भारत में कैंसर के मरीज़ तेज़ी से बढ़ रहे हैं, और यह स्थिति चिंताजनक है। डॉक्टरों का कहना है कि अगले कुछ सालों में यह आंकड़ा और भी भयावह हो सकता है।
आंध्र प्रदेश के 49 वर्षीय प्रफुल रेड्डी फेफड़ों के कैंसर से जूझ रहे हैं। कीमोथेरेपी और रेडिएशन के बावजूद उनकी हालत में ज़्यादा सुधार नहीं है। वहीं, 12 साल की दीप्ति गुर्दे के कैंसर से पीड़ित है। ये सिर्फ़ दो उदाहरण हैं – ऐसे हज़ारों मामले रोज़ सामने आते हैं।
भारत कैंसर की राजधानी?
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को ‘दुनिया की कैंसर राजधानी’ कहा गया है। कैंसर के साथ-साथ, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और मानसिक बीमारियां भी बड़ी समस्याएं बनती जा रही हैं। अनुमान है कि 2025 तक भारत में कैंसर के लगभग 15 लाख मामले हर साल सामने आएंगे।
कौन से कैंसर हैं आम
महिलाओं में स्तन, गर्भाशय और डिम्बग्रंथि (ओवरी) का कैंसर सबसे ज़्यादा होता है। पुरुषों में फेफड़ों, मुंह और प्रोस्टेट का कैंसर आम है।
क्यों बढ़ रहे हैं मामले?
डॉक्टरों के अनुसार इसके कई कारण हैं – बढ़ती उम्र, खराब खानपान, प्रदूषण, और यहां तक कि जलवायु परिवर्तन भी कैंसर को बढ़ावा देता है।
बच्चों में कैंसर
भारत में कैंसर से प्रभावित होने वाले लोगों की औसत आयु, अमेरिका और ब्रिटेन की तुलना में कम है। भारत में हर साल लगभग दस लाख कैंसर के नए मामले सामने आते हैं, जिनमें से 4% बच्चे होते हैं।
कैंसर के लिए नियमित जांच बहुत ज़रूरी है, लेकिन भारत में इसकी दर बहुत कम है। सरकारी अस्पतालों में भी इसके लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं, और इलाज का खर्च बहुत ज़्यादा होता है। ऐसे में, कैंसर के बहुत से मरीज़ों को सही इलाज नहीं मिल पाता।
भारत सरकार ने मुंह, स्तन और गर्भाशय के कैंसर की जांच के लिए कार्यक्रम शुरू किया है। लेकिन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सिफारिश के बावजूद भारत में यह दर 1% से भी कम है।