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PoP Idol Ban Lifted: ‘गणेशोत्सव 2025’ PoP मूर्ति प्रतिबंध हटाने से मूर्तिकारों में उत्साह, इको-फ्रेंडली विसर्जन की तैयारी

PoP Idol Ban Lifted: 'गणेशोत्सव 2025' PoP मूर्ति प्रतिबंध हटाने से मूर्तिकारों में उत्साह, इको-फ्रेंडली विसर्जन की तैयारी

PoP Idol Ban Lifted: महाराष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल हिस्सा है गणेशोत्सव। हर साल लाखों लोग गणपति बप्पा के स्वागत में जुटते हैं, और उनके लिए मूर्तियां बनाना एक पवित्र परंपरा है। लेकिन पिछले कुछ सालों से प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) की मूर्तियों पर प्रतिबंध ने मूर्तिकारों की आजीविका को खतरे में डाल दिया था। 9 जून 2025 को, मुंबई उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसने इस PoP मूर्ति प्रतिबंध हटाना (PoP Idol Ban Lifted) को मंजूरी दे दी। यह फैसला हजारों मूर्तिकारों के लिए न केवल आर्थिक राहत है, बल्कि उनकी आस्था और परंपरा की जीत भी है। साथ ही, पर्यावरण संरक्षण के लिए इको-फ्रेंडली विसर्जन (Eco-Friendly Immersion) की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।

महाराष्ट्र के मूर्तिकारों ने लंबे समय से PoP मूर्तियों पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की थी। यह मांग सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक भी थी। गणेशोत्सव में PoP मूर्तियां बनाना और बेचना हजारों परिवारों की आजीविका का आधार है। मुंबई, ठाणे, और रायगढ़ जैसे इलाकों में मूर्तिकार पीढ़ियों से इस कला को जीवित रखे हुए हैं। लेकिन 2020 में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) ने PoP मूर्तियों के निर्माण और विसर्जन पर दिशा-निर्देश जारी किए, जिसने इन मूर्तियों पर प्रतिबंध लगा दिया। इन दिशा-निर्देशों को बॉम्बे हाई कोर्ट ने जनवरी 2025 में और सख्ती से लागू किया, जिससे मूर्तिकारों के सामने संकट खड़ा हो गया।

इस साल माघी गणेश उत्सव से ठीक पहले, मूर्तिकारों ने अपनी आवाज बुलंद की। ठाणे की श्री गणेश मूर्तिकार उत्कर्ष संस्था ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि PoP मूर्ति प्रतिबंध (PoP Idol Ban Lifted) उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उनकी दलील थी कि ये दिशा-निर्देश कानून नहीं, बल्कि सलाहकारी हैं। मूर्तिकारों ने यह भी तर्क दिया कि शाडु मिट्टी से बड़ी मूर्तियां बनाना मुश्किल और महंगा है, जिससे उनकी रोजी-रोटी पर असर पड़ता है। उनकी इस एकजुटता ने सरकार और कोर्ट का ध्यान खींचा।

महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री आशीष शेलार ने मूर्तिकारों की इस लड़ाई में उनका साथ दिया। उन्होंने कहा कि यह जीत सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक भी है। शेलार ने बताया कि इस फैसले के पीछे विशेषज्ञों की राय और वैज्ञानिक अध्ययन महत्वपूर्ण थे। राजीव गांधी विज्ञान और प्रौद्योगिकी आयोग के प्रमुख डॉ. अनिल काकोडकर की अगुवाई में एक समिति ने PoP मूर्तियों के पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन किया। इस समिति ने सुझाव दिया कि समुद्र में विसर्जन संभव है, बशर्ते इको-फ्रेंडली विसर्जन (Eco-Friendly Immersion) की व्यवस्था हो। CPCB ने भी स्पष्ट किया कि उनके दिशा-निर्देश मूर्ति निर्माण पर नहीं, बल्कि विसर्जन पर लागू होते हैं।

हाई कोर्ट ने इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए PoP मूर्तियों के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध हटा लिया। हालांकि, कोर्ट ने साफ किया कि इन मूर्तियों को प्राकृतिक जलस्रोतों में विसर्जन की अनुमति नहीं होगी। इसके लिए सरकार को तीन हफ्तों में नीति बनाने का निर्देश दिया गया। मुंबई जैसे शहरों में छोटी मूर्तियों के लिए कृत्रिम तालाब पहले से मौजूद हैं, लेकिन बड़े सार्वजनिक मूर्तियों के लिए स्पष्ट नीति की जरूरत है। शेलार ने भरोसा दिलाया कि सरकार प्राकृतिक जलस्रोतों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और परंपरा को बनाए रखते हुए पर्यावरण का भी ख्याल रखेगी।

इस फैसले ने मूर्तिकारों के चेहरों पर मुस्कान ला दी। रायगढ़ के पेन इलाके में, जहां सैकड़ों मूर्ति बनाने की इकाइयां हैं, उत्साह का माहौल है। एक मूर्तिकार, सचिन मूर्तिकर पाटिल, ने बताया कि PoP मूर्तियां बनाना उनके लिए आसान और किफायती है। शाडु मिट्टी की मूर्तियां बनाने में समय और मेहनत ज्यादा लगती है, और उनकी मांग भी कम है। इस प्रतिबंध के हटने से न केवल उनकी आजीविका बची, बल्कि गणेशोत्सव की चमक भी बरकरार रही।

हालांकि, पर्यावरणविदों ने इस फैसले पर चिंता जताई। रोहित जोशी, जिन्होंने CPCB दिशा-निर्देशों के लिए जनहित याचिका दायर की थी, ने कहा कि CPCB का दिशा-निर्देशों को सलाहकारी बताना गैर-जिम्मेदाराना है। उनका कहना है कि PoP मूर्तियां और उनके जहरीले रंग जलस्रोतों को नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन सरकार और मूर्तिकारों का तर्क है कि कृत्रिम तालाबों और वैज्ञानिक विसर्जन प्रक्रिया से इस समस्या का समाधान हो सकता है।

मुंबई में गणेशोत्सव की तैयारियां अब जोरों पर हैं। हर साल करीब 2.5 लाख मूर्तियां बनाई जाती हैं, जिनमें से ज्यादातर PoP की होती हैं। लालबागचा राजा और गणेश गली जैसे प्रसिद्ध मंडल अपनी भव्य मूर्तियों के लिए जाने जाते हैं। इस फैसले ने इन मंडलों को भी राहत दी है। लेकिन साथ ही, सरकार पर अब यह जिम्मेदारी है कि वह विसर्जन की ऐसी व्यवस्था करे, जो पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए।

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