बस्तर की जनजातियों में एक अनोखी परंपरा है, जहां देवी-देवताओं को भी दोषी ठहराया जा सकता है। इस परंपरा में, जब स्थानीय लोगों की प्रार्थनाओं का जवाब नहीं मिलता, तो देवी-देवताओं को अदालत में पेश किया जाता है और दोषी पाए जाने पर उन्हें सजा भी दी जाती है। आइए जानते हैं इस अनूठी परंपरा के बारे में और कैसे यह जनजातियों की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
देवी-देवताओं को सजा क्यों दी जाती है?
बस्तर की जनजातियों का मानना है कि उनके देवी-देवता उनकी रक्षा करते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं। लेकिन अगर किसी प्राकृतिक आपदा, बीमारी, या फसल की खराबी के समय देवी-देवताओं से मदद नहीं मिलती, तो उन्हें दोषी ठहराया जाता है। बस्तर के केशकाल में हर साल भादों महीने में आयोजित भंगाराम देवी मंदिर के उत्सव के दौरान, देवी-देवताओं को उनके कर्तव्यों में विफल रहने पर सजा दी जाती है। इस सजा में देवताओं की मूर्तियों को मंदिर से निकालकर पीछे रखा जाता है, जो निर्वासन का प्रतीक होता है।
सजा और मुक्ति का मौका
तीन दिवसीय इस अनोखी अदालत में देवताओं पर आरोप लगते हैं और मुर्गियों की गवाही से मुकदमे का फैसला किया जाता है। दोषी देवताओं को मंदिर से बाहर कर दिया जाता है और जब तक वे अपनी गलती सुधारते हुए लोगों की प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं देते, तब तक उन्हें निर्वासन झेलना पड़ता है। हालांकि, यह प्रक्रिया केवल दंड के लिए नहीं है, बल्कि सुधार के लिए भी है। देवताओं को अपनी गलती सुधारने और वापस मंदिर में आने का अवसर भी दिया जाता है।
देवी-देवताओं के लिए वकील और गवाह
इस अनोखी अदालत में गांव के प्रतिष्ठित लोग वकील के रूप में कार्य करते हैं और गवाही देने के लिए मुर्गियों का प्रयोग किया जाता है। एक मुर्गी को अदालत में लाकर मुकदमे के बाद उसे आज़ाद कर दिया जाता है, जिससे यह प्रतीक बनता है कि उसकी गवाही पूरी हो गई। इसके बाद, भंगाराम देवी के निर्देशानुसार, दोषी देवताओं को निर्वासन का दंड दिया जाता है। सजा के दौरान देवी-देवताओं की मूर्तियां मंदिर के पीछे रखी जाती हैं, जहां उन्हें लोगों की नजरों से दूर रखा जाता है।
भंगाराम देवी की महिमा
भंगाराम देवी, बस्तर की प्रमुख आराध्य देवी मानी जाती हैं। लोककथाओं के अनुसार, वे वारंगल से बस्तर आई थीं और आदिवासियों की संरक्षिका बन गईं। उनके साथ डॉक्टर खान नाम के एक व्यक्ति भी थे, जिन्होंने गांव वालों की बीमारियों से रक्षा की और बाद में उन्हें भी देवता का दर्जा मिल गया। भंगाराम देवी और खान देवता, दोनों आज भी बस्तर के लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं और उनके मंदिर में विशेष पूजा की जाती है।
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