High Court Judge Impeachment: इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के बयान को लेकर विवाद गरमा गया है। यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां न्यायालय ने उनके बयान पर रिपोर्ट मांगी है। वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने इस मामले में हाईकोर्ट जज महाभियोग की बात कही है। इस घटना ने न्यायपालिका में जजों की आचार संहिता और महाभियोग की प्रक्रिया पर चर्चा को फिर से ताजा कर दिया है।
क्या होता है जजों के खिलाफ महाभियोग?
महाभियोग एक ऐसी संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसके तहत किसी न्यायाधीश को उनके पद से हटाया जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और न्यायपालिका अधिनियम के तहत यह प्रक्रिया बहुत कठोर और पारदर्शी बनाई गई है। महाभियोग केवल जज के दुराचार (misbehaviour) या कर्म-अक्षमता (incapacity) के आधार पर शुरू किया जा सकता है।
महाभियोग की प्रक्रिया
महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी एक सदन—लोकसभा या राज्यसभा में पेश किया जा सकता है। इसके लिए प्रस्ताव को एक निश्चित संख्या में सांसदों का समर्थन चाहिए:
- लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों का समर्थन।
- राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों का समर्थन।
प्रस्ताव पेश होने के बाद सभापति (राज्यसभा के लिए उपराष्ट्रपति) या स्पीकर (लोकसभा के लिए) एक जांच समिति का गठन करते हैं। यह समिति सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाईकोर्ट के एक मुख्य न्यायाधीश और एक विधि विशेषज्ञ को शामिल कर आरोपों की जांच करती है।
अगर आरोप सही पाए गए तो क्या होता है?
यदि समिति की जांच में आरोप सही पाए जाते हैं, तो संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव पर चर्चा होती है। इसे पारित करने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत जरूरी होता है। इसके बाद यह प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजा जाता है, जो अंतिम निर्णय लेते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का क्या अधिकार है?
सुप्रीम कोर्ट किसी भी हाईकोर्ट के जज पर सीधा अनुशासनात्मक कदम नहीं उठा सकता। लेकिन वह मामले की जांच करके अपनी रिपोर्ट संसद को भेज सकता है। हाईकोर्ट संविधान के अनुसार स्वतंत्र संस्थान हैं और सुप्रीम कोर्ट की मातहत नहीं मानी जाती।
न्यायपालिका में आचार संहिता
न्यायपालिका में आचार संहिता (Code of Conduct in Judiciary) के संबंध में कोई लिखित नियम नहीं हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले समय-समय पर जजों के आचरण और वक्तव्यों के लिए दिशा-निर्देश तय करते हैं।
जजों को न्यायिक प्रणाली की गरिमा बनाए रखने के लिए आत्म-अनुशासन का पालन करना होता है। उन्हें विवादास्पद मुद्दों पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए और सार्वजनिक बयान देते समय निष्पक्षता दिखानी चाहिए।
क्या संविधान जजों के भाषणों पर कुछ कहता है?
संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) इसके दायरे में न्यायालय की अवमानना रोकने के लिए कुछ सीमाएं लगाता है। जजों को लंबित मामलों पर टिप्पणी करने, किसी विशिष्ट समूह के प्रति भेदभाव करने, या ऐसे बयान देने से बचना चाहिए, जो न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
जजों के बोलने की सीमाएं
जज आमतौर पर कानूनी मुद्दों, न्यायिक स्वतंत्रता, और कानून के सिद्धांतों पर बोल सकते हैं। लेकिन उन्हें ऐसे मामलों पर बयान देने से बचना चाहिए जो अदालत में लंबित हैं या जो विवादास्पद राजनीतिक मुद्दों से जुड़े हैं।
महाभियोग का दुर्लभ उदाहरण
भारत में अब तक किसी हाईकोर्ट जज को महाभियोग के जरिए पद से नहीं हटाया गया है। हालांकि, इस प्रक्रिया को कई बार शुरू किया गया है, लेकिन इसे पूरा करना बेहद कठिन माना जाता है।
इस घटना ने न्यायपालिका के भीतर आत्म-अनुशासन और पारदर्शिता की अहमियत को एक बार फिर रेखांकित किया है। यह देखना बाकी है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या कदम उठाता है और संसद इसे कैसे संभालती है।
#JudicialImpeachment #SupremeCourtIndia #JudicialConduct #HighCourtJudges #LegalEthics
ये भी पढ़ें: Google Search 2024: ‘मोये मोये’ से ‘अकाय’ तक, साल 2024 में सबसे ज्यादा पूछे गए ये सवाल