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Vijay Rally Stampede: करूर में विजय रैली की भगदड़ का सच; कौन जिम्मेदार, क्यों नहीं सुधरता भीड़ प्रबंधन का इंतजाम

Vijay Rally Stampede: करूर में विजय रैली की भगदड़ का सच; कौन जिम्मेदार, क्यों नहीं सुधरता भीड़ प्रबंधन का इंतजाम

Vijay Rally Stampede: तमिलनाडु के करूर में एक दर्दनाक हादसा हो गया। एक्टर और राजनेता विजय की रैली में भगदड़ मच गई। 27 सितंबर 2025 को ये घटना हुई। इसमें 40 लोग मारे गए। इनमें 13 पुरुष, 17 महिलाएं, 4 लड़के और 5 लड़कियां शामिल हैं। 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। कई अभी अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। लोग विजय को देखने के लिए सुबह से जमा थे। लेकिन विजय शाम 7 बजे पहुंचे। छह घंटे की देरी ने सब बर्बाद कर दिया। भीड़ ने वाहन के लिए रास्ता बनाया तो अफरा-तफरी मच गई। गर्मी में भूखे-प्यासे लोग गिर पड़े। ये विजय रैली भगदड़ ने खुशी को मातम में बदल दिया।

विजय की तमिलगा वेत्री कझगम पार्टी की ये रैली चुनावी दौरा का हिस्सा थी। वेलुसाम्यपुरम में करीब 27,000 लोग जमा हो गए। सुबह 9 बजे से लोग इंतजार कर रहे थे। रैली दोपहर 12 बजे शुरू होनी थी। लेकिन विजय देर से आए। पार्टी के गाने बजाकर भीड़ को संभालने की कोशिश की गई। लेकिन जब वाहन आया तो सड़क पर कन्वॉय ने रास्ता जाम कर दिया। लोग स्टेज की तरफ दौड़े। बैरिकेड तोड़ दिए। कई लोग बेहोश हो गए। डिहाइड्रेशन और थकान ने हालत बिगाड़ दी। पुलिस ने इंतजाम किए थे लेकिन प्लानिंग कमजोर साबित हुई। आयोजकों ने चार जगहें मांगीं लेकिन पुलिस ने सिर्फ यहां इजाजत दी। ये सिस्टम विफलता ने इतनी जिंदगियां लूट लीं।

विजय ने दुख जताया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि उनका दिल टूट गया है। दर्द बयां नहीं हो सकता। मरने वालों के परिवार को 20 लाख रुपये और घायलों को 2 लाख देने का ऐलान किया। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने करूर जाकर परिवारों से मिले। उन्होंने 10 लाख रुपये की मदद दी। घायलों को 1 लाख। रिटायर्ड जज अरुणा जगदीश की अगुवाई में जांच आयोग बनाया। हाईकोर्ट में टीवीके ने सीबीआई जांच की मांग की। मदुरै बेंच 29 सितंबर को सुनवाई करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक जताया। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने भी दुख व्यक्त किया। बीजेपी नेता नैनार नागेंद्रन अस्पताल गए। लेकिन सवाल ये है कि जिम्मेदारी कौन लेगा।

भारत में ऐसी भगदड़ बार-बार हो रही है। सिस्टम की कमियां हर बार सामने आती हैं। भीड़ का सही अनुमान नहीं लगाया जाता। इंटेलिजेंस फेल हो जाती है। एंट्री-एग्जिट गेट कम होते हैं। इमरजेंसी रास्ते बंद रहते हैं। बैरिकेडिंग कमजोर होती है। राजनीतिक आयोजनों में सख्ती कम की जाती है। आयोजक नाराज न हों इसके डर से। हर बार जांच होती है लेकिन दोषी बच जाते हैं। निचले अफसरों पर ठीकरा फोड़ा जाता है। बड़े नेता और आयोजक साफ निकल जाते हैं। विजय की रैली में भी यही कहानी बनी। अचानक भीड़ बढ़ गई। अफवाह फैली। लेकिन असल में प्लानिंग की कमी थी। भीड़ प्रबंधन समस्याएं क्यों नहीं सुधरतीं।

हर हादसे के बाद जांच का जाल बिछ जाता है। मजिस्ट्रियल जांच। एसआईटी। न्यायिक आयोग। लेकिन नतीजा वही। मानवीय गलती बताकर केस बंद। पीड़ित परिवार मुआवजे पर रुक जाते हैं। न्याय नहीं मिलता। सवाल उठते हैं कि भीड़ अनुमान की जिम्मेदारी किसकी। सुरक्षा इंतजाम क्यों कमजोर। निकासी मार्ग पर्याप्त क्यों नहीं। भीड़ प्रबंधन का ठोस प्लान क्यों नहीं। राजनीति और धर्म की छाया में लापरवाही बढ़ जाती है। वीआईपी को खुश रखने के चक्कर में जानें चली जाती हैं। ये चक्र टूटना चाहिए। लेकिन सिस्टम जवाबदेही से भागता रहता है।

करूर हादसे ने फिर साबित कर दिया। सिस्टम में गहरी दरारें हैं। भीड़ को कंट्रोल करने के लिए कैपेसिटी तय होनी चाहिए। सीसीटीवी और ड्रोन लगने चाहिए। सेंसर से घनत्व मापा जाए। लेकिन ये सब कागजों पर रह जाता है। आयोजक और प्रशासन मिलकर इंतजाम ढीले छोड़ देते हैं। नतीजा दर्दनाक होता है। परिवार रोते रहते हैं। जांच रिपोर्ट धूल खाती है। नई घटना का इंतजार होता है। ये सिलसिला कब रुकेगा।

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