Uddhav-Raj Thackeray Alliance: महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे, दो ऐसे नाम जो कभी एक ही मंच पर साथ नजर आते थे, आज फिर से चर्चा में हैं। शिवसेना (यूबीटी) की एक इंस्टाग्राम पोस्ट ने इस आग में घी डालने का काम किया है, जिसमें “मराठी गौरव” और “महाराष्ट्र के लिए एकजुट होने का समय” जैसे शब्दों ने लोगों का ध्यान खींचा है। यह पोस्ट ठीक महाराष्ट्र दिवस से पहले आई, जो हर साल 1 मई को मनाया जाता है। इसने उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के बीच संभावित गठबंधन की अटकलों को हवा दे दी है। आइए, इस सियासी ड्रामे को करीब से समझते हैं।
शिवसेना (यूबीटी) ने अपनी पोस्ट में साफ कहा, “मुंबई और महाराष्ट्र के लिए एकजुट होने का समय आ गया है। शिवसैनिक मराठी गौरव की रक्षा के लिए तैयार हैं।” यह संदेश सिर्फ कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने के लिए नहीं था, बल्कि इसका गहरा सियासी मतलब भी है। इस पोस्ट के बाद से ही लोग यह कयास लगा रहे हैं कि क्या उद्धव और राज, जो कभी एक-दूसरे के खिलाफ तीखे बयान देते थे, अब एक साथ आएंगे। शिवसेना (यूबीटी) के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि यह पोस्ट कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए थी, लेकिन गठबंधन का फैसला सिर्फ उद्धव और राज ही करेंगे। दूसरी ओर, एमएनएस के एक नेता ने बिना नाम लिए कहा कि अगर उद्धव एक कदम आगे बढ़ाएंगे, तो उनका भी स्वागत है। लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि गठबंधन जैसे बड़े फैसले सोशल मीडिया पोस्ट से नहीं, बल्कि गहन चर्चा के बाद ही होंगे।
यहां ध्यान देने वाली बात है कि दोनों नेता इस समय विदेश में पारिवारिक छुट्टियों पर हैं। राज ठाकरे 29 अप्रैल को मुंबई लौटने वाले हैं, जबकि उद्धव 4 मई तक वापस आएंगे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी वापसी के बाद क्या कोई ठोस बातचीत शुरू होती है।
उद्धव और राज ठाकरे का रिश्ता सिर्फ सियासी नहीं, बल्कि खून का भी है। दोनों चचेरे भाई हैं और कभी शिवसेना के एक ही छतरी के नीचे काम करते थे। लेकिन 2006 में राज ने शिवसेना छोड़कर अपनी अलग पार्टी, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, बनाई। इसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए, और कई बार उनके बीच तीखी बयानबाजी भी हुई। लेकिन हाल के दिनों में माहौल बदला है। राज ठाकरे ने पिछले हफ्ते एक साक्षात्कार में कहा कि उनके और उद्धव के बीच कोई बड़ी समस्या नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि “महाराष्ट्र का हित” (Maharashtra’s welfare) उनके लिए सबसे ऊपर है। उद्धव ने भी एक पार्टी बैठक में जवाब दिया कि वह “मराठी गौरव” (Marathi pride) और महाराष्ट्र के हित के लिए छोटे-मोटे मतभेद भूलने को तैयार हैं।
यह बयानबाजी सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं है। दोनों नेताओं के इस बदले हुए रवैये ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। खासकर तब, जब इस साल के अंत में होने वाले निकाय चुनावों की तैयारियां जोरों पर हैं। अगर उद्धव और राज वाकई में एक साथ आते हैं, तो यह महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा उलटफेर ला सकता है।
इस संभावित गठबंधन की खबर ने न सिर्फ शिवसैनिकों और एमएनएस कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया है, बल्कि अन्य सियासी दलों के नेताओं ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। एनसीपी (एसपी) की नेता सुप्रिया सुले ने उद्धव और राज दोनों को फोन करके इस कदम की तारीफ की। उन्होंने इसे “स्वर्णिम पल” बताया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस खबर का स्वागत किया और कहा कि अगर दोनों भाई महाराष्ट्र के भले के लिए एक साथ आते हैं, तो यह अच्छी बात होगी।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह दोस्ती सिर्फ भावनात्मक बातों तक सीमित रहेगी, या इसका सियासी रूप भी सामने आएगा? शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने साफ किया कि अभी कोई औपचारिक गठबंधन नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि फिलहाल सिर्फ “भावनात्मक बातचीत” हो रही है। लेकिन राउत ने यह भी जोड़ा कि दोनों भाइयों का रिश्ता कभी टूटा नहीं है, और अगर गठबंधन की बात आएगी, तो फैसला उद्धव और राज ही लेंगे।
इस संभावित गठबंधन की चर्चा को और बल तब मिला, जब महाराष्ट्र सरकार ने प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला किया। राज ठाकरे ने इस फैसले का कड़ा विरोध करते हुए कहा, “हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं।” उद्धव ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरा और कहा कि मराठी भाषा और संस्कृति की रक्षा उनकी प्राथमिकता है। इस मुद्दे ने दोनों नेताओं को एक साझा मंच पर लाने का काम किया। दोनों ही “मराठी अस्मिता” (Marathi identity) को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं, जिसने उनके समर्थकों में जोश भरा है।
यहां यह समझना जरूरी है कि मराठी गौरव और मराठी अस्मिता महाराष्ट्र की सियासत में हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं। शिवसेना और एमएनएस, दोनों ही पार्टियां मराठी मानुष के हितों की बात करती हैं। अगर ये दोनों एक साथ आते हैं, तो यह मराठी वोटरों को एकजुट करने में बड़ा रोल अदा कर सकता है, खासकर मुंबई और ठाणे जैसे इलाकों में, जहां दोनों पार्टियों का अच्छा खासा प्रभाव है।
महाराष्ट्र में इस साल के अंत में होने वाले निकाय चुनाव इस संभावित गठबंधन के लिए एक बड़ा मौका हो सकते हैं। मुंबई की बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) का चुनाव दोनों पार्टियों के लिए हमेशा से अहम रहा है। शिवसेना (यूबीटी) और एमएनएस अगर एक साथ चुनाव लड़ते हैं, तो यह महायुति गठबंधन (बीजेपी, शिंदे गुट की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी) के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है।
हालांकि, गठबंधन की राह इतनी आसान नहीं है। दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच पुरानी कड़वाहट और वैचारिक मतभेद भी हैं। उद्धव की शिवसेना (यूबीटी) ने हाल के वर्षों में कांग्रेस और एनसीपी (एसपी) के साथ गठबंधन करके एक उदार छवि बनाई है, जबकि राज ठाकरे ने कट्टर हिंदुत्व और मराठी मुद्दों पर जोर दिया है। ऐसे में दोनों को एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम तैयार करना होगा, जिसमें मराठी गौरव और महाराष्ट्र का हित सबसे ऊपर हो।
महाराष्ट्र की जनता के लिए यह सियासी ड्रामा किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। दो भाई, जो सालों तक अलग-अलग रास्तों पर चले, अब फिर से एक होने की बात कर रहे हैं। यह सिर्फ सियासत की बात नहीं है, बल्कि भावनाओं का मेल भी है। मराठी मानुष के लिए दोनों नेताओं का यह कदम कितना फायदेमंद होगा, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि उद्धव और राज की इस मुलाकात ने महाराष्ट्र की सियासत में एक नया अध्याय शुरू करने की उम्मीद जरूर जगा दी है।
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