Adopted Gandhian path:: यासीन मलिक, जो जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख नेता थे, ने यूएपीए ट्रिब्यूनल में हलफनामा दायर किया है। उनका दावा है कि उन्होंने 1994 में हिंसा और हथियार छोड़कर गांधीवादी रास्ता अपनाया।
यासीन मलिक का हथियार छोड़ने का दावा: 30 साल पहले लिया गांधीवादी मार्ग
यासीन मलिक, जो कभी जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख नेता थे, ने 1990 के दशक में कश्मीर की आज़ादी के लिए हथियार उठाए थे। लेकिन अब उन्होंने हथियार छोड़ने का दावा (claim of abandoning weapons) किया है। मलिक का कहना है कि 1994 में उन्होंने हिंसा का मार्ग छोड़ दिया और गांधीवादी विचारधारा को अपनाया।
यूएपीए ट्रिब्यूनल में पेश किए गए अपने हलफनामे में यासीन मलिक ने कहा कि वह पिछले 30 सालों से किसी भी हिंसक गतिविधि में शामिल नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा कि 1994 में “एकजुट स्वतंत्र कश्मीर” के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने हथियार छोड़ने का दावा (claim of abandoning weapons) किया और शांति का मार्ग चुना।
गांधीवादी रास्ता अपनाया और हलफनामा पेश किया
यासीन मलिक ने यूएपीए ट्रिब्यूनल में हलफनामा दाखिल करते हुए कहा कि उन्होंने 1994 में गांधीवादी रास्ता अपनाया (adopted Gandhian path) और हिंसा को पूरी तरह से त्याग दिया। उनका यह हलफनामा सितंबर 2024 में ट्रिब्यूनल द्वारा सार्वजनिक किया गया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि वह 30 साल से किसी भी हिंसक गतिविधियों में शामिल नहीं हैं।
मलिक ने कहा कि 1994 के बाद उनके खिलाफ कोई नया मामला नहीं दर्ज हुआ है और उन्होंने शांति का मार्ग अपनाने के बाद किसी भी अवैध गतिविधि में हिस्सा नहीं लिया है। लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का कहना है कि मलिक ने कश्मीर में कई गंभीर अपराधों में भूमिका निभाई, जिसमें 2016 में हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के बाद पत्थरबाजी की घटनाएं भी शामिल हैं।
मलिक पर टेरर फंडिंग के आरोप और वर्तमान स्थिति
यासीन मलिक वर्तमान में दिल्ली के तिहाड़ जेल में सजा काट रहे हैं। एनआईए द्वारा जांच किए गए आतंकवाद वित्तपोषण मामले में उन्हें आजीवन कठोर कारावास की सजा सुनाई गई है। हालांकि, मलिक का दावा है कि उन्होंने 1994 में हिंसा और हथियार छोड़ने का निर्णय लिया और तब से वह शांति के मार्ग पर हैं। उन्होंने कहा कि गांधीवादी रास्ता अपनाया (adopted Gandhian path) और उनके खिलाफ लगे पुराने मामलों को भी वापस लिया गया था।
लेकिन एनआईए की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में बुरहान वानी की हत्या के बाद घाटी में हुई हिंसा के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया। एनआईए का दावा है कि मलिक की भूमिका कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने में अहम रही है और उन्होंने इसके लिए विदेशी फंडिंग का भी उपयोग किया।