Madhubani Painting India’s Pride: भारत की सबसे प्राचीन और खूबसूरत कला शैलियों में से एक है। इसकी जड़ें बिहार के मिथिला क्षेत्र में हैं, जहां यह कला सदियों से चली आ रही है। खास बात यह है कि यह पेंटिंग न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में अपनी अनोखी शैली और सुंदरता के कारण मशहूर हो चुकी है।
निर्मला सीतारमण और मधुबनी पेंटिंग की साड़ी
1 फरवरी 2025 को जब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में बजट पेश करने पहुंचीं, तो उनकी साड़ी ने सबका ध्यान खींच लिया। उन्होंने एक क्रीम कलर की साड़ी पहनी थी, जिस पर खूबसूरत मधुबनी पेंटिंग की डिजाइन बनी थी। यह साड़ी बिहार की मशहूर चित्रकार दुलारी देवी ने डिजाइन की थी।
दुलारी देवी मधुबनी पेंटिंग के लिए जानी जाती हैं और उन्हें 2021 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था। उनके हाथों से बनी यह साड़ी एक खास संदेश दे रही थी – भारतीय कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर को बढ़ावा देना।
क्या खास है मधुबनी पेंटिंग में?
मधुबनी पेंटिंग की खासियत इसकी अनोखी शैली और गहरी सांस्कृतिक जड़ें हैं। यह बिहार के मधुबनी जिले की पारंपरिक चित्रकला है, जिसे पहले केवल महिलाएं बनाती थीं, लेकिन अब पुरुष भी इसमें रुचि लेने लगे हैं। इस कला की पहचान इसके जटिल पैटर्न, चमकीले रंगों और धार्मिक या प्राकृतिक विषयों से होती है।
मधुबनी पेंटिंग की थीम
- भगवान और धार्मिक चित्रण:
- भगवान राम, सीता, कृष्ण, राधा, शिव, दुर्गा जैसे देवी-देवताओं की तस्वीरें प्रमुख होती हैं।
- राम-सीता के विवाह से जुड़े दृश्य खासतौर पर बनाए जाते हैं।
- प्रकृति और पशु-पक्षी:
- इस कला में सूरज, चांद, पेड़-पौधे, कमल के फूल, मछलियां, मोर और हाथी को दर्शाया जाता है।
- प्राकृतिक तत्वों को शुभ और सौभाग्य लाने वाला माना जाता है।
- ऐतिहासिक और सामाजिक घटनाएं:
- पुराने जमाने में राजा-महाराजाओं की कहानियां और ऐतिहासिक घटनाएं चित्रों में दर्शाई जाती थीं।
- आजकल यह पेंटिंग समाज से जुड़े मुद्दों जैसे पर्यावरण, नारी सशक्तिकरण और शिक्षा को भी दर्शाने लगी है।
कब और कैसे शुरू हुई मधुबनी पेंटिंग?
इसकी शुरुआत रामायण काल से मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था, तब मिथिला के राजा जनक ने पूरे शहर को सजाने के लिए मधुबनी पेंटिंग का इस्तेमाल किया था। यही परंपरा आज भी जारी है और शादी-ब्याह के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्श पर यह चित्र बनाए जाते हैं।
धीरे-धीरे यह कला कागज, कपड़े और कैनवास पर भी बनाई जाने लगी और अब इसे पूरी दुनिया में सराहा जाता है।
मधुबनी पेंटिंग को मिला GI टैग
इस पेंटिंग की खासियत को ध्यान में रखते हुए इसे जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन (GI) टैग दिया गया है। इसका मतलब है कि असली मधुबनी पेंटिंग केवल बिहार के मधुबनी और मिथिला क्षेत्र में ही बनाई जा सकती है। यह टैग किसी भी कला या वस्तु की प्रामाणिकता को दर्शाता है और उसकी मौलिकता को सुरक्षित रखता है।
कैसे बनती है मधुबनी पेंटिंग?
मधुबनी पेंटिंग को बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह से प्राकृतिक होती है।
- रंग और सामग्री:
- इसमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है, जो पेड़-पौधों, फूलों और पत्तियों से बनाए जाते हैं।
- हल्दी से पीला, इंडिगो से नीला, काजल से काला, चूना से सफेद और अनार के छिलकों से लाल रंग तैयार किया जाता है।
- तकनीक:
- इसे हाथों, बांस की कलम और सूती कपड़े के टुकड़ों से बनाया जाता है।
- इसमें कोई खाली जगह नहीं छोड़ी जाती और पूरी पेंटिंग पैटर्न से भरी होती है।
- माध्यम:
- पहले यह पेंटिंग दीवारों और फर्श पर बनाई जाती थी, लेकिन अब इसे कागज, कैनवास, साड़ियों, कुर्तों और घर की सजावट के सामान पर भी किया जाता है।
दुनिया भर में मधुबनी पेंटिंग की लोकप्रियता
आज यह कला सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी काफी पसंद की जाती है। कई अंतरराष्ट्रीय फैशन डिजाइनर मधुबनी पेंटिंग को साड़ियों, स्कार्फ, बैग और होम डेकोर में इस्तेमाल कर रहे हैं।
यही वजह है कि जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मधुबनी पेंटिंग वाली साड़ी पहनकर संसद पहुंचीं, तो यह सिर्फ एक स्टाइल स्टेटमेंट नहीं था, बल्कि भारतीय कला और संस्कृति को सम्मान देने का एक तरीका भी था।
Madhubani Painting: भारत की अनमोल धरोहर
मधुबनी पेंटिंग केवल एक कला नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। यह बिहार की पहचान है और इसे दुनिया भर में सम्मान और सराहना मिल रही है। इसके हर चित्र के पीछे एक कहानी होती है, जो भारतीय परंपरा और संस्कृति को दर्शाती है।
आज यह कला न केवल दीवारों पर बल्कि कपड़ों, फैशन और होम डेकोर में भी अपनी जगह बना चुकी है। सरकार और कलाकारों के प्रयासों से यह आगे भी फलती-फूलती रहेगी और भारतीय संस्कृति की एक पहचान बनी रहेगी।