डॉ. भीमराव बाबा साहेब आंबेडकर भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं। वे न केवल भारतीय संविधान के निर्माता थे, बल्कि दलित समुदाय और समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए एक आवाज थे। आंबेडकर ने अपने जीवन में सामाजिक भेदभाव और अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया। उनके जीवन और विचारों का मुख्य उद्देश्य समाज के हर व्यक्ति को समान अधिकार दिलाना था।
हालांकि, डॉ. आंबेडकर और कांग्रेस पार्टी के बीच मतभेद लंबे समय तक बने रहे। इन मतभेदों ने भारत की राजनीति और समाज सुधार की दिशा को गहराई से प्रभावित किया। कांग्रेस और बाबा साहेब आंबेडकर (Congress and Baba Saheb Ambedkar) के बीच के वैचारिक टकराव भारतीय राजनीति का महत्वपूर्ण अध्याय हैं।
कांग्रेस और आंबेडकर के बीच वैचारिक मतभेद
1936 में डॉ. आंबेडकर ने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (Independent Labour Party) की स्थापना की। इसका उद्देश्य दलितों और वंचित समुदायों के लिए एक स्वतंत्र राजनीतिक मंच तैयार करना था। आंबेडकर को ये महसूस हुआ कि कांग्रेस पार्टी दलितों के अधिकारों के प्रति गंभीर नहीं थी। उनका मानना था कि कांग्रेस का नेतृत्व मुख्यतः ऊंची जातियों के हाथ में था, जो दलितों की समस्याओं को गहराई से नहीं समझते थे।
कांग्रेस ने दलितों को ‘हरिजन’ नाम देने का प्रस्ताव रखा, जिसे आंबेडकर ने सिरे से खारिज कर दिया। उनके अनुसार, नाम बदलने से दलितों की समस्याएं खत्म नहीं होंगी। उन्होंने कहा कि असली लड़ाई सामाजिक भेदभाव और जातिगत अन्याय को खत्म करने की है।
पूना पैक्ट का टकराव
डॉ. आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच का सबसे बड़ा मतभेद पूना पैक्ट (Poona Pact) के दौरान हुआ। आंबेडकर ने दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडल (Separate Electorate) की मांग की थी, जिसे गांधी ने देश की एकता के लिए खतरा बताया। गांधी ने इसके विरोध में अनशन किया, जिसके बाद आंबेडकर को अपनी मांग वापस लेनी पड़ी।
हालांकि, आंबेडकर ने पूना पैक्ट को स्वीकार कर लिया, लेकिन इसे दलितों के अधिकारों पर समझौता माना। उन्होंने कहा कि ये समझौता दलितों के राजनीतिक अधिकारों को कमजोर करता है।
आजादी के बाद कांग्रेस और आंबेडकर के बीच असहमति
स्वतंत्रता के बाद, डॉ. आंबेडकर को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में कानून मंत्री के रूप में शामिल किया गया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण विधेयक पेश किए, जिनमें सबसे प्रमुख था हिंदू कोड बिल (Hindu Code Bill) इस विधेयक का उद्देश्य हिंदू महिलाओं को संपत्ति में अधिकार, तलाक का अधिकार, और समानता सुनिश्चित करना था। लेकिन कांग्रेस के रूढ़िवादी वर्ग और अन्य संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया।
कई ब्राह्मणवादी नेताओं ने इसे पारंपरिक हिंदू धर्म के खिलाफ बताया। जब विधेयक पास नहीं हो सका, तो आंबेडकर ने 1951 में कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस महिलाओं और दलितों के अधिकारों को सुनिश्चित करने में असफल रही है।
संविधान सभा में मतभेद
संविधान सभा में भी आंबेडकर और कांग्रेस के बीच मतभेद रहे। आंबेडकर ने कई बार कांग्रेस की नीतियों और फैसलों की आलोचना की। उन्होंने अनुच्छेद 370 (जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला प्रावधान) का विरोध किया और इसे भारत की संप्रभुता के खिलाफ बताया।
इसके अलावा, आंबेडकर ने भारत की विदेश नीति और नेहरू की नीतियों की भी आलोचना की। उनका मानना था कि भारत को अधिक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक विदेश नीति अपनानी चाहिए।
1952 के चुनावों में कांग्रेस और आंबेडकर के बीच संघर्ष
1952 के पहले आम चुनाव में, डॉ. आंबेडकर ने बॉम्बे नॉर्थ सीट से चुनाव लड़ा। ये चुनाव कांग्रेस और आंबेडकर के बीच सीधा मुकाबला था।
कांग्रेस ने दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। आंबेडकर ने कांग्रेस पर दलितों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। हालांकि, चुनाव में आंबेडकर कांग्रेस उम्मीदवार नारायण सदोबा काजरोलकर से हार गए। इस हार के बाद, आंबेडकर ने चुनाव आयोग से शिकायत की और आरोप लगाया कि चुनाव में धांधली हुई है।
आंबेडकर का राजनीतिक संघर्ष
संविधान सभा में वापसी: आंबेडकर को संविधान सभा में शामिल होने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। उन्हें शुरू में संविधान सभा में शामिल होने से रोका गया। बाद में, बंगाल के जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने निर्वाचन क्षेत्र से इस्तीफा देकर आंबेडकर को सीट दी।
दलित आंदोलन को नई दिशा
आंबेडकर ने दलित आंदोलन को नई दिशा दी। उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए न केवल राजनीतिक संघर्ष किया, बल्कि सामाजिक और धार्मिक सुधार की भी वकालत की। 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और लाखों दलितों को जातिगत भेदभाव से मुक्ति का संदेश दिया।
कांग्रेस और बाबा साहेब आंबेडकर (Congress and Baba Saheb Ambedkar) के बीच मतभेद भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। ये मतभेद केवल राजनीति तक सीमित नहीं थे, बल्कि ये सामाजिक सुधार और जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा थे।
डॉ. आंबेडकर और कांग्रेस के बीच मतभेदों के बावजूद, उन्होंने संविधान निर्माण में अपनी भूमिका बखूबी निभाई। उनका जीवन और विचार हमें ये सिखाते हैं कि समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित करना सबसे महत्वपूर्ण है।
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