क्या आप अपनी कार में बैठकर कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी को न्योता दे रहे हैं? एक नई रिसर्च में यह दावा किया गया है कि कार के अंदर की हवा में मौजूद रसायन कैंसर का कारण बन सकते हैं।
‘एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ में प्रकाशित एक नई स्टडी ने कारों के अंदर की हवा की गुणवत्ता पर चिंता जताई है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि कार की सीटों और पैडिंग में इस्तेमाल होने वाले फ्लेम रिटार्डेंट केमिकल्स कार के अंदर की हवा में मौजूद होते हैं, जो कैंसर का कारण बन सकते हैं।
कार में कौन से खतरनाक रसायन होते हैं? इस स्टडी में ऑर्गेनोफॉस्फेट एस्टर (OPEs) नामक रसायनों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिनका उपयोग कार की सीटों और पैडिंग में फ्लेम रिटार्डेंट के रूप में किया जाता है। इनमें से एक रसायन TCIPP है, जिस पर अमेरिका में कैंसर पैदा करने की संभावना के चलते जांच चल रही है।
ये रसायन कैसे नुकसान पहुंचाते हैं? डॉ. पखी अग्रवाल के अनुसार, इन रसायनों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से फेफड़ों का कैंसर, ब्लैडर कैंसर और मेसोथेलियोमा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। ये रसायन सांस की बीमारियों, दिल की बीमारियों को भी बढ़ा सकते हैं और बच्चों और बुजुर्गों के लिए ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं।
इससे कैसे बचें? डॉ. अग्रवाल ने कुछ उपाय सुझाए हैं जिनसे आप इस खतरे से बच सकते हैं:
- हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करें
- कार का नियमित रखरखाव और जांच कराएं
- सार्वजनिक परिवहन, कारपूलिंग और पैदल चलने या साइकिल चलाने को बढ़ावा दें
- ऑटोमोटिव तरल पदार्थ, ब्रेक पैड और अन्य खतरनाक घटकों का जिम्मेदारी से निपटान और रीसाइक्लिंग करें
- कार में बैठते समय खिड़कियां खोलकर रखें, जिससे ताजी हवा आती रहे
यह स्टडी बताती है कि कार के अंदर की हवा हमारे स्वास्थ्य के लिए कितनी खतरनाक हो सकती है। हमें इस खतरे को गंभीरता से लेना चाहिए और अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए।
यह स्टडी अमेरिका में की गई है, लेकिन भारत में भी कारों में फ्लेम रिटार्डेंट का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए, यह रिपोर्ट भारतीयों के लिए भी महत्वपूर्ण है।