Conclusion of Mahakumbh: महाकुंभ, जो दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है, इस बार भी करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था और उत्साह का केंद्र बना। लेकिन इस बार महाकुंभ के समापन को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने दावा किया है कि महाकुंभ का समापन पहले ही हो चुका है, और अब जो आयोजन चल रहा है, वह “सरकारी कुंभ” है। उनके इस बयान ने एक बार फिर से महाकुंभ के आध्यात्मिक और प्रशासनिक पहलुओं पर बहस छेड़ दी है।
महाकुंभ का समापन या सरकारी आयोजन?
शंकराचार्य ने बुधवार को कहा कि महाकुंभ का समापन माघ महीने की पूर्णिमा के साथ ही हो गया था। उनके अनुसार, असली कुंभ माघ महीने में होता है, और इस बार माघ पूर्णिमा बीत चुकी है। उन्होंने कहा, “महाकुंभ पहले ही पूर्णिमा पर पूरा हो चुका है। जो अब चल रहा है, वह सरकारी कुंभ है।”
शंकराचार्य ने यह भी बताया कि कल्पवासी (जो कुंभ के दौरान संगम तट पर रहकर तपस्या करते हैं) माघ पूर्णिमा के बाद ही वापस लौट चुके हैं। इसलिए, अब जो आयोजन चल रहा है, उसका आध्यात्मिक महत्व पारंपरिक कुंभ जितना नहीं है।
सरकारी आयोजन पर सवाल
शंकराचार्य ने सरकारी आयोजन पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह आयोजन अब एक प्रशासनिक कार्यक्रम बन गया है। उनके अनुसार, सरकारी कुंभ का उद्देश्य आध्यात्मिकता से ज्यादा प्रशासनिक और आर्थिक लाभ प्राप्त करना है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब महाकुंभ की तैयारियों और आयोजन पर सवाल उठाए गए हैं। पहले भी सफाई और प्रबंधन को लेकर इस आयोजन की आलोचना हो चुकी है।
महाकुंभ का आंकड़ों में महत्व
इस बार का महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू हुआ और 45 दिनों तक चला। मेला प्रशासन के अनुसार, इस दौरान 66.30 करोड़ श्रद्धालुओं ने गंगा और संगम में डुबकी लगाई। बुधवार को अंतिम स्नान के दिन 1.53 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र नदी में स्नान किया। यह संख्या चीन और भारत को छोड़कर दुनिया के किसी भी देश की आबादी से अधिक है। यह आंकड़े महाकुंभ के विशाल पैमाने और इसके आध्यात्मिक महत्व को दर्शाते हैं।
गोहत्या के खिलाफ आंदोलन
शंकराचार्य ने महाकुंभ के मुद्दे के साथ-साथ गोहत्या के खिलाफ भी अपनी आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि 17 मार्च को गोहत्या के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन होगा। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। शंकराचार्य ने कहा, “हमने सभी राजनीतिक दलों से साथ आने और यह बताने के लिए कहा है कि वे गोहत्या रोकना चाहते हैं या जारी रखना चाहते हैं। यह आजादी के समय से चली आ रही है। हमने उन्हें फैसला लेने के लिए 17 मार्च तक का समय दिया है।”
Conclusion of Mahakumbh or Government Kumbh?
महाकुंभ भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा है। लेकिन शंकराचार्य के बयान ने इस बार इस आयोजन के प्रशासनिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह सचमुच में एक सरकारी आयोजन बन गया है, या फिर यह आस्था और प्रशासन के बीच का संतुलन है? यह सवाल अब हर किसी के मन में उठ रहा है।
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