महाराष्ट्र

Zudpi Jungles Declared Forest Lands: विदर्भ के 86,409 हेक्टेयर झुडपी जंगल वन भूमि, सुप्रीम कोर्ट का आदेश

Zudpi Jungles Declared Forest Lands: विदर्भ के 86,409 हेक्टेयर झुडपी जंगल वन भूमि, सुप्रीम कोर्ट का आदेश

Zudpi Jungles Declared Forest Lands: विदर्भ का नाम सुनते ही हरे-भरे जंगलों, खेती-बाड़ी और ऐतिहासिक धरोहरों की तस्वीर सामने आती है। लेकिन इस क्षेत्र की एक खास पहचान, जिसे झुडपी जंगल (Zudpi jungle) कहा जाता है, अब देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले के बाद सुर्खियों में है। 22 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने विदर्भ के 86,409 हेक्टेयर झुडपी जंगल (Vidarbha forest lands) को आधिकारिक रूप से वन भूमि (forest lands) घोषित कर दिया। यह फैसला न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि विकास और आजीविका के बीच संतुलन बनाने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। इस फैसले ने नागपुर, वर्धा, भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर और गढ़चिरौली जैसे छह जिलों में फैले इन जंगलों के भविष्य को लेकर नई उम्मीदें जगाई हैं। आइए, इस ऐतिहासिक फैसले की कहानी को करीब से देखें।

झुडपी जंगल (Zudpi jungle) का नाम मराठी शब्द ‘झुडपी’ से आया है, जिसका अर्थ है झाड़ियाँ या छोटे पेड़। ये जंगल विदर्भ के पूर्वी हिस्से में फैले हुए हैं और इन्हें ऐतिहासिक रूप से चरागाह (grazing lands) के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। महाराष्ट्र लैंड रेवेन्यू कोड, 1966 में इन्हें ‘गैरान’ के रूप में दर्ज किया गया, जिसका मतलब है ऐसी जमीन जो जंगल प्रबंधन के लिए अनुपयुक्त मानी जाती थी। लेकिन इन जमीनों का उपयोग दशकों से आवास, खेती, सरकारी कार्यालयों, स्कूलों, अस्पतालों और यहाँ तक कि रक्षा सेवाओं के लिए होता रहा है। फिर भी, राजस्व रिकॉर्ड में ये गलती से झुडपी वन भूमि (Vidarbha forest lands) के रूप में दर्ज रहीं, जिसके कारण इनका कानूनी दर्जा अस्पष्ट था। इस असमंजस ने विदर्भ में बुनियादी ढांचे और विकास कार्यों को कई दशकों तक प्रभावित किया।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 1996 के टी.एन. गोदावर्मन मामले के उस ऐतिहासिक निर्णय पर आधारित है, जिसमें ‘वन’ की परिभाषा को स्पष्ट किया गया था। कोर्ट ने कहा कि 12 दिसंबर 1996 से पहले इन झुडपी जंगलों (Zudpi jungle) पर बने ढांचों, जैसे नागपुर का हाई कोर्ट भवन, जजों के आवास, राज्य सचिवालय, रक्षा भवन, कृषि विश्वविद्यालय और कब्रिस्तान, को कोई नुकसान नहीं होगा। इन ढांचों को संरक्षित (protected structures) किया गया है, ताकि लाखों नागरिकों को बेघर होने या उनकी आजीविका छिनने का डर न रहे। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि इन जमीनों पर बसे लोगों के अधिकारों का सम्मान हो, जो सामाजिक और आर्थिक समानता के वादे को पूरा करता है।

हालांकि, कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि 25 अक्टूबर 1980 के बाद, जब वन संरक्षण अधिनियम (Forest Conservation Act, 1980) लागू हुआ, तब से झुडपी जंगल (Vidarbha forest lands) पर हुए किसी भी अतिक्रमण (encroachments) को हटाया जाएगा। इसके लिए प्रत्येक जिले में एक विशेष टास्क फोर्स (Special Task Force) बनाई जाएगी, जिसमें उप-मंडल मजिस्ट्रेट (SDM), डिप्टी एसपी, सहायक वन संरक्षक और तालुका भूमि राजस्व निरीक्षक शामिल होंगे। इन टास्क फोर्स को दो साल के भीतर अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि 1996 के बाद की गई किसी भी गैर-कानूनी जमीन आवंटन की सख्त जांच होगी, और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

इस फैसले का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को अगले तीन महीनों में एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। इस योजना में झुडपी जंगल (Zudpi jungle) की जमीन को गैर-वन उपयोग (non-forest use) के लिए डायवर्ट करने का प्रारूप होगा। यह प्रक्रिया केंद्रीय सशक्त समिति (Central Empowered Committee) की मंजूरी के साथ होगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी जमीनें किसी गैर-सरकारी संस्था को नहीं दी जाएंगी। इसके अलावा, 7.76 लाख हेक्टेयर झुडपी जमीन में से शेष बची जमीन को एक साल के भीतर राज्य के राजस्व विभाग से वन विभाग को सौंपने का आदेश दिया गया है। इस जमीन का उपयोग केवल प्रतिपूरक वनीकरण (compensatory afforestation) के लिए होगा।

कोर्ट ने यह भी शर्त रखी कि झुडपी जंगल (Vidarbha forest lands) का उपयोग प्रतिपूरक वनीकरण के लिए तभी किया जा सकता है, जब राज्य का मुख्य सचिव (Chief Secretary) यह प्रमाणित करे कि गैर-वन जमीन उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में, झुडपी जमीन के दोगुने क्षेत्र पर वनीकरण करना होगा, जैसा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के दिशानिर्देशों में कहा गया है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि तीन हेक्टेयर से छोटे और किसी वन क्षेत्र से नहीं जुड़े खंडित जमीन के टुकड़ों को संरक्षित वन (protected forests) घोषित किया जाए। इससे भविष्य में अतिक्रमण को रोकने में मदद मिलेगी।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे ऐतिहासिक और विदर्भ के विकास के लिए गेम-चेंजर बताया। उन्होंने कहा कि झुडपी जंगल (Zudpi jungle) को रिजर्व वन के तौर पर वर्गीकृत किए जाने के कारण विदर्भ में विकास कार्य दशकों से रुके हुए थे। यह फैसला न केवल बुनियादी ढांचे और सिंचाई परियोजनाओं को गति देगा, बल्कि नागपुर जैसे शहरों में झुडपी जमीन पर बनी झुग्गी बस्तियों (slum colonies) को नियमित करने और वहाँ के निवासियों को मालिकाना हक देने में भी मदद करेगा। फडणवीस ने जोर देकर कहा कि यह फैसला विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाता है, क्योंकि कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण के लिए सख्त शर्तें भी रखी हैं।

यह मामला कई दशकों से कानूनी और प्रशासनिक उलझनों में फंसा हुआ था। महाराष्ट्र सरकार ने तर्क दिया था कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से झुडपी जंगल (Vidarbha forest lands) वन भूमि नहीं थे, और राज्यों के पुनर्गठन (state reorganization) के दौरान राजस्व रिकॉर्ड ठीक नहीं किए गए। दूसरी ओर, पर्यावरण कार्यकर्ता प्रसाद खाले ने तर्क दिया कि इन जंगलों को गैर-वन भूमि घोषित करने से स्वस्थ वनों का क्षरण होगा। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद एक ऐसा रास्ता निकाला, जो पर्यावरण संरक्षण और नागरिकों के अधिकारों, दोनों को संतुलित करता है। कोर्ट ने केंद्रीय सशक्त समिति (Central Empowered Committee) की मदद से इस जटिल मुद्दे का समाधान निकाला, जिसे सराहा जा रहा है।

नागपुर जैसे शहरों में झुडपी जंगल (Zudpi jungle) की जमीन पर बने महत्वपूर्ण ढांचे, जैसे रेलवे स्टेशन और हाई कोर्ट, इस फैसले से सुरक्षित हो गए हैं। साथ ही, ग्रामीण और शहरी इलाकों में बनी आवासीय कॉलोनियों और झुग्गी बस्तियों को भी राहत मिली है। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि इन जमीनों पर खेती करने वाले किसानों की आजीविका प्रभावित न हो। यह फैसला उन लाखों नागरिकों के लिए राहत की साँस लेकर आया है, जो इन जमीनों पर दशकों से रह रहे हैं या इनका उपयोग कर रहे हैं।

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