भारत में आरक्षण व्यवस्था की शुरुआत समाज के कमजोर वर्गों को आगे बढ़ाने के लिए की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था कि जो लोग सदियों से पिछड़े हुए हैं, उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिले। सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देकर यह सोचा गया कि ये लोग अपनी जिंदगी बेहतर बना पाएंगे। लेकिन आज के समय में क्या यह व्यवस्था अपने मूल उद्देश्य को पूरा कर पा रही है? या फिर इसका फायदा कुछ चालाक लोग उठा रहे हैं? आइए जानते हैं इस पूरी कहानी को।
महाराष्ट्र की आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर का मामला इन दिनों चर्चा में है। पूजा पर आरोप है कि उन्होंने गलत तरीके से दिव्यांगता कोटे और ओबीसी आरक्षण का लाभ लिया। उनके पिता दिलीप खेडकर एक रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारी हैं। यह मामला सामने आने के बाद लोगों के मन में कई सवाल उठे हैं। क्या सच में आरक्षण का लाभ उन लोगों को मिल रहा है जिन्हें इसकी जरूरत है? या फिर कुछ लोग इस व्यवस्था का गलत फायदा उठा रहे हैं?
इस मामले पर जब पूर्व सिविल सेवक और शिक्षक विकास दिव्यकीर्ति से बात की गई तो उन्होंने कई चौंकाने वाले खुलासे किए। उन्होंने बताया कि आरक्षण व्यवस्था में कई छेद हैं जिनका फायदा लोग उठा रहे हैं। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि 10 या 20 प्रतिशत से ज्यादा अभ्यर्थी ऐसे परिवारों से आ रहे हैं, जिन्हें सच में आरक्षण की जरूरत है।” यह बात सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी आरक्षण व्यवस्था सही दिशा में काम कर रही है?
‘मैं कई केस जानता हूँ…” Vikas Divyakirti explains how UPSC aspirants are ‘misusing’ the EWS quota system#ANIPodcast #SmitaPrakash #VikasDivyakirti #OBC #Reservation #EWS
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— ANI (@ANI) July 22, 2024
ओबीसी आरक्षण: कैसे होता है खेल?
विकास दिव्यकीर्ति ने ओबीसी आरक्षण में होने वाले खेल के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि कई ऐसे मामले हैं जहां अमीर परिवारों के बच्चे भी ओबीसी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। उन्होंने एक उदाहरण दिया कि कैसे कुछ लोग नियमों का फायदा उठाते हैं। उन्होंने बताया कि कई बार पिता अपनी नौकरी छोड़ देते हैं और अपनी सारी संपत्ति बच्चों के नाम कर देते हैं ताकि उनके बच्चे आरक्षण का लाभ ले सकें। यह सुनकर हर किसी के मन में सवाल उठता है कि क्या यह सही है?
ईडब्ल्यूएस आरक्षण: एक और पेंच
ईडब्ल्यूएस यानी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए दिए जाने वाले आरक्षण में भी कई खामियां हैं। विकास दिव्यकीर्ति ने बताया कि इसमें भी लोग कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं। जैसे कि कुछ लोग अपनी जमीन बेच देते हैं या फिर फ्लैट की रजिस्ट्री कम साइज की दिखा देते हैं ताकि वे इस आरक्षण का लाभ ले सकें। यह सब सुनकर लगता है कि आरक्षण व्यवस्था में कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है।
पूजा खेडकर का मामला इस बात का उदाहरण है कि कैसे लोग आरक्षण व्यवस्था का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। पूजा पर आरोप है कि उन्होंने दिव्यांगता और ओबीसी दोनों का फायदा उठाया, जबकि उनके पिता एक उच्च पद पर थे। यह मामला हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसे और भी मामले हैं जो सामने नहीं आए हैं?
इन सब बातों को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या हमारी आरक्षण व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है? क्या हमें इसे और कड़ा बनाना चाहिए ताकि सिर्फ वही लोग इसका लाभ ले सकें जिन्हें सच में इसकी जरूरत है? या फिर हमें पूरी व्यवस्था को ही बदलने की जरूरत है?
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