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Wahid Shaikh Fight for Justice: मुंबई ट्रेन धमाकों में बेगुनाह को फंसाया? वाहिद ने बताया जेल का दर्द!

Wahid Shaikh Fight for Justice: मुंबई ट्रेन धमाकों में बेगुनाह को फंसाया? वाहिद ने बताया जेल का दर्द!

Wahid Shaikh Fight for Justice: मुंबई में 11 जुलाई 2006 को हुए ट्रेन धमाकों ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया था। इन धमाकों में 189 लोग मारे गए और 827 से ज्यादा घायल हुए। इस मामले में 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें से एक थे अब्दुल वाहिद शेख। वाहिद को 9 साल जेल में रखा गया, लेकिन 2015 में कोर्ट ने उन्हें बेगुनाह करार दिया। अब, 19 साल बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने बाकी 12 आरोपियों को भी बरी कर दिया, जिसमें से पांच को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।

वाहिद शेख, जो उस समय 27 साल के थे, मुंबई के बायकुला में अंजुमन-ए-इस्लाम स्कूल में टीचर थे। वो उर्दू में पोस्ट-ग्रेजुएट थे और डी.एड. की डिग्री भी रखते थे। उनकी शादी को कुछ ही साल हुए थे, और वो अपनी पत्नी और नन्ही बेटी के साथ मुंब्रा में रहते थे। लेकिन 29 सितंबर 2006 को महाराष्ट्र एंटी-टेरेरिज्म स्क्वॉड (ATS) ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन पर स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) और ISI से जुड़े होने और अपने घर में पाकिस्तानी आतंकियों को पनाह देने का आरोप लगा।

वाहिद ने बताया कि ATS की हिरासत में उन्हें 30 दिन तक भयानक यातनाएं दी गईं। पानी में डुबोना, पैर खींचना जैसी तकलीफें उन्हें सहनी पड़ी। इसके बाद उन्हें आर्थर रोड जेल की हाई-सिक्योरिटी ‘अंडा सेल’ में रखा गया। वहां वो नौ साल तक बंद रहे। उन्होंने बताया कि एक अफसर, ACP विनोद भट्ट, ने उनकी मासूमियत को समझा था, लेकिन ऊपर से दबाव के कारण वो कुछ नहीं कर सके। वाहिद का दावा है कि भट्ट ने इस दबाव की वजह से अपनी जान ले ली, हालांकि इसे रेलवे पुलिस ने दुर्घटना बताया।

जेल में रहते हुए वाहिद की जिंदगी पूरी तरह बदल गई। उनकी पत्नी, जो उस समय नई-नई मां बनी थीं, ने जोगेश्वरी के एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया ताकि बच्चों का पेट पल सके। वो हर हफ्ते अपनी बेटी को लेकर वाहिद से मिलने कोर्ट जाती थीं। वाहिद ने जेल से अपनी पत्नी को सैकड़ों प्यार भरे खत लिखे, जो उनकी पत्नी ने संभालकर रखे। वो अब इन खतों को एक किताब के रूप में छपवाने की योजना बना रहे हैं।

वाहिद ने हिम्मत नहीं हारी। जेल में रहते हुए उन्होंने अंग्रेजी में एम.ए. किया, फिर एलएलबी और एलएलएम की डिग्री हासिल की। उन्होंने उर्दू में एक किताब ‘बेगुनाह कैदी’ भी लिखी। 2015 में जब उन्हें रिहा किया गया, तो वो जेल सुधारों के लिए एक्टिविस्ट बन गए और ‘इनोसेंस नेटवर्क’ शुरू किया, ताकि बाकी 12 आरोपियों को भी इंसाफ दिला सकें।

21 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ATS का केस पूरी तरह कमजोर था, गवाहों के बयान अविश्वसनीय थे, और बरामद सबूतों का कोई कानूनी मूल्य नहीं था। कोर्ट ने ये भी माना कि आरोपियों से जबरदस्ती कबूलनामे लिए गए, जिसमें यातनाएं दी गईं।

वाहिद अब ATS से माफी और हर उस साल के लिए 1 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग कर रहे हैं, जो उन्होंने और बाकी आरोपियों ने जेल में बिताए। वो चाहते हैं कि इस मामले की दोबारा जांच हो और एक हाईकोर्ट जज की अगुआई में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) बनाई जाए ताकि असली गुनहगार पकड़े जाएं।

वाहिद की जिंदगी पर बनी एक फिल्म ‘हीमोलिम्फ’ भी 2022 में रिलीज हुई थी। आज वो एक वकील और एक्टिविस्ट के तौर पर बेगुनाहों के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी और उनके परिवार की तकलीफें उस दर्द को बयां करती हैं, जो एक गलत इल्जाम ने उन्हें दी।

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