SEBI Bans Ex-CEO for Trading: मुंबई, भारत का वित्तीय केंद्र, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला इंडसइंड बैंक (IndusInd Bank) से जुड़ा है, जहां इनसाइडर ट्रेडिंग (Insider Trading) के आरोपों ने बैंक के शीर्ष प्रबंधन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) ने 28 मई 2025 को एक अंतरिम आदेश जारी कर बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक और सीईओ सुमंत कथपालिया, पूर्व डिप्टी सीईओ अरुण खुराना और तीन अन्य वरिष्ठ अधिकारियों पर शेयर बाजार में कारोबार करने पर प्रतिबंध लगा दिया। यह कार्रवाई तब हुई, जब इन अधिकारियों पर अप्रकाशित मूल्य संवेदनशील जानकारी (Unpublished Price Sensitive Information) के आधार पर शेयर बेचने का आरोप लगा। इस मामले ने न केवल बैंक की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, बल्कि निवेशकों के बीच भी हलचल मचा दी।
यह कहानी दिसंबर 2022 में शुरू हुई, जब इंडसइंड बैंक के डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में अनियमितताओं की पहचान हुई। सेबी के अनुसार, बैंक के शीर्ष प्रबंधन को इन विसंगतियों के बारे में कम से कम 15 महीने पहले से जानकारी थी। 30 नवंबर 2023 को बैंक के लेखा विभाग के प्रमुख ने एक ईमेल के जरिए 1,749.98 करोड़ रुपये की अनुमानित वित्तीय हानि की जानकारी साझा की। इसके बाद, 4 दिसंबर 2023 को सुमंत कथपालिया ने एक आंतरिक ईमेल में लिखा कि इस विसंगति का “बड़ा प्रभाव” पड़ सकता है। सेबी ने इस तारीख को अप्रकाशित मूल्य संवेदनशील जानकारी (Unpublished Price Sensitive Information) की शुरुआत माना। हालांकि, बैंक ने इस जानकारी को 4 मार्च 2025 तक आधिकारिक रूप से UPSI के रूप में वर्गीकृत नहीं किया और इसे स्टॉक एक्सचेंज में 10 मार्च 2025 को ही सार्वजनिक किया।
इस 15 महीने की देरी ने सेबी की जांच को और गंभीर बना दिया। सेबी ने पाया कि इस अवधि में, यानी 4 दिसंबर 2023 से 10 मार्च 2025 तक, पांच वरिष्ठ अधिकारियों ने बैंक के शेयर बेचे। अरुण खुराना ने 3,48,500 शेयर बेचे, जिससे उन्होंने 14.39 करोड़ रुपये का नुकसान टाला। सुमंत कथपालिया ने 1,25,500 शेयर बेचकर 5.2 करोड़ रुपये का नुकसान टाला। अन्य तीन अधिकारियों—सुशांत सौरव, रोहन जठाना, और अनिल मार्को राव—ने क्रमशः 2,065, 2,000, और 1,000 शेयर बेचे, जिससे उन्होंने कुल मिलाकर 19.78 करोड़ रुपये का नुकसान टाला। सेबी ने इन सभी के बैंक और डीमैट खातों को जब्त कर लिया और इस राशि को सेबी के नियंत्रण में फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा करने का आदेश दिया।
बैंक की डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में अनियमितताओं का प्रभाव गंभीर था। आंतरिक ईमेल्स से पता चला कि सितंबर 2023 से मार्च 2024 तक नुकसान की अनुमानित राशि 1,572 करोड़ रुपये से बढ़कर 2,361.69 करोड़ रुपये हो गई। बैंक ने KPMG को इसकी समीक्षा के लिए नियुक्त किया, जिसने दिसंबर 2023 तक 2,093 करोड़ रुपये के नुकसान की पुष्टि की। यह जानकारी न केवल बैंक के भीतर निगरानी में थी, बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को भी प्रस्तुत की जा रही थी। फिर भी, इसे सार्वजनिक करने में देरी हुई, जिसने निवेशकों को अंधेरे में रखा। जब 10 मार्च 2025 को यह खुलासा हुआ, तो इंडसइंड बैंक का शेयर मूल्य 27% गिर गया, जो 900.60 रुपये से घटकर 655.95 रुपये हो गया।
सेबी ने अपने 32 पेज के आदेश में कहा कि इन अधिकारियों ने इनसाइडर ट्रेडिंग (Insider Trading) के नियमों का उल्लंघन किया। आदेश में यह भी उल्लेख किया गया कि यह मानना “भोलापन” होगा कि ये अधिकारी सामान्य तरीके से शेयर बेच रहे थे, जबकि वे वित्तीय अनियमितताओं के प्रभाव को जानते थे। सेबी ने जोर दिया कि इस तरह की ट्रेडिंग ने उन निवेशकों को नुकसान पहुंचाया, जिन्हें इस महत्वपूर्ण जानकारी तक पहुंच नहीं थी। जांच अभी भी जारी है, और सेबी ने स्पष्ट किया कि अन्य संदिग्धों की भी जांच की जा रही है।
इस मामले ने इंडसइंड बैंक की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचाया। अप्रैल 2025 में, सुमंत कथपालिया और अरुण खुराना ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। कथपालिया ने अपने इस्तीफे में “नैतिक जिम्मेदारी” लेने की बात कही, जबकि खुराना ने “दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं” का हवाला दिया। इन इस्तीफों के बाद, RBI ने बैंक को एक अंतरिम समिति गठन करने की अनुमति दी, जिसमें सौमित्र सेन और अनिल राव शामिल हैं, ताकि नए सीईओ की नियुक्ति तक बैंक का संचालन हो सके। ग्रांट थॉर्नटन की फोरेंसिक ऑडिट ने भी पुष्टि की कि खुराना को डेरिवेटिव ट्रेडों की गलत लेखा प्रक्रिया की जानकारी थी, जिसने बैंक के खातों में 1,959 करोड़ रुपये का घाटा छोड़ा।
यह घटना केवल इंडसइंड बैंक तक सीमित नहीं है। इसने पूरे बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दों को उजागर किया है। सेबी ने अपने आदेश में कहा कि ऐसी गतिविधियां निवेशकों का विश्वास कमजोर करती हैं और बाजार की निष्पक्षता को खतरे में डालती हैं। इंडसइंड बैंक ने मार्च 2025 में पहली बार इन अनियमितताओं को स्वीकार किया, जिसके बाद PwC और ग्रांट थॉर्नटन जैसी एजेंसियों ने इसकी जांच शुरू की। बैंक ने 2024 में मार्क-टू-मार्केट लेखा प्रणाली अपनाने का दावा किया, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था।
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