Virar-Alibaug Corridor Approved on BOT: मुंबई की सड़कों पर हर दिन बढ़ती भीड़ और ट्रैफिक का आलम किसी से छिपा नहीं है। इस शहर की रफ्तार को और सुगम बनाने के लिए एक ऐसी सड़क की जरूरत थी, जो न केवल मुंबई को बल्कि आसपास के इलाकों को भी जोड़े। इस सपने को हकीकत में बदलने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। 17 मई 2025 को महाराष्ट्र की सरकार ने वीरार-अलिबाग मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (Virar-Alibaug Corridor, वीरर-अलिबाग गलियारा) के पहले चरण को बनाने के लिए मंजूरी दे दी। यह 165 किलोमीटर लंबा रास्ता मुंबई मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र को जाम से राहत देगा और गुजरात व उत्तर भारत से आने वाले वाहनों के लिए एक नया रास्ता बनेगा। यह खबर हर उस व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है, जो मुंबई की बदलती तस्वीर का हिस्सा है।
यह कॉरिडोर महाराष्ट्र के सबसे बड़े सड़क बुनियादी ढांचा प्रोजेक्ट्स में से एक है। इसे महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) के जरिए बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT) मॉडल पर बनाया जाएगा। इस मॉडल में एक निजी कंपनी सड़क बनाएगी, उसका संचालन करेगी, टोल के जरिए अपनी लागत वसूलेगी, और फिर उसे सरकार को सौंप देगी। पहले इस प्रोजेक्ट के लिए 19,334 करोड़ रुपये के टेंडर निकाले गए थे, जो 11 हिस्सों में बांटे गए थे। लेकिन ठेकेदारों ने 36 फीसदी ज्यादा कीमतें मांगीं, जिससे लागत 26,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। कई दौर की बातचीत और जांच के बाद भी लागत 25,000 करोड़ के आसपास रही। इस बढ़ी हुई लागत ने सरकार को परेशान कर दिया और पुराने टेंडर को रद्द करने का फैसला लिया गया।
पैसे की कमी भी इस प्रोजेक्ट के लिए एक बड़ी चुनौती थी। मार्च 2025 में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने BOT मॉडल अपनाने की सलाह दी, ताकि सरकार पर वित्तीय बोझ कम हो। अप्रैल में MSRDC ने इस मॉडल के लिए नया प्रस्ताव दिया, जिसे अब मंजूरी मिल गई है। यह फैसला न केवल प्रोजेक्ट को गति देगा, बल्कि मुंबई और आसपास के इलाकों के लिए एक नई संभावना भी खोलेगा। पहले चरण में 96.41 किलोमीटर की सड़क बनेगी, जो पालघर जिले के नवघर से पेन तालुका के बलवली तक जाएगी।
वीरार-अलिबाग कॉरिडोर का मकसद मुंबई मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में ट्रैफिक की भीड़ को कम करना है। यह जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) और निर्माणाधीन नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को सीधे जोड़ेगा। इससे ठाणे और पालघर जिलों की सड़कों पर दबाव कम होगा और उपनगरों में ट्रैफिक आसान होगा। यह कॉरिडोर कई बड़े राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे से भी जुड़ेगा, जैसे NH-48 (मुंबई-अहमदाबाद), NH-848 (मुंबई-आगरा), NH-61 (कल्याण-मुरबाड-निर्मल), मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे, मुंबई-वडोदरा एक्सप्रेसवे और मुंबई-गोवा राष्ट्रीय राजमार्ग। यह सड़क वसई, भिवंडी, कल्याण, अंबरनाथ, पनवेल, उरण, पेन और अलिबाग से होकर गुजरेगी।
इस प्रोजेक्ट का एक और बड़ा फायदा यह है कि यह मुंबई को जाम से राहत देकर योजनाबद्ध शहरी विकास को बढ़ावा देगा। मुंबई जैसे शहर में, जहां हर दिन लाखों लोग सड़कों पर होते हैं, ऐसी परियोजनाएं न केवल समय बचाती हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी गति देती हैं। JNPT देश का सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट है, और इस कॉरिडोर से उस तक पहुंच आसान होगी। साथ ही, नवी मुंबई हवाई अड्डा शुरू होने के बाद यात्रियों और कार्गो के लिए यह सड़क एक महत्वपूर्ण रास्ता बनेगी।
इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर वित्तीय व्यवस्था की है। जमीन अधिग्रहण के लिए 22,250 करोड़ रुपये और ब्याज के लिए 14,763 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस तरह पहले चरण का कुल बजट 37,013 करोड़ रुपये है। इतनी बड़ी राशि से साफ है कि सरकार इस प्रोजेक्ट को कितनी गंभीरता से ले रही है। BOT मॉडल अपनाने से निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ेगी, और यह सुनिश्चित होगा कि प्रोजेक्ट समय पर पूरा हो।
इसके अलावा, कैबिनेट ने एक और अहम फैसला लिया। नासिक जिले के जांबुतके गांव में 29 हेक्टेयर और 52 एकड़ जमीन महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (MIDC) को दी जाएगी। इस जमीन पर आदिवासी औद्योगिक क्लस्टर (Tribal Industrial Cluster, आदिवासी औद्योगिक समूह) बनाया जाएगा। इसका मकसद आदिवासी समुदाय के उद्यमियों को जमीन देना है, ताकि वे उद्योग शुरू कर सकें। यह कदम न केवल रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा, बल्कि आदिवासी इलाकों में आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देगा।
यह कॉरिडोर और आदिवासी क्लस्टर दोनों ही महाराष्ट्र के भविष्य को नई दिशा देने वाले हैं। वीरार-अलिबाग कॉरिडोर मुंबई की सड़कों को सांस लेने का मौका देगा, वहीं आदिवासी क्लस्टर उन लोगों को सपनों के पंख देगा, जो अपने हुनर से नई शुरुआत करना चाहते हैं। यह दोनों परियोजनाएं विकास और समावेशिता की कहानी लिख रही हैं।