Manoj Kumar Farewell: भारतीय सिनेमा के एक चमकते सितारे मनोज कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे। 4 अप्रैल 2025 को 87 साल की उम्र में उन्होंने मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे इस दिग्गज अभिनेता और निर्देशक को आज, 5 अप्रैल को, राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई (Manoj Kumar Farewell – मनोज कुमार विदाई)। उनके निधन की खबर ने पूरे सिनेमा जगत को शोक में डुबो दिया। उनके घर से लेकर अंतिम संस्कार स्थल तक, हर जगह उनके चाहने वालों और फिल्मी दुनिया के सितारों की भीड़ देखी गई। यह पल न सिर्फ उनके परिवार के लिए, बल्कि देश के लिए भी भावुक कर देने वाला था।
मनोज कुमार का पार्थिव शरीर उनके घर लाया गया, जहां उनके बेटे कुणाल ने अंतिम संस्कार की रस्में पूरी कीं। इस दौरान उनकी पत्नी शशि गोस्वामी अपने पति को खोने के गम में डूबी नजर आईं। वह उनके पार्थिव शरीर से लिपटकर रोती रहीं, और यह दृश्य देखकर वहां मौजूद हर शख्स की आंखें नम हो गईं। सोशल मीडिया पर भी यह वीडियो तेजी से फैल गया, जिसने लोगों के दिलों को और भी ज्यादा छू लिया। अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, सलीम खान, अरबाज खान और प्रेम चोपड़ा जैसे कई बड़े सितारे पहुंचे। इन सितारों का आना इस बात का सबूत था कि मनोज कुमार का सिनेमा जगत में कितना सम्मान था।
मनोज कुमार लंबे समय से डीकंपेंसेटेड लिवर सिरोसिस नाम की बीमारी से जूझ रहे थे। उनकी हालत पिछले कुछ महीनों में काफी खराब हो गई थी। 21 फरवरी को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां डॉक्टरों ने उनकी हालत को स्थिर करने की पूरी कोशिश की। लेकिन आखिरकार, वह इस जंग को हार गए। उनकी मृत्यु की खबर सुनते ही फैंस और फिल्म इंडस्ट्री के लोग सदमे में आ गए। हर कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि देशभक्ति की फिल्मों का यह हीरो अब कभी लौटकर नहीं आएगा।
भारतीय सिनेमा में मनोज कुमार का योगदान (Manoj Kumar Contribution – मनोज कुमार योगदान) किसी से छिपा नहीं है। उन्होंने न सिर्फ एक्टिंग में, बल्कि निर्देशन में भी अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी फिल्में देशभक्ति और सामाजिक संदेशों से भरी होती थीं, जो आज की पीढ़ी को भी प्रेरित करती हैं। हरियाली और रास्ता, वो कौन थी, हिमालय की गोद में, दो बदन, पत्थर के सनम, नील कमल और क्रांति जैसी फिल्मों ने उन्हें दर्शकों का चहेता बना दिया। उनकी फिल्मों में देश के लिए प्यार और बलिदान की भावना साफ झलकती थी। यही वजह है कि उन्हें “भारत कुमार” के नाम से भी जाना जाता था।
उनके काम को देखते हुए उन्हें कई सम्मानों से नवाजा गया। 1992 में उन्हें पद्मश्री और 2015 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला। ये पुरस्कार इस बात के गवाह हैं कि मनोज कुमार ने सिनेमा के जरिए समाज को कितना कुछ दिया। उनकी फिल्में सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं थीं, बल्कि एक संदेश थीं जो लोगों को सोचने पर मजबूर करती थीं। आज जब वह हमारे बीच नहीं हैं, तो उनकी फिल्में और उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।
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