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EVM Tampering: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में EVM से हुई छेड़छाड़? निलंबित पुलिस अधिकारी कासले के दावे पर EC ने दिया ये जवाब

EVM Tampering: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में EVM से हुई छेड़छाड़? निलंबित पुलिस अधिकारी कासले के दावे पर EC ने दिया ये जवाब

महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों एक नया तूफान खड़ा हो गया है। बीड़ जिले के निलंबित पुलिस सब-इंस्पेक्टर रंजीत कासले ने ईवीएम छेड़छाड़ (EVM Tampering) का ऐसा दावा किया है, जिसने पूरे राज्य को हिलाकर रख दिया। उनके आरोपों ने न केवल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Elections) की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि पूर्व मंत्री धनंजय मुंडे को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। लेकिन क्या ये दावे सच हैं? या फिर ये महज एक सनसनी फैलाने की कोशिश है? आइए, इस कहानी को गहराई से समझते हैं।

बात शुरू होती है बीड़ के परली विधानसभा क्षेत्र से, जहां पिछले साल नवंबर 2024 में विधानसभा चुनाव हुए थे। रंजीत कासले, जो उस समय बीड़ साइबर पुलिस स्टेशन में तैनात थे, ने दावा किया कि चुनाव के दौरान ईवीएम छेड़छाड़ की गई। उनके मुताबिक, परली में मतदान के दिन उन्हें जानबूझकर ईवीएम ड्यूटी से हटाया गया। कासले का कहना है कि उन्हें ऊपर से आदेश मिला था कि वे छुट्टी ले लें और ईवीएम के पास न जाएं। और तो और, 21 नवंबर को उनके बैंक खाते में 10 लाख रुपये जमा हुए, जिसका स्रोत उन्होंने संत बाळूमामा कंस्ट्रक्शन कंपनी बताया।

कासले ने अपने आरोपों का दायरा और बढ़ाते हुए एनसीपी नेता और परली से विधायक धनंजय मुंडे पर गंभीर इल्जाम लगाए। उनके अनुसार, मुंडे ने संतोष देशमुख हत्याकांड के मुख्य आरोपी वाल्मिक कराड का एनकाउंटर करने की पेशकश की थी। कासले का दावा है कि मुंडे को डर था कि कराड कुछ संवेदनशील जानकारी उजागर कर सकता है, जिससे उनकी सियासी पकड़ कमजोर पड़ सकती है। इसके लिए कासले को 5 करोड़ से लेकर 50 करोड़ रुपये तक की पेशकश की गई। ये सुनकर किसी का भी दिमाग चकरा जाए। लेकिन सवाल ये है कि क्या इन दावों में दम है?

चुनाव आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। 18 अप्रैल 2025 को आयोग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साफ किया कि ईवीएम छेड़छाड़ (EVM Tampering) का कोई सवाल ही नहीं उठता। आयोग के मुताबिक, ईवीएम को सख्त कानूनी और प्रशासनिक प्रोटोकॉल के तहत रखा जाता है। इसके अलावा, आयोग ने ये भी स्पष्ट किया कि रंजीत कासले 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में किसी भी चुनावी ड्यूटी पर नहीं थे। वे बीड़ साइबर पुलिस स्टेशन में तैनात थे, और उनके दावे महज सार्वजनिक शांति भंग करने की कोशिश हैं।

आयोग ने बीड़ के जिला निर्वाचन अधिकारी (डीईओ) और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) से इस मामले में तत्काल रिपोर्ट मांगी। 19 अप्रैल को मिली आधिकारिक रिपोर्ट में साफ हुआ कि कासले के आरोप निराधार हैं। आयोग ने डीईओ को कासले के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया। ये जवाब न केवल कासले के दावों को खारिज करता है, बल्कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Elections) की पारदर्शिता पर भी मुहर लगाता है।

रंजीत कासले की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। उन्होंने धनंजय मुंडे पर एक और सनसनीखेज आरोप लगाया। कासले के मुताबिक, मुंडे ने उन्हें वाल्मिक कराड का एनकाउंटर करने के लिए उकसाया, क्योंकि कराड के पास कुछ ऐसी जानकारियां थीं, जो मुंडे के लिए खतरा बन सकती थीं। कासले ने ये भी कहा कि उनके पास इस पेशकश के सबूत हैं, और वे इसे साबित करने को तैयार हैं। हालांकि, इन दावों का कोई ठोस सबूत अब तक सामने नहीं आया है।

इन सबके बीच धनंजय मुंडे का नाम बार-बार चर्चा में आ रहा है। बीड़ की सियासत में मुंडे एक बड़ा नाम हैं। वे न केवल परली से विधायक हैं, बल्कि अजित पवार गुट की एनसीपी के कद्दावर नेता भी हैं। लेकिन उनके खिलाफ पहले भी कई विवाद सामने आ चुके हैं। 2021 में एक महिला ने उन पर बलात्कार का आरोप लगाया था, जिसके बाद उनकी कुर्सी खतरे में पड़ गई थी। हाल ही में संतोष देशमुख हत्याकांड के बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। और अब कासले के ये आरोप उनकी मुश्किलें और बढ़ा सकते हैं।

परली विधानसभा चुनाव में मुंडे का मुकाबला शरद पवार गुट के राजेसाहेब देशमुख से था। कासले के दावों के बाद देशमुख ने भी इस मामले को कोर्ट में ले जाने की बात कही है। उनका कहना है कि अगर कासले को 10 लाख रुपये दिए गए, तो बाकी लोगों को कितना दिया गया होगा? ये सवाल न केवल प्रशासन के दुरुपयोग की ओर इशारा करता है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े करता है।

कासले की गिरफ्तारी ने इस मामले को और गर्मा दिया है। पुणे एयरपोर्ट पर उतरते ही बीड़ पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। गिरफ्तारी से पहले कासले ने मीडिया से बातचीत में न केवल मुंडे, बल्कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और कई आईएएस-आईपीएस अधिकारियों पर भी गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि वे व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहे हैं, और उनके पास सारे सबूत हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सबूत कभी सामने आएंगे?

महाराष्ट्र की सियासत में ईवीएम छेड़छाड़ का मुद्दा कोई नया नहीं है। पहले भी विपक्षी दल ईवीएम की निष्पक्षता पर सवाल उठाते रहे हैं। लेकिन हर बार चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज किया है। इस बार भी आयोग ने अपनी स्थिति साफ कर दी है। फिर भी, कासले के दावों ने सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक एक नई बहस छेड़ दी है। लोग जानना चाहते हैं कि आखिर सच्चाई क्या है।

इस पूरे प्रकरण में एक बात साफ है—चुनावी प्रक्रिया पर जनता का भरोसा बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। जब तक ठोस सबूत सामने नहीं आते, तब तक ये दावे और जवाब महज सियासी शोर ही माने जाएंगे। लेकिन इस कहानी ने एक बार फिर ये सवाल जरूर खड़ा कर दिया है कि क्या हमारी चुनावी व्यवस्था वाकई पारदर्शी है?

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