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Devika Gets Home: 26/11 की नन्हीं योद्धा को मिला न्याय, मुंबई हमले की सबसे छोटी गवाह देविका रोटवां को 5 साल बाद मिला घर

Devika Gets Home: 26/11 की नन्हीं योद्धा को मिला न्याय, मुंबई हमले की सबसे छोटी गवाह देविका रोटवां को 5 साल बाद मिला घर

Devika Gets Home: मुंबई की सड़कों पर उस रात का मंजर आज भी लोगों के जहन में ताजा है, जब 26/11 का आतंकी हमला हुआ था। उस भयावह रात में, छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसटी) रेलवे स्टेशन पर गोलियों की तड़तड़ाहट गूँजी थी। उस हमले में 58 लोग मारे गए थे और 104 घायल हुए थे। लेकिन उस रात की सबसे छोटी योद्धा थी नौ साल की देविका रोटवां, जो अब 25 साल की हो चुकी है। उसने न केवल उस हमले में अपनी जान बचाई, बल्कि आतंकी अजमल कसाब को अदालत में पहचानकर उसे सजा दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई। आज, पाँच साल की कानूनी लड़ाई के बाद, देविका को आखिरकार अंधेरी में एक घर मिल गया है। इस कहानी को “26/11 बचे” (26/11 Survivor) और “देविका रोटवां घर” (Devika Rotawan Home) के नाम से जाना जा रहा है। आइए, उनकी इस प्रेरक यात्रा को सरल और आकर्षक तरीके से जानते हैं।

26 नवंबर 2008 की वह रात देविका के लिए कभी न भूलने वाली थी। वह अपने पिता और भाई के साथ सीएसटी स्टेशन पर थी, जब दो आतंकियों ने अंधाधुंध गोलियाँ चलानी शुरू कीं। नौ साल की मासूम देविका के पैर में गोली लगी, और उसके पिता और भाई भी घायल हो गए। उस छोटी सी उम्र में उसने जो दर्द और डर देखा, उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। लेकिन देविका ने हिम्मत नहीं हारी। विशेष अदालत में सुनवाई के दौरान, उसने आतंकी अजमल कसाब को पहचाना, जो उस हमले का एकमात्र जिंदा पकड़ा गया आतंकी था। उसकी गवाही ने कसाब को फाँसी की सजा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लेकिन इस साहस के बदले देविका को लंबे समय तक कोई समर्थन नहीं मिला। वह और उसका परिवार बांद्रा के एक झोपड़पट्टी में रहता था, जहाँ किराया न चुका पाने की वजह से उन्हें बेदखली का डर था। उसके पिता और भाई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं और काम करने में असमर्थ हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वे बुनियादी जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पा रहे थे। इस बीच, देविका ने अपनी पढ़ाई पूरी की और कला स्नातक की डिग्री हासिल की। लेकिन नौकरी की तलाश और परिवार की जिम्मेदारी ने उसे और दबाव में डाल दिया।

देविका की असली लड़ाई 2020 में शुरू हुई, जब उसने सरकार से घर की माँग को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटे के तहत घर की माँग की थी, लेकिन शुरू में उसका आवेदन खारिज कर दिया गया। उसने हार नहीं मानी और 2022 में फिर से कोर्ट का रुख किया। इस बार भी सरकार ने उसकी माँग को ठुकरा दिया, लेकिन कोर्ट ने सरकार को उसकी याचिका पर गंभीरता से विचार करने का निर्देश दिया। आखिरकार, तीसरे प्रयास में, मार्च 2024 में हाई कोर्ट ने सरकार को सख्त टिप्पणी के साथ छह महीने में घर आवंटित करने का आदेश दिया। कोर्ट ने इसे एक “असाधारण और वास्तविक मामला” बताया, जिसे संवेदनशीलता के साथ देखने की जरूरत थी।

पिछले साल एक फ्लैट आवंटित किया गया था, लेकिन वह प्रोजेक्ट अधूरा था और कई समस्याओं से घिरा था, जिसके कारण आवंटन रद्द करना पड़ा। फिर, दो महीने पहले, सरकार ने आखिरकार अंधेरी में देविका को एक 1-बीएचके फ्लैट आवंटित किया। देविका ने बताया कि टाइलिंग का काम पूरा होने के बाद वह जल्द ही अपने परिवार के साथ वहाँ शिफ्ट हो जाएगी। कागजी कार्रवाई पूरी हो चुकी है, और पानी के कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी अब उपलब्ध हैं। यह खबर उनके लिए एक नई शुरुआत की तरह है।

देविका की कहानी केवल एक घर पाने की नहीं है। यह एक ऐसी लड़की की हिम्मत और संघर्ष की कहानी है, जिसने नौ साल की उम्र में आतंक का सामना किया और फिर भी अपने परिवार के लिए लड़ती रही। सरकार ने भले ही उसे 13.26 लाख रुपये का मुआवजा दिया था, लेकिन यह राशि उसके परिवार की जरूरतों के लिए पर्याप्त नहीं थी। कोर्ट ने भी इस बात को माना कि एक आतंकी हमले की शिकार हुई लड़की के मामले में अधिक मानवीय संवेदनशीलता और बुनियादी अधिकारों का ध्यान रखना जरूरी है। आखिरकार, जब फ्लैट आवंटित हुआ, तो जज ने इस फैसले की सराहना की और कहा कि यह देविका के दुखों को देखते हुए असली न्याय है।

देविका अब अपने परिवार के लिए नौकरी की तलाश में है। वह चाहती है कि उसका परिवार सम्मान के साथ जी सके। “26/11 बचे” (26/11 Survivor) के रूप में उसकी पहचान आज भी लोगों को प्रेरित करती है। “देविका रोटवां घर” (Devika Rotawan Home) की यह कहानी एक साहसी लड़की के संघर्ष और जीत की गाथा है, जो मुश्किल हालातों में भी हार नहीं मानती।

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