मोदी सरकार ने हाल ही में वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election) का बिल संसद में पेश किया, जिससे देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकें। यह विधेयक काफी समय से चर्चा में है, क्योंकि यह देश के चुनावी ढांचे में बड़ा बदलाव ला सकता है।
आइए, इस प्रस्ताव के हर पहलू को समझते हैं—यह कैसे लागू होगा, इसमें कितना समय लगेगा, और इसके फायदे और चुनौतियां क्या हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन: क्या है इसका उद्देश्य?
वन नेशन वन इलेक्शन का उद्देश्य है कि देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं। फिलहाल, अलग-अलग समय पर चुनाव कराए जाते हैं, जिससे सरकारी खर्च और प्रशासनिक दबाव बढ़ता है। इस नए मॉडल के जरिए चुनावी प्रक्रिया को सरल और कुशल बनाने का प्रयास किया जाएगा।
- लक्ष्य:
- चुनावी खर्च को कम करना।
- प्रशासनिक तंत्र पर बोझ घटाना।
- सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में रुकावटों को रोकना।
कैसे लागू होगा यह विधेयक?
इस बिल को लागू करना आसान नहीं होगा। इसके लिए संवैधानिक संशोधनों की जरूरत है।
- संविधान के अनुच्छेदों में बदलाव:
- अनुच्छेद 83, 85, 172, 174, और 356 में संशोधन करना होगा।
- इन अनुच्छेदों का संबंध लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल, भंग करने के अधिकार और राष्ट्रपति शासन से है।
- संसद और विधानसभाओं की सहमति:
- संसद में इस विधेयक को पास कराने के लिए दो-तिहाई बहुमत जरूरी है।
- कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से इसे मंजूरी दिलानी होगी।
- चुनाव आयोग की तैयारी:
- चुनाव आयोग को बड़ी संख्या में नई ईवीएम (EVM) और वीवीपैट (VVPAT) का निर्माण करना होगा।
- इन उपकरणों के निर्माण और परीक्षण में कई साल लग सकते हैं।
कितना समय लगेगा लागू होने में?
- 10 साल का अनुमान:
- कानून बनने के बाद भी इसे लागू करने में करीब 10 साल लग सकते हैं।
- मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 2029 में खत्म होगा। इसके बाद इसे लागू किया जाएगा।
- ईवीएम निर्माण:
- चुनाव आयोग के अनुसार, पर्याप्त संख्या में ईवीएम तैयार करने में कम से कम तीन साल लगेंगे।
वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे
- चुनावी खर्च में कमी:
- बार-बार चुनाव कराने से होने वाले भारी खर्च को कम किया जा सकेगा।
- प्रशासनिक दक्षता:
- चुनावी प्रक्रिया में तेजी आएगी और प्रशासनिक दबाव घटेगा।
- सरकारी योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन:
- बार-बार चुनाव आचार संहिता लागू होने से योजनाओं पर रोक लग जाती है। एक साथ चुनाव होने से यह समस्या दूर होगी।
- सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता:
- बार-बार चुनावी माहौल से राजनीतिक अस्थिरता पैदा होती है। एक साथ चुनाव स्थिरता ला सकते हैं।
चुनौतियां और विपक्ष के विचार
हालांकि इसके फायदे स्पष्ट हैं, लेकिन विपक्ष और विशेषज्ञों ने इसके खिलाफ कई तर्क दिए हैं।
- संवैधानिक बाधाएं:
- इसे लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन करना जटिल है।
- राजनीतिक असहमति:
- कई क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताया है।
- तकनीकी चुनौतियां:
- बड़ी संख्या में ईवीएम और वीवीपैट की व्यवस्था करना आसान नहीं होगा।
- लोकतंत्र की विविधता:
- कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का कहना है कि भारत जैसे विविधता भरे देश में एक साथ चुनाव व्यावहारिक नहीं है।
जल्दबाजी में लागू करना सही नहीं
चुनाव आयोग ने कहा है कि वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने से पहले गहन योजना की जरूरत होगी। जल्दीबाजी में लागू करने से तकनीकी और प्रशासनिक खामियां आ सकती हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन देश के चुनावी ढांचे में बड़ा बदलाव ला सकता है, लेकिन इसे लागू करना एक जटिल प्रक्रिया है। इसके फायदे जहां चुनावी खर्च और प्रशासनिक दबाव को कम करने में मदद करेंगे, वहीं संवैधानिक और राजनीतिक चुनौतियां इसकी राह को कठिन बना सकती हैं।
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