करें। अलविदा शंकर, तुम्हारी सूंड की वो हल्की हलचल हमेशा याद रहेगी।

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